श्राद्धपक्ष.. क्या हमारे ऋषि-मुनि पागल थे..? जो कौवों के लिए खीर बनाते थे..

शास्त्र और प्रकृति के अनुसार ..इसलिए दिमाग को दौड़ाए बिना श्राद्ध करना प्रकृति के रक्षण के लिए नितांत आवश्यक है।

श्राद्धपक्ष.. क्या हमारे ऋषि-मुनि पागल थे..? जो कौवों के लिए खीर बनाते थे..

जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..

जनजागरुकता, धर्म डेस्क। सनातन धर्म हजारों साल से इंसान को इंसान से जोड़ना सिखाया है। प्रकृति से जुड़कर जीवन चक्र चलाना सिखाया है। जीओ ओर जीने दो का मार्ग प्रशस्त किया है। इसे ही केवल एक धर्म मानव धर्म कहा गया है। पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, मानव का प्रकृति से प्रेम, पशु-पक्षियों का मनुष्य से प्रेम, प्रकृति से लगाव रखने से श्रेष्ठ जीवन के लिए कैसे लाभ होते हैं इसकी बारीकियां बताई। 

इसीलिए दुनियाभर से वैज्ञानिक कहते हैं पहले सनातन धर्म को जानो.. फिर उसकी धार्मिक प्रक्रियाओं पर सवाल उठाओ। बता दें कि जब आपका विज्ञान नहीं था, तब हजारों साल पहले सनातन धर्म को पता था कि किस बीमारी का इलाज क्या है, कौन सी चीज खाने लायक है.. कौन सी नहीं..? अथाह ज्ञान का भंडार है सनातन धर्म।

सनातन धर्म से जुड़े अनेक नियम-कायदे ऐसे है जो शरीर को हमेंशा शांत, स्वस्थ और पुष्ट रखता है। वहीं आज मैकाले की शिक्षा पद्धति में पढ़कर केवल अपने पूर्वजों, ऋषि, मुनियों के नियमों पर ऊंगली ही उठाने के लायक बन पा रहे हैं। ऐसी मानसिकता को छोड़ सनातन की गहराई को जानेंगे तो घर, परिवार, समाज सब सच्चे मार्ग की ओर अग्रसर होंगे। 

प्रकृति से जुड़ने व धर्म में है इसका महत्व

प्रकृति से जुड़ने व धर्म में इसका महत्व दोनों तरह की बात हम आपको बता रहे हैं.. एक उदाहरण श्रद्धापक्ष में कौवे का बता रहे हैं। इस दौरान कौवे का इंतजार क्यों किया जाता है.. शास्त्रों में इससे जुड़ी कथा है, कौए से जुड़ी कई सारी मान्यताएं हैं। पितृपक्ष में कौए को भोजन कराना किस लिए आवश्यक है? आइए जानते हैं इसकी पौराणिक कथा.. 

यमराज का संदेश वाहक है कौवा

गरुड़ पुराण के अनुसार कौवा यमराज का संदेश वाहक है। पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं, पूजन अनुष्ठान करते हैं और अन्न-जल का भोग कौए के माध्यम से लगाते हैं। शास्त्रों के अनुसार कौआ यम का यानी यमराज का प्रतीक होता है। कौए को भोजन कराना अपने पितरों तक भोजन पहुंचाने के समान है। कौवे का आना और भोजन ग्रहण करना शुभ प्रतीक माना जाता है।  

..स्थिति में ये उपाय करें

मान्यता है कि कौवे को निवाला दिए बिना पितृ संतुष्ट नहीं होते। पितृपक्ष में हर परिवार अपने पितरों को खुश करने के अनेक प्रयास करते हैं, जिससे पितर उनके परिवार से खुश होकर उन्हें सफलता का आशीर्वाद दे। कईं बार हमारे घरों के आस-पास कौए नहीं मिलते, ऐसे में किसी अन्य पशु- कुत्ता, गाय के लिए भी थाली निकाली जा सकती है।

