प्रार्थना नष्ट नहीं होती.. जीवन से संतुष्ट होने का मार्ग मिल ही जाता है
कुम्हार ने बाल श्री कृष्ण को घड़े से बाहर निकाला और उनके चरणों में साष्टांग प्रणाम किया। प्रभु जी के गले लगकर इतना रोये कि प्रभु में ही विलीन हो गए।
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। एक सुंदर कथा है, विश्वास और मनन कीजिये। अच्छी लगे तो दूसरों को भी भेजिए! जीवन सुखमय बनाना है, शांतिमय जीवन व्यतीत हो इसके लिए प्रभु के साथ ऐसा ही प्रेम होना चाहिए ..जैसे हम नीचे बता रहे हैं.. प्रार्थना नष्ट नहीं होती। उपयुक्त समय पर क्रियान्वित होती है..
एक बार की बात है कि यशोदा मैया प्रभु श्री कृष्ण के उलाहनों से तंग आ गयीं और छड़ी लेकर श्री कृष्ण की ओर दौड़ीं। जब प्रभु ने अपनी मैया को क्रोध में देखा तो वे अपना बचाव करने के लिए भागने लगे। भागते-भागते श्री कृष्ण एक कुम्हार के पास पहुंचे।
कुम्हार तो मिट्टी का घड़ा बनाने में व्यस्त था। लेकिन जैसे ही कुम्हार ने श्री कृष्ण को देखा तो वह बहुत प्रसन्न हो गया। कुम्हार जानता था कि श्री कृष्ण साक्षात् परमेश्वर हैं। तब प्रभु ने कुम्हार से कहा कि 'कुम्हार जी, आज मेरी मैया मुझ पर बहुत क्रोधित हैं। मैया छड़ी लेकर मेरे पीछे आ रही हैं। भैया, मुझे कहीं छुपा लो।' तब कुम्हार ने श्री कृष्ण को एक बड़े से मटके के नीचे छिपा दिया।
कुछ ही क्षणों में मैया यशोदा भी वहां आ गयीं और कुम्हार से पूछने लगीं- 'क्यूँ रे, कुम्हार! तूने मेरे कन्हैया को कहीं देखा है क्या?' कुम्भार ने कह दिया- 'नहीं, मैया! मैंने कन्हैया को नहीं देखा।' श्री कृष्ण ये सब बातें बड़े से घड़े के नीचे छुपकर सुन रहे थे। मैया तो वहां से चली गयीं। अब प्रभु श्री कृष्ण कुम्हार से कहते हैं- 'कुम्हार जी, यदि मैया चली गयी हो तो मुझे इस घड़े से बाहर निकालो।'
चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन
कुम्भार बोला- 'ऐसे नहीं, प्रभु जी! पहले मुझे चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन दो।' भगवान मुस्कुराये और कहा- 'ठीक है, मैं तुम्हें चौरासी लाख योनियों से मुक्त करने का वचन देता हूं। अब तो मुझे बाहर निकाल दो।' कुम्हार कहने लगा- 'मुझे अकेले नहीं, प्रभु जी! मेरे परिवार के सभी लोगों को भी चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन दोगे तो मैं आपको इस घड़े से बाहर निकालुंगा।' प्रभु जी कहते हैं- 'चलो ठीक है, उनको भी मुक्त होने का मैं वचन देता हूं। अब तो मुझे घड़े से बाहर निकाल दो।'
भगवान ने सभी विनती सुनी
अब कुम्हार कहता है- 'बस, प्रभु जी! एक विनती और है। उसे भी पूरा करने का वचन दे दो तो मैं आपको घड़े से बाहर निकाल दूंगा।' भगवान बोले- 'वो भी बता दे, क्या कहना चाहते हो ?' कुम्भार कहने लगा- 'प्रभु जी! जिस घड़े के नीचे आप छुपे हो, उसकी मिट्टी मेरे बैलों के ऊपर लाद के लायी गयी है। मेरे इन बैलों को भी चौरासी के बन्धन से मुक्त करने का वचन दो।' भगवान ने कुम्हार के प्रेम पर प्रसन्न होकर उन बैलों को भी चौरासी के बन्धन से मुक्त होने का वचन दिया।'
कुम्भार की प्रेम भरी बातें
प्रभु बोले- 'अब तो तुम्हारी सब इच्छा पूरी हो गयी, अब तो मुझे घड़े से बाहर निकाल दो।' तब कुम्हार कहता है- 'अभी नहीं, भगवन! बस, एक अन्तिम इच्छा और है। उसे भी पूरा कर दीजिये और वो ये है- जो भी प्राणी हम दोनों के बीच के इस संवाद को सुनेगा, उसे भी आप चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त करोगे। बस, यह वचन दे दो तो मैं आपको इस घड़े से बाहर निकाल दूंगा।' कुम्भार की प्रेम भरी बातों को सुन कर प्रभु श्री कृष्ण बहुत खुश हुए और कुम्हार की इस इच्छा को भी पूरा करने का वचन दिया।
प्रभु में ही विलीन हो गए
फिर कुम्हार ने बाल श्री कृष्ण को घड़े से बाहर निकाल दिया। उनके चरणों में साष्टांग प्रणाम किया। प्रभु जी के चरण धोये और चरणामृत पीया। अपनी पूरी झोपड़ी में चरणामृत का छिड़काव किया और प्रभु जी के गले लगकर इतना रोये कि प्रभु में ही विलीन हो गये।
गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाने वाले क्या..
जरा सोच करके देखिये, जो बाल श्री कृष्ण सात कोस लम्बे-चौड़े गोवर्धन पर्वत को अपनी इक्क्नी अंगुली पर उठा सकते हैं, तो क्या वो एक घड़ा नहीं उठा सकते थे। लेकिन बिना प्रेम रीझे नहीं नटवर नन्द किशोर। कोई कितने भी यज्ञ करे, अनुष्ठान करे, कितना भी दान करे, चाहे कितनी भी भक्ति करे, लेकिन जब तक मन में प्राणी मात्र के लिए प्रेम नहीं होगा, प्रभु श्री कृष्ण मिल नहीं सकते। जय श्री कृष्ण। जय श्री राधे राधे।
सही समय पर ही क्रियान्वयन
एक सुंदर कथा है, विश्वास और मनन कीजिये। अच्छी लगे तो दूसरों को भी भेजिए! प्रार्थना नष्ट नहीं होती। उपयुक्त समय पर क्रियान्वित होती है। ईश्वर सदैव आप सभी को स्वस्थ व सुखी रखे।