रावण से भी ज्यादा शक्तिशाली था कंस, सवा लाख किलो का उठा लिया था धनुष!
श्री कृष्ण के राज पुरोहित गर्गाचार्य ने जो गर्ग संहिता लिखी है उसमें उन्होंने कंस के बल का वर्णन किया है।
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। श्री कृष्णा हो या महाभारत सभी में कृष्ण लीला तो दिखाई है। लेकिन कंस का पराक्रम बहुत कम ही दिखाया गया है। श्री कृष्ण के राज पुरोहित गर्गाचार्य ने जो गर्ग संहिता लिखी है उसमें उन्होंने कंस के बल का वर्णन किया है जिसे जान आप भी कहेंगे की वो रावण से ज्यादा बलशाली था।
जाने उसका बल- वत्सासुर, पूतना, तृणावर्त, अघासुर, बकासुर (पूतना का भाई), अरिष्ठासुर, केशी, व्योमासुर, शकटासुर इन सभी असुरों को भगवान् कृष्ण ने बचपन में ही मार दिया था। लेकिन आप जानकर चौंक जायेंगे कि इस सभी को कंस ने अपनी दिग्गविजय यात्रा में परास्त कर अपना गुलाम बना लिया था, तभी प्राण दान दिया इनको नहीं तो ये उसके हाथों भी मारे जाते।
जरासंध का हाथी कुवलयापीड़ जिसमें 1000 हाथियों का बल था। जरासंध की दिग्विजय के समय उसके साथ था, मथुरा नगरी के पास जब उसने शिविर लगाया तो वो हाथी कंस की नगरी में घुस गया। कंस तब मल्ल युद्ध में व्यस्त था, तब कंस निहत्था ही उस हाथी से भीड़ गया और उसे उठाकर जरासंध के शिविर में फेंक दिया।हाथी फिर भी मरा नहीं लेकिन ये पराक्रम देख उसने अपनी दो बेटियों को कंस से ब्याहकर उससे संधि कर ली।
परशुराम जी से भी टकरा गया था, कंस की जाने पूरी कथा..
कंस ने अपने काका देवक की बेटी देवकी के विवाह के पूर्व ही दिग्विजय की यात्रा शुरू की थी जिस दौरान उसने सभी उपलब्धियां हासिल की थी। इसी दौरान वो महेंद्र पर्वत (वर्तमान ओडिशा में) पहुंचा तो वे पर्वत पर परशुराम जी तपस्या कर रहे हैं, ये जान उसे महेंद्र पर्वत को वैसे ही उठा लिया जैसे रावण ने हिमालय उठा लिया था।
परशुराम को शांत करने 120000 किलो का धनुष उठाया
तब परशुराम जी कुपित हो गए तो कंस ने उनकी परिक्रमा कर उन्हें प्रणाम कर उनकी स्तुति की और कहा में क्षत्रिय नहीं हूं। तब भी परशुराम का क्रोध शांत नहीं हुआ और उसे भगवान् विष्णु का धनुष दिखाते हुए कहा कि ये 120000 किलो का है अगर तुमने उसे उठा लिया तो में तुम्हे माफ़ कर ये धनुष भी तुम्हे दे दूंगा।
जो तोड़ेगा वहीं तुम्हारा अंत करेगा
कंस ने सहसा उस धनुष को उठा लिया और उसकी प्रत्यंचा भी कर डाली तो परशुराम जी प्रसन्न हो गए और उसे वो धनुष दे दिया, साथ ही ये भी कहा की जो ये धनुष तोड़ेगा वो ही तुम्हारा अंत करने में सक्षम होगा।
चाणूर और मुष्टिक कौन थे.. कैसे बने कंस के सेवक..?
कंस मल्ल युद्ध का बड़ा शौकीन था, उसके बराबर मथुरा में कोई पहलवान भी नहीं था, एक दिन उसे पता चला कि पड़ोसी देश के राजा जो कि पांच भाई हैं, वो सभी मल्लयुद्ध में पारंगत हैं। कंस उनके राज्य में गया और उन्हें ललकारा.. कहा कि अगर तुम जीते तो में तुम्हारा सेवक और मैं जीता तो तुम मेरे सेवक।
मल्लयुद्ध में कृष्ण ने कंस को मारा
तब कंस ने एक-एक कर के पांचों भाइयों को मल्लयुद्ध में हरा दिया और उनमें से मुष्टिक और चाणूर को अपने साथ मथुरा ले आया जिनसे बाद में उसने कृष्ण बलराम को मरवाना चाहा था। लेकिन कृष्ण बलराम जब मथुरा आये तो उन्होंने विष्णु धनुष भी तोड़ा। जरासंध के उस हाथी को भी मारा और अंत में इन दो पहलवानों के बाद कंस को भी, जैसे तैराक पानी में ही डूबता है वैसे ही कंस को भी उसके पसंदीदा मल्ल युद्ध में ही परास्त कर कृष्ण ने उसका संघार किया। जानकारी चाहिए तो गर्ग संहिता की पुस्तक में है गीता प्रेस में उपलब्ध है।