कौए को मिला है वरदान.. पितरों को मिलती है शांति

गरुड़ पुराण में पितृपक्ष के दौरान कौए को भोजन कराना सबसे उत्तम माना गया है। कौए का श्राद्ध पक्ष के दौरान इतना अधिक महत्व होने की एक खास वजह है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार यमराज ने कौए को वरदान दिया था कि तुम्हें दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा। तब से ही यह प्रथा चली आ रही है। श्राद्ध पक्ष में कौवे को खाना खिलाने से यमलोक में पितर देवताओं को शांति का अनुभव होता है। 

देता है ..यह संदेश

शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि श्राद्ध के बाद जितना जरुरी ब्राह्मण भोज होता है उतना ही जरुरी कौए को भोजन कराना भी होता है। यह अनूठा उदाहरण है जो हमें बताता है कि भारत के लोग अपनी संस्कृति के साथ पशुओं के प्रति भी प्रेम और आदर रखते हैं।

यहां समझें प्रकृति की व्यवस्था..

इसलिए आदिकाल से हमारे पूर्वज कहते रहे हैं और आज भी कहते हैं कि कौवों को खिलाएंगे तो हमारे पूर्वजों को मिल जाएगा। दूसरे पहलु में एक कारण ये है कि अध्ययन से पता चलता है कि हमारे ऋषि, मुनि क्रांतिकारी विचारों के थे। इसलिए कौए से जुड़े ..यह है सही कारण कि क्या पीपल या बड़ के बीज मिलते हैं? इसका जवाब है नहीं..

बरगद या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश करो, परंतु नहीं लगेगी।

कारण प्रकृति/कुदरत ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है।

बरगद-पीपल के बीजों की प्रोसेसिंग कौवे के पेट में..

ये दोनों वृक्षों के बीज कौवे खाते हैं और उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसिंग होती है ..और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं। उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं वहां-वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं। पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो round-the-clock ऑक्सीजन O2 छोड़ता है। वहीं प्रकृति में बरगद के औषधि गुण अपरंपार है।

बिना कौवे की मदद पीपल-बरगद उग नहीं सकता

देखो अगर यह दोनों वृक्षों को उगाना है तो बिना कौवे की मदद से संभव नहीं है, इसलिए कौवे को बचाना पड़ेगा ही। और यह होगा कैसे? इसकी पूरी प्रक्रियाओं का अनुभव हमारे ऋषि-मुनियों को था.. जो इनकी प्रकृति को जानते, समझते थे। बता दें कि मादा कौआ भादो महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है। तो इस नयी पीढ़ी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है, इसलिए ऋषि-मुनियों ने कौवों के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राद्ध के रूप मे पौष्टिक आहार की व्यवस्था कर दी। जिससे कि कौवों की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जाये। इसलिए दिमाग को दौड़ाए बिना श्राद्ध करना प्रकृति के रक्षण के लिए नितांत आवश्यक है।

बरगद और पीपल को देख पूर्वज याद आएंगे

घ्यान रखना जब भी बरगद और पीपल के पेड़ को देखो तो अपने पूर्वज तो याद आएंगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं। सनातन धर्म विज्ञान पर आधारित है। उस पर उंगली उठाने वाले पहले सनातन धर्म को जानो.. फिर..। जब आपका विज्ञान नहीं था, तब हमारे सनातन धर्म को पता था कि प्रकृति के साथ जीना कैसे है। 

पितृपक्ष में इसलिए मृतक के पसंद की चीज बनानी चाहिए..

पितरों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर ही करना चाहिए। इस दिन घर की अच्छी तरह से सफाई करनी चाहिए। पितृ पक्ष में गाय, कुत्ते और कौए को भोजन अवश्य कराना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से पितरों को हमारे द्वारा दिया गया भोजन प्राप्त होता है। पितृ पक्ष में जिस व्यक्ति का श्राद्ध कर रहे हैं उसका मनपसंद भोजन जरूर बनाना चाहिए। पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन अवश्य कराना चाहिए और उन्हें अपने सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए।

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