कांग्रेस से केजरीवाल की उम्मीद टूटी, अध्यादेश पर राज्यसभा में विरोध नहीं
मामले पर कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा अध्यादेश का विरोध कांग्रेस नहीं करेगी। जबकि केजरीवाल को उम्मीद थी कि अन्य विपक्षी दलों के जैसे कांग्रेस भी अध्यादेश के मुद्दे पर समर्थन करेगी।
नई दिल्ली, जनजागरुकता डेस्क। कांग्रेस ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की उम्मीद पर पानी फेर दिया है। केजरीवाल चाह रहे थे कि कांग्रेस राज्यसभा में अध्यादेश के खिलाफ वोटिंग करे, पर कांग्रेस ने ऐसा करने से मना कर दिया है। इससे केजरीवाल की चिंता बढ़ गई है।
गौरतलब है कि राज्यसभा में कांग्रेस का समर्थन है। उच्च सदन में कांग्रेस अगर अध्यादेश के खिलाफ वोटिंग कर देती तो बिल पास होने पर रोक लग सकती है। पर ऐसा करने से कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने मना कर दिया है।
केंद्र सरकार की ओर से दिल्ली पर लाए गए अध्यादेश पर कांग्रेस का रूख साफ है। मामले पर कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा अध्यादेश का विरोध कांग्रेस नहीं करेगी। जबकि केजरीवाल को उम्मीद थी कि अन्य विपक्षी दलों के जैसे कांग्रेस भी अध्यादेश के मुद्दे पर समर्थन करेगी।
कई दलों के प्रमुखों से मिल चुके केजरीवाल
जानकारी अनुसार अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने सभी विपक्षी दलों से मुलाकात की थी। उन्होंने इस मुद्दे के खिलाफ राज्यसभा में वोटिंग करने की अपील की। केजरीवाल ने ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, केसीआर समेत कई विपक्षी दलों के प्रमुखों से मुलाकत कर अपना समर्थन मांग चुके हैं।
पटना में विपक्षी दलों की बैठक में भी समर्थन मांगा था
हाल ही में पटना में विपक्षी दलों की बैठक में शरद पवार, उद्धव ठाकरे समेत अन्य विपक्षी दलों ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से भी केजरीवाल को समर्थन करने का आग्रह किया था, लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने समर्थन करने की बात पर चुप्पी साध ली थी। गौरतलब है कि राज्यसभा में कांग्रेस का समर्थन है। उच्च सदन में कांग्रेस अगर अध्यादेश के खिलाफ वोटिंग कर देती तो बिल पास होने पर रोक लग सकती है।
इस हवाले के साथ अध्यादेश लागू
बता दें कि दिल्ली में 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने जमीन, कानून व्यवस्था और पुलिस को छोड़कर ट्रांसफर-पोस्टिंग समेत अन्य मुद्दे की देख-रेख करने का अधिकार दिल्ली सरकार को दिया था, पर 19 मई को केंद्र ने राजधानी और दिल्ली को यूनियन टेरिटरी का हवाला देते हुए अध्यादेश लागू कर दिया था। जिसमें दिल्ली का बॉस उप राज्यपाल को बना दिया गया। इसके बाद दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।