नया संसद भवन : 75 साल बाद.. पुनर्जीवित होगी ऐतिहासिक परंपरा

14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी। सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक राजदंड.. सेंगोल को छुपाया गया। प्रतिमाओं मं भगवान शिव के हाथों में भी सेंगोल प्रतीक दिखाई देता है।

नया संसद भवन : 75 साल बाद.. पुनर्जीवित होगी ऐतिहासिक परंपरा

नई दिल्ली, जनजागरुकता डेस्क। भारत में रिकॉर्ड समय में नए संसद भवन के निर्माण के बाद कल 28 मई 2023 को एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होगी। इसके पीछे युगों से जुड़ी हुई एक परंपरा है। इसे तमिल में सेंगोल कहा जाता है और इसका अर्थ संपदा से संपन्न और ऐतिहासिक है। 

पीएम नरेंद्र मोदी संसद का नवनिर्मित भवन राष्ट्र को समर्पित करेंगे। इस नई संचरना को करीब 60,000 श्रमयोगियों ने अपना योगदान दिया है। ना कहीं घोटाला, ना कहीं गड़बड़ी। समय पर देश को समर्पित भी हो रहा है।

इतिहास पर नजर डालें तो 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी। इसके 75 साल बाद भी आज देश के अधिकांश नागरिकों को इस घटना की जानकारी नहीं है। सेंगोल का इतिहास देखें तो अनेक धार्मिक स्थलों पर भगवान शिव के हाथों सेंगोल का प्रतीक है। इसका मतलब साफ है कि सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक सेंगोल को सौंपते की परंपरा हजारों साल पुरानी है।

गहन जांच के बाद देश के सामने रखने का निर्णय

सेंगोल ने हमारे इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी। यह सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। इसकी जानकारी पीएम नरेंद्र मोदी को मिली तो इसकी गहन जांच करवाई गई। फिर निर्णय लिया गया कि इसे देश के सामने रखा जाना चाहिए। इसके लिए नए संसद भवन के लोकार्पण के दिन को चुना गया। सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक सेंगोल को वैदिक मंत्रोच्चार के साथ संसद भवन में स्थानांतरित किया जाएगा।

संसद भवन से उपयