जनता ने बाहरी प्रत्याशियों को ठुकराया..
प्रदेश की 11 लोकसभा सीटों में से भाजपा 10 तो कांग्रेस केवल एक सीट ही जीत पाई। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार कांग्रेस की बुरी हार की वजह पार्टी के भीतर चल रही अंतर्कलह, गुटबाजी, नेतृत्व क्षमता का अभाव है।
रायपुर, जनजागरुकता। छत्तीसगढ़ में छह महीने पहले सत्ता में काबिज रही कांग्रेस की विधानसभा के बाद लोकसभा चुनाव में भी करारी हार हुई है। प्रदेश की 11 लोकसभा सीटों में से भाजपा 10 तो कांग्रेस केवल एक सीट ही जीत पाई। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार कांग्रेस की बुरी हार की वजह पार्टी के भीतर चल रही अंतर्कलह, गुटबाजी, नेतृत्व क्षमता का अभाव है। एकला चलो अभियान के अलावा कांग्रेस का टिकट वितरण फार्मूला भी इसके लिए जिम्मेदार रहा है। छत्तीसगढ़ में स्थानीय प्रत्याशियों के स्थान पर बाहरी प्रत्याशियों के चयन के चलते पार्टियों को हार का सामना करना पड़ा है. वह चाहे बीजेपी के प्रत्याशी हो या फिर कांग्रेस के. जनता ने बाहरी प्रताशी को नकार दिया है. कांग्रेस ने खासकर भ्रष्टाचार के मामले में फंसे नेताओं और विधानसभा चुनाव में हारे हुए नेताओं पर पार्टी ने दोबारा दांव खेला था! जबकि भाजपा ने आठ नए चेहरों को मैदान में उतारा था।
दुर्ग जिले से आने वाले कांग्रेस नेता पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राजनांदगांव के लोकसभा क्षेत्र के निवासी संतोष पाण्डेय से 44हजार वोट से हार गए। भिलाई विधायक देवेंद्र यादव बिलासपुर के स्थानीय निवासी तोखन साहू से 1.62लाख वोट से हार गए। पूर्व मंत्री ताम्रध्वज साहू महासमुंद की रूप कुमारी चौहान से 1.45लाख वोट से हार गए और भारतीय जनता पार्टी की नेत्री भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडे ने अपने जिले से बाहर जाकर चुनाव लड़ा। कोरबा के मतदाताओं ने सरोज पांडे को समर्थन नहीं दिया और दुर्ग की सरोज पांडे की जगह ज्योत्सना महंत को 43हजार वोट से जीता दिया। जहां भूपेश बघेल ने राजनांदगांव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, ताम्रध्वज साहू ने महासमुंद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, भिलाई विधायक देवेंद्र यादव ने बिलासपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, और भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडे ने कोरबा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा है। छत्तीसगढ़ में यह चारों ऐसे नेता हैं जिनका पार्टी और प्रदेश में बड़ा दबदबा है। बावजूद इसके जब लोकसभा चुनाव के परिणाम सामने आए तो इन सभी को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है।
स्थानीय निवासी के बजाय बाहरी प्रत्याशी के मोह से दोनों ही पार्टियां नही बच पाई। कही न कही इस हार की बड़ी वजह दूसरे जिले से तालुक रखना भी है. ऐसा भी हो सकता है कि जनता ने इन्हे बाहरी मान कर नहीं स्वीकारा और इसका परिणाम जो मिला वो था पराजय।