High Court का अहम फैसला: कर्मचारी पर एक साथ नहीं चल सकतीं आपराधिक और विभागीय जांच
अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय ने तर्क दिया कि आपराधिक और विभागीय जांच में आरोप समान हैं और अधिकांश गवाह भी एक ही हैं। यदि विभागीय जांच में गवाहों का परीक्षण पहले हो जाता है, तो इसका प्रतिकूल प्रभाव आपराधिक मुकदमे पर पड़ेगा और याचिकाकर्ता के बचाव के अधिकार का उल्लंघन होगा। इसलिए, पहले आपराधिक मामले में गवाहों की गवाही होनी चाहिए।
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बिलासपुर, जनजागरुकता। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि किसी कर्मचारी के खिलाफ एक ही मामले में आपराधिक मुकदमा और विभागीय जांच एक साथ नहीं चलाई जा सकती। यह फैसला पामगढ़, जिला-जांजगीर चाम्पा के डी.एल. पठारे के मामले में सुनाया गया, जो पुलिस थाना पाटन, जिला दुर्ग में आरक्षक (कांस्टेबल) के पद पर पदस्थ थे।
डी.एल. पठारे के खिलाफ 10 सितम्बर 2024 को पुलिस थाना पाटन में एक आपराधिक मामला दर्ज हुआ, जिसका चालान न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। इसी आरोप को लेकर दुर्ग के पुलिस अधीक्षक ने उनके खिलाफ विभागीय जांच भी शुरू कर दी। इससे असंतुष्ट होकर डी.एल. पठारे ने हाईकोर्ट बिलासपुर में अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय के माध्यम से रिट याचिका दायर की।
अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय ने तर्क दिया कि आपराधिक और विभागीय जांच में आरोप समान हैं और अधिकांश गवाह भी एक ही हैं। यदि विभागीय जांच में गवाहों का परीक्षण पहले हो जाता है, तो इसका प्रतिकूल प्रभाव आपराधिक मुकदमे पर पड़ेगा और याचिकाकर्ता के बचाव के अधिकार का उल्लंघन होगा। इसलिए, पहले आपराधिक मामले में गवाहों की गवाही होनी चाहिए।
हाईकोर्ट ने तर्कों को मानते हुए रिट याचिका स्वीकार की और आदेश दिया कि आपराधिक मामले में गवाहों का परीक्षण होने तक विभागीय जांच पर रोक लगाई जाए। इस फैसले से स्पष्ट हो गया है कि एक ही मामले में एक साथ दो जांच प्रक्रियाएं नहीं चलाई जा सकतीं, जिससे प्राकृतिक न्याय का पालन सुनिश्चित हो सके।janjaagrukta.com