भगवान कृष्ण की धड़कन.. हजारों साल बाद भी.. धड़कता है जगन्नाथ जी के काष्ठ की मूर्ति में..

आश्चर्य, किंतु सत्य है यह बात, सनातन धर्म की नींव गहरी है। भगवान का अस्तित्व यहां प्रत्यक्ष प्रतीत है। इसका प्रमाण भी है.. हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ति को बदला जाता है।

भगवान कृष्ण की धड़कन.. हजारों साल बाद भी.. धड़कता है जगन्नाथ जी के काष्ठ की मूर्ति में..

जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..

जनजागरुकता, धर्म डेस्क। भगवान कृष्ण ने जब देह छोड़ा तो उनका अंतिम संस्कार किया गया, उनका सारा शरीर तो पांच तत्त्वों में मिल गया, लेकिन उनका हृदय बिलकुल सामान्य एक जिन्दा मनुष्य की तरह धड़क रहा था और वो बिलकुल सुरक्षित था। हजारों साल बाद भी उनका हृदय आज तक सुरक्षित है, जो भगवान जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर रहता है.. जो उसी तरह धड़कता है.. ये बात बहुत कम लोगों को पता है।

महाप्रभु का महा रहस्य "ब्रह्म पदार्थ"

सोने की झाड़ू से सफाई होती है। महाप्रभु जगन्नाथ (श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते हैं। पुरी (ओडिशा) में जगन्नाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते हैं, मगर रहस्य ऐसे है कि आज तक कोई न जान पाया। हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ति को बदला जाता है,उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है, यानि पूरे शहर की लाइट बंद कर दी जाती है। लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को crpf की सेना चारों ओर से घेर लेती है। उस समय कोई भी मंदिर में नहीं जा सकता। 

घना अंधेरा और आंखों में पट्टी, बस दास्ताने से महसूस होते हैं

मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है, पुजारी की आंखों में पट्टी बंधी होती है। पुजारी के हाथ में दस्ताने होते हैं। जो पुरानी मूर्ति से "ब्रह्म पदार्थ" निकालता है और नई मूर्ति में डाल देता है। ये ब्रह्म पदार्थ क्या है.. आज तक किसी को नहीं पता। इसे आज तक किसी ने नहीं देखा। हजारों साल से एक मूर्ति से दूसरी मूर्ति में इस पदार्थ को रखा जा रहा है। ये एक अलौकिक पदार्थ है। मान्यता है कि जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के जिस्म के चिथड़े उड़ जाए। इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है। मगर ये क्या है, आज तक कोई नहीं जान पाया।

आसाढ़ के दो महीने आते हैं तब मूर्तियां बदली जाती हैं

भगवान जगन्नाथ और अन्य प्रतिमाएं उसी साल बदली जाती हैं, जब साल में आसाढ़ के दो महीने आते हैं। इस मौके को नव-कलेवर कहते हैं। मगर आज तक कोई भी पुजारी ये नहीं बता पाया कि महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ति में आखिर ऐसा क्या है?? कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथ में लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था, आंखों में पट्टी थी, हाथ में दस्ताने थे, तो हम सिर्फ महसूस कर पाए। 

मंदिर परिसर के अंदर जाते ही समुद्र का भयंकर आवाज गायब

आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते हैं। एक और सहस्य ये है कि भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की भयंकर आवाज सुनाई देने लगती है। 

मंदिर शिखर पर पक्षी नहीं बैठती, झंडा हवा के विपरीत लहराता है

अगला आश्चर्य ये है कि आपने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठी, उड़ती देखे होंगे, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरती, झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशा में लहराता है। दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती। भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदला जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा। 

हर दिशा से सुदर्शन चक्र आपकी ओर ही दिखाई देगा

इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपके मुंह यानि आपकी तरफ दीखता है। भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है। इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है। भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है। और भी कितनी ही आश्चर्यजनक बाते हैं, हमारे सनातन धर्म की। जय हो सनातन धर्म की, जय श्री जगन्नाथ स्वामी की।

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