janjaagrukta ग्राउंड रिपोर्टः टाइगर रिजर्व की अवैध बस्तियां- यानी राजनीति का काला चेहरा जो दिखता सफेद है...

नियम विरूद्ध बस्ती बसाने और स्कूल खोलने का खामियाजा तो भुगतना ही था इसलिए न मूलभूत सुविधाएं मिलीं और न स्कूल को शिक्षक।

janjaagrukta ग्राउंड रिपोर्टः टाइगर रिजर्व की अवैध बस्तियां- यानी राजनीति का काला चेहरा जो दिखता सफेद है...
टाइगर रिजर्व की अवैध बस्ती में शिक्षा का मंदिर।

उदंती सीतानदी अभयारण के जंगलों को कटवाकर स्थानीय नेताओं ने बसवा दी वोट के लिए अवैध बस्तियां।

पुरूषोत्तम पात्र
गरियाबंद। उदंती सीतानदी अभयारण के जंगलों को अवैध तरीके से काटकर आदिवासियों ने पहले अपनी बस्ती बसाई, फिर कानूनी दांव पेंच में भी उलझ गए। उन्हें कानून की भाषा से परे पटे की आग की चिंता थी, सो अपने ही बसे बसाए जंगल को साफ करने से गुरेज नहीं किया। इस पूरी कहानी में दिलचस्प मोड़ ये भी है कि वे अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति सजग हैं इसलिए चंदा कर स्कूल भी खोल लिया जिसमें वर्तमान में 32 बच्चे पढ़ रहे हैं। नियम विरूद्ध बस्ती बसाने और स्कूल खोलने का खामियाजा तो भुगतना ही था इसलिए न मूलभूत सुविधाएं मिलीं और न स्कूल को शिक्षक। बच्चों को पढ़ाने सरकारी शिक्षक तो मिल नहीं सकता था इसलिए 8वीं पास एक युवक संतराम मरकाम इन बच्चों को पढ़ाता है। ये दर्द भरी कहानी है ओडिशा सीमा से लगे मैनपुर के इचरादी गांव की।

यहां जंगल काटने की विवशता का पाठ नहीं, नौकरी और रोटी का सबक सीख रहे।

2008 में शुरू हुई अवैध बस्तियों की कहानी 
दरअसल मैनपुर के इचरादी जैसे बहुत सारे मजरे-टोले अवैध तरीके से जंगल काटकर बस गए हैं। कहानी की शुरुआत 2008 में हुई जब फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने स्थानीय आदिवासियों को वन अधिकार पट्टा देना शुरू किया। नियमों के मुताबिक 2005 के पूर्व जंगलों पर काबिज 21265 लोगों को 19069 हेक्टेयर वनभूमि का अधिकार पट्टा दिया गया।

स्थानीय राजनीति का परिणाम  
इस बीच 2008 के बाद जंगल काटकर स्थानीय स्तर पर मिलीभगत कर जंगलों में आदिवासियों को बसा दिया गया। ऐसे 24029 आवेदक, जिन्होंने 8700 हेक्टेयर पर अवैध रुप से कब्जा कर लिया है, उनके आवेदनों को जिला वन अधिकार समिति ने निरस्त कर दिया है। उन निरस्त आवेदकों की ही एक बस्ती मैनपुर के इचरादी जंगल में बस गई है। 

आडे़ आया वन विभाग का कानून 
नियम विरूद्ध बसाहट के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य के अलावा नागरिकों को मिलने वाली मूलभूत सुविधाओं से ये आदिवासी वंचित हैं। इन आदिवासियों को पेट भरने की परिभाषा तो पता थी पर वे इस तरह के कानूनी पेंच से अनभिज्ञ थे या फिर भिज्ञ भी थे तो परिवार और परिजनों की जान बचाने एक अदद छत तो चाहिए ही थी। समाधान के रूप में इन आदिवासियों ने जंगल काटकर बस्ती बसा ली।

चंदे के पैंसों से ग्रामीणों ने खोल लिया स्कूल

स्कूल का भवन कच्चा है लेकिन जीवन का पाठ पक्का है।

इन आदिवासियों ने पेट भरने का सामान भी या तो जंगल से जुटा लिया या फिर पास के गांवों-कस्बों में रोजी-मजदूरी कर रोजगार के साधन जुटा लिए। शहरी सभ्यता से वाकिफ होते ही बच्चों की शिक्षा की चिंता सताने लगी तो चंदा कर कच्ची मिट्टी की दीवार का घेरा बनाकर एक स्कूल भवन भी खड़ा कर लिया। वर्तमान में यहां 32 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। गांव का ही 8वीं पास युवक संतराम मरकाम इन बच्चों को पढ़ाता है। उसका कहना है आज के युग में शिक्षा जरूरी है इसलिए जितना मैंने पढ़ा है उतना तो बच्चों को पढ़ा ही सकता हूं। कहा जाता है कि शिक्षा की ताकत क्या है, यह गरीब परिवारों को समझना चाहिए, यहां तो ये परिवार शिक्षा की इस ताकत से वकिफ हैं पर उनका दर्द ये है कि वे गरीबी और शिक्षा दोनों से लड़ रहे हैं। 

8वीं पास यह सरकारी नहीं, अघोषित शिक्षक संतराम मरकाम है, जो शिक्षादान का महत्व समझता है।

सरकारी मुलाजिम बंधे हैं कानून से

डीईओ गरियाबंद, करमन खटकर।

एक तरफ सरकारी कानूनों की लंबी फेहरिस्त है तो दूसरी तरफ जंगल की जरूरत के बीच जिंदा रहने की जद्दोजहद की दास्तां भी है। सरकारी मुलजिम कानून से बंधे हैं। डीईओ करमन खटकर कहते हैं- शिक्षा के अधिकार के तहत बच्चों को पास के सरकारी स्कूूलों में शिफ्ट किया जाएगा क्योंकि टाइगर रिजर्व क्षेत्र में स्कूल खोलने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

उदंती सीतानदी अभयारण्य के उपनिदेशक वरूण जैन। 

इधर उदंती सीतानदी अभयारण्य के उपनिदेशक वरूण जैन ने कहा कि इस अवैध बसाहट को हटाने वे कार्रवाई करने से नहीं चूकेंगे। टाइगर रिजर्व में जितनी भी अवैध बस्तियां हैं, उन्हें हटाया जाएगा। टाइगर रिजर्व की हर अवैध बस्ती को हटाने वे कानून के तहत प्रतिबद्ध हैं। 

दर्द तो है लेकिन दवा कड़वी है
बच्चों को पढ़ाने वाले युवा संतराम मरकाम और अन्य ग्रामीणों की भी अपनी व्यथा है। उनका कहना है कि आखिर सिर कहां छिपाएं ? गांवों-कस्बों में लोग बसने नहीं देते और जंगल काटकर बसते हैं तो कानून आड़े आ जाता है। स्थानीय नेता हमें बसाकर अपना वोट बैंक पकाते हैं, कलेक्टर व अफसर भी हमारी नहीं सुनते।

कानून को पानी पिला रहे स्थानीय नेता
ऐसी बस्तियों की बसाहट का भी रोचक किस्सा है। स्थानीय नेताओं की शह पर ये बस्तियां धीरे-धीरे बसती रहीं और प्रशासनिक अफसर इन नेताओं के आगे बेबस थे। उन्हें नौकरी भी बचानी थी, सो सब-कुछ खुली आंख से देखते रहे। कागजों पर वे पुख्ता थे लेकिन हकीकत में इन नेताओं के आगे उनकी तूती बंद है। वे कानून का हवाला देकर अपना दायित्व तो निभाते हैं लेकिन स्थानीय नेताओं की पहुंच के आगे उनका कानून पानी भरने लगता है। 

अवैध बस्ती में मंत्री को बुलाने की तैयारी थी लेकिन .... 
स्थानीय नेताओं ने 4 माह पहले तो हद ही कर दी जब इस अवैध बस्ती में सरकारी आयोजन की घोषणा कर दी और एक मंत्री को चीफगेस्ट भी बना दिया। मंत्रीजी आने को तैयार हो गए पर जैसे ही उन्हें पूरे मामले का अवैध होने का पता चला तो कार्यक्रम रद्द कर दिया। यानी पूरे किस्से का अहम पहलू ये है कि स्थानीय नेताओं ने निहित स्वार्थों के चलते इन अवैध बसाहटों को अंजाम दिया। अब सरकारी मुलाजिम और ये आदिवासी कानूनी दांव-पेंच में फंस गए हैं। बताया जाता है कि इन आदिवासियों में आधे से ज्यादा बाहर के हैं या फिर पड़ोसी राज्य ओडिशा के हैं।

पेड़ों को खत्म करने की साजिशाना तकनीक

पेड़ों की जड़ों और तनों को इस तरह एक-दूसरे से इस तरह अलग कर दिया गया है ताकि पेड़ सूख कर गिर जाए

जंगल काटने के दौरान पेड़ों की जड़ों और तनों को इस तरह एक-दूसरे से इस तरह अलग कर दिया गया है कि पूरा पेड़ सूखकर गिर जाए। यानी जंगल माफिया की शह पर पेड़ों को काटने की साजिशाना तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। जंगल में इस तरह के हजारों पेड़ नष्ट कर दिए गए।