शुक्ल यजुर्वेद संहिता के मुख्य मन्त्र द्रष्टा थे ऋषि याज्ञवल्क्य
याज्ञवल्क्य जी को पुराणों में ब्रह्मा जी का अवतार माना गया है। इस कारण इन्हें ब्रह्मर्षि कहा जाता है और श्रीमद्भागवत में उन्हें देवरात के पुत्र कहा गया है।
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। याज्ञवल्क्य जी भारतीय ऋषियों की परंपरा के अग्रीण ऋषि हुए हैं वह ब्रह्मज्ञानी थे, महान अध्यात्म वक्ता योगी, मंत्र दृष्टा हुए, इन्हीं के जन्म दिवस को याज्ञवल्क्य जयंती जयंती के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। याज्ञवल्क्य जी को पुराणों में ब्रह्मा जी का अवतार माना गया है इस कारण इन्हें ब्रह्मर्षि कहा जाता है और श्रीमद्भागवत में उन्हें देवरात के पुत्र कहा गया है। भगवान सूर्य की प्रत्यक्ष कृपा से इन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।
याज्ञवल्क्य ऋषि वैशम्पायन के शिष्य थे तथा राजा जनक के कार्यों में एक सलाहकार एवं गुरू रूप में उनके साथ रहे याज्ञवल्क्य, को योगीश्वर याज्ञवल्क्य के नाम से भी जाना गया है। मैत्रेयी और गार्गी इनकी पत्नियाँ थी। वैदिक मन्त्र द्रष्टा तथा उपदेष्टा आचार्यों में ऋषि याज्ञवल्क्य का प्रमुख स्थान रहा है। याज्ञवल्क्य महर्षि वैशम्पायन के शिष्य थे।
गुरु की आज्ञा सुन याज्ञवल्क्य अपनी सारी विद्या उगल दी
धर्म शास्त्रों के ज्ञाता डॉ. आर अवस्थी के अनुसार एक बार गुरु वैशम्पायन जी से इनका विवाद हो जाता है जिस कारण गुरु उनसे अप्रसन्न हो उन्हें अपने शिष्य होने के पद से तथा अपने द्वारा दिए गए ज्ञान को वापस लौटाने के लिए कहते हैं। गुरु की आज्ञा सुनकर याज्ञवल्क्य ने अपनी सारी विद्या को उगल दी, जिसे वैशंपायन के अन्य शिष्यों ने तीतर बनकर चुग लिया यजुर्वेद की यही शाखा , तैत्तिरीय शाखा के नाम से विख्यात हुई थी।
सूर्यदेव ने यजुर्वेद के गूढ़ मंत्रों का ज्ञान दिए
ब्रह्मर्षि याज्ञवल्क्य जी गुरु का ज्ञान देकर ज्ञान रहित हो जाते हैं इसलिए पुन: ज्ञान की प्राप्ति के लिए वह सूर्य देव की उपासना करने लगते हैं तथा उनसे ज्ञान प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं। सूर्यदेव, याज्ञवल्क्य की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन देते हैं तथा वरदान स्वरूप यजुर्वेद के गूढ़ मंत्रों का ज्ञान देते हैं।
..इसलिए वाजसनेय के नाम से जाने जाते हैं
सूर्य देव के वरदान स्वरूप ऋषि याज्ञवल्क्य शुक्ल यजुर्वेद या वाजसनेयी संहिता के आचार्य बनते हैं और वाजसनेय के नाम से जाने जाते हैं। मध्य दिन के समय ज्ञान प्राप्त होने से 'माध्यन्दिन' शाखा का उदय हुआ एवं शुक्ल यजुर्वेद संहिता के मुख्य मन्त्र द्रष्टा ऋषि याज्ञवल्क्य हुए इस प्रकार शुक्ल यजुर्वेद हमें ऋर्षि याज्ञवल्क्य जी द्वारा प्राप्त हुआ है। इनकी दो पत्नियां थी जो परम साधवी थीं मैत्रेयी और गार्गी इनकी पत्नियां थी।
ब्रह्मऋषि याज्ञवल्क्य द्वारा रचित ग्रंथ
याज्ञवल्क्य द्वारा लिखित सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ शुक्ल यजुर्ववेद संहिता है। इसके 40 अध्यायों में पद्यात्मक मंत्र और गद्यात्मक यजुर्वेद की व्याख्या की गई है। अधिकांश लोग वेदों की इस शाखा से संबंधित हो सकते हैं।
सभी शास्त्रों में याज्ञवल्क्य के महत्व व भव्यता को दर्शाया गया
संत याज्ञवल्क्य द्वारा लिखित एक अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ शतपथ ब्राह्मण है। यह शास्त्र दर्श, पौर्णमास, इष्टी, पशुबंध और सौम्यज्ञ की बात करता है। बृहदारण्यकोपनिषद भी संत याज्ञवल्क्य ने लिखा था। याज्ञवल्क्य का जन्म वैशम्पायन, शाक्तयन आदि के काल में हुआ था। याज्ञवल्क्य स्मृति मनु स्मृति के अतिरिक्त एक प्रसिद्ध ग्रन्थ भी है। इन सभी शास्त्रों में याज्ञवल्क्य के महत्व और भव्यता को दर्शाया गया है।
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