प्रभु राम और भक्त हनुमान के बीच की ऐसी घटना कि.. अंजनी पुत्र की आंखों से निकल पड़ी अश्रु धारा
जो धरती पर आया है उसे उपर जाना ही है.. उसे मरना ही पड़ता है। यही जीवन चक्र है। और मनुष्य देह की सीमा और विवशता भी यही है।
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। दुनिया के आदर्श, भारत के अराध्य भगवान श्री राम जानते थे उनकी लीला समाप्त करने का, उनकी धरती पर से ब्रह्मलोक जाने का समय हो गया है। वह जानते थे कि जो धरती पर आता है, जन्म लेता है उसे वापस जाना ही होता है। उसे मरना ही पड़ता है। यही जीवन चक्र है। और मनुष्य देह की सीमा और विवशता भी यही है।
इसी से जुड़ी भगवान राम और उनके परम भक्त हनुमान जी की एक रहस्यमयी घटना को हम बताने जा रहे हैं.. भगवान श्री राम ने कहा.. “यम को मुझ तक आने दो। बैकुंठ धाम जाने का समय अब आ गया है।”
इधऱ मृत्यु के देवता यम स्वयं अयोध्या में घुसने से डरते थे। क्योंकि उनको राम के परम भक्त और उनके महल के मुख्य प्रहरी हनुमान जी से भय लगता था। उन्हें पता था कि हनुमानजी के रहते यह सब आसान नहीं।
भगवान श्रीराम इस बात को अच्छी तरह से समझ गए थे कि, उनके धरती छोड़ने, परमधाम यानि मृत्यु को अंजनी पुत्र कभी स्वीकार नहीं कर पाएंगे, और वो रौद्र रूप में आ गए.. तो समस्त धरती कांप उठेगी।
श्री राम ने सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा से इस विषय में बात की। और अपने मृत्यु के सत्य से अवगत कराने के लिए राम जी ने अपनी अंगूठी को महल के फर्श के एक छेद में से गिरा दिया! और हनुमान जी से अंगुठी को खोजकर लाने के लिए कहा।
आदेश पर राम भक्त हनुमान ने स्वयं का स्वरुप छोटा करते हुए बिल्कुल भंवरे जैसा आकार बना लिया.. और अंगूठी को तलाशने के लिए उस छोटे से छेद में प्रवेश कर गए। वह छेद केवल छेद नहीं था, बल्कि एक सुरंग का रास्ता था, जो पाताल लोक के नाग लोक तक जाता था। हनुमान नागों के राजा वासुकी से मिले और अपने आने का कारण बताया।
यहां अवश्य मिल जाएगी अंगूठी
वासुकी हनुमान को नाग लोक के मध्य में ले गए, जहां पर अंगूठियों का ढेर लगा था। वहां पर अंगूठियों का जैसे पहाड़ लगा हुआ था। वासुकी ने कहा “यहां देखिए, आपको श्री राम की अंगूठी अवश्य ही मिल जाएगी”।
इतनी सारी अंगूठी..
हनुमानजी सोच में पड़ गए कि वो कैसे उसे ढूंढ पाएंगे? यह भूसे में सुई ढूंढने जैसा था। लेकिन उन्हें राम जी की आज्ञा का पालन करना ही था। तो राम जी का नाम लेकर उन्होंने अंगूठी को ढूंढना शुरू किया।
रामजी का नाम लेकर अंगूठी उठाई वह ही रामजी कि निकली
सौभाग्य कहें या राम जी का आशीर्वाद या कहें हनुमान जी की भक्ति.. उन्होंने जो पहली अंगूठी उठाई, वो राम जी की ही अंगूठी निकली। उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। वो अंगूठी लेकर जाने को हुए, तब उन्हें सामने दिख रही एक और अंगूठी जानी पहचानी सी लगी।
हर अंगूठी रामजी की
पास जाकर देखा तो वे आश्चर्य से भर गए! दूसरी भी अंगूठी जो उन्होंने उठाई वो भी राम जी की ही अंगूठी थी। इसके बाद तो वो एक के बाद एक अंगूठियां उठाते गए, और हर अंगूठी श्री राम की ही निकलती रही।
हनुमान जी की आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी..
उनकी आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी! ..कहा 'वासुकी यह प्रभु की कैसी माया है? यह क्या हो रहा है? प्रभु क्या चाहते हैं?' इतने में वासुकी मुस्कुराए और बोले, “जिस संसार में हम रहते हैं, वो सृष्टि व विनाश के चक्र से गुजरता है। जो निश्चित है। जो अवश्यम्भावी है।
संसार का चक्र ..ऐसे चलता है
वासुकी ने हनुमान जी को समझाते हुए बतलाया कि इस संसार के प्रत्येक सृष्टि चक्र को एक कल्प कहा जाता है। हर कल्प के चार युग या चार भाग होते हैं। हर बार कल्प के दूसरे युग में अर्थात त्रेता युग में, राम अयोध्या में जन्म लेते हैं। एक वानर इस अंगूठी का पीछा करता है.. यहां आता है और हर बार पृथ्वी पर राम मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
हर बार अंगूठियां गिरती रहीं..
वासुकी ने कहा इसलिए यह सैकड़ों हजारों कल्पों से चली आ रही अंगूठियों का ढेर है। सभी अंगूठियां वास्तविक हैं। सभी श्री राम की ही हैं। अंगूठियां गिरती रहीं हैं.. और इनका ढेर बड़ा होता रहा। भविष्य के रामों की अंगूठियों के लिए भी यहां पर्याप्त स्थान है।”
हनुमान समझ गए.. और शांत हो गए
वासुकी की बात सुनकर हनुमान एकदम शांत हो गए। और तत्काल समझ गए कि, उनका नाग लोक में प्रवेश और अंगूठियों के पर्वत से साक्षात्कार कोई आकस्मिक घटी घटना नहीं थी। बल्कि यह प्रभु राम का उनको समझाने का मार्ग था कि, मृत्यु को आने से रोका नहीं जा सकता। राम मृत्यु को प्राप्त होंगे ही।
यह सत्य है कि राम वापस आएंगे
..पर यह भी सत्य है कि राम वापस आएंगे.. यह सब फिर दोहराया जाएगा। यही सृष्टि का नियम है, हम सभी बंधे हैं इस नियम से। संसार समाप्त होगा। लेकिन हमेशा की तरह, संसार पुनः बनता है और राम जी पुनः जन्म लेंगे।
प्रभु राम आएंगे.. उन्हें आना ही है.. उन्हें आना ही होगा।