कौन था पहला कावड़िया..? किसने किया था शिवलिंग का जल अभिषेक..?
कांवड़िया बिना चप्पल के बहुत दूर तक चलकर गंगा जल के रूप में जल लाते हैं। इस दौरान शर्त यह होती है कि कांवड़ी, शिव कांवड़ को जमीन पर नहीं रखता।
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। श्रावण का महीना आते ही हर कोई शिव की भक्ति में डूब जाना चाहता है। मन भजन-कीर्तन से झूमने लगता है। इस पावन अवसर पर पूरे उत्तर भारत और अन्य राज्यों से कांवड़िये शिव के पवित्र धामों में जाते हैं और वहां से गंगाजल लाकर शिव जी का अभिषेक करते हैं।
कांवड़िया बिना चप्पल के बहुत दूर तक चलकर गंगा जल के रूप में जल लाते हैं। इस दौरान शर्त यह होती है कि कांवड़ी, शिव कांवड़ को जमीन पर नहीं रखता। इस तरह शिव भक्त अनेक कठिनाइयों का समाना करते हुए गंगा जल लाते हैं और शिव जी का जलाभिषेक करते हैं।
परन्तु क्या आपने कभी यह सोचा है कि आखिर वह कौन पहला व्यक्ति होगा जो सबसे पहला कांवड़ी था जिसने सबसे पहले भगवान शिव का जल से अभिषेक कर उनकी कृपा प्राप्त करी और इस धार्मिक पावन परम्परा का आरम्भ किया।
ये है पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा सहस्रबाहु ऋषि जमदग्नि के यहां पधारे। ऋषि जमदग्नि ने उनका बहुत अच्छी तरह से आदर सत्कार किया। उनकी सेवा में किसी भी तरह की कमी नहीं आने दी। सहस्त्रबाहु ऋषि के आदर सत्कार से बहुत ही प्रसन्न हुए। परन्तु उसे यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर एक साधारण एवं गरीब ऋषि उसके और उसकी सेना के लिए इतना सारा भोजन कैसे जुटा पाए।
कामधेनु गाय के प्रति सहस्त्रबाहु को लालच आ गया
तब उसे अपने सैनिकों से यह पता लगाया कि ऋषि जमदग्नि के पास एक कामधेनु नाम की दिव्य गाय है जिससे कुछ भी मांगो वह सब कुछ प्रदान करती है। जब राजा को यह ज्ञात हुआ कि आश्रम में मौजूद कामधेनु गाय के कारण ऋषि जमदग्नि संसाधन जुटाने में कामयाब हो पाए। उसके बाद राजा के मन में लालच आ गया, अब सहस्त्रबाहु उस गाय को प्राप्त करने के लिए के मन में उपाय सोचा।
ऋषि जमदग्नि की हत्या कर कामधेनु गाय ले गया
सहस्त्रबाहु ने ऋषि से कामधेनु गाय मांगी, परन्तु ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु गाय को देने से मना कर दिया। इस पर सहस्रबाहु अत्यंत क्रोधित हो गया और उसने कामधेनु गाय को प्राप्त करने के लिए ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी।
परशुराम ने सहस्त्रबाहु को मार दिया
जब यह खबर ऋषि जमदग्नि के पुत्र भगवान परशुराम को पता लगी कि सहस्त्रबाहु ने उनके पिता की हत्या कर दिया है और कामधेनु गाय को अपने साथ ले गया है, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। परशुराम ने अपने फरसे से सहस्त्रबाहु की सभी भुजाओं को कट कर उसको समाप्त कर दिया।
पिता ने अभिषेक की आज्ञा दी
बाद में भगवान परशुराम ने अपनी तपस्या के प्रभाव से अपने पिता जमदग्नि को पुनः जीवनदान दिया। जब ऋषि को यह बात पता चली कि परशुराम ने सहस्त्रबाहु को समाप्त कर दिया, तो उन्होंने इसके पश्चाताप के लिए परशुराम जी से भगवान शिव का जलाभिषेक करने को कहा।
शिवलिंग की स्थापना कर महाभिषेक किए
तब परशुराम अपने पिता की आज्ञा से अनेकों मील दूर चलकर गंगा जल लेकर आए और आश्रम के पास ही शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का महाभिषेक किए और उनकी स्तुति की। कहा जाता है जिस क्षेत्र में भगवान परशुराम ने अलौकिक शिवलिंग की स्थापना की थी उस क्षेत्र का प्रमाण आज भी मौजूद है। वह क्षेत्र उत्तर प्रदेश में आता है जो पूरा महादेव के नाम से प्रसिद्ध है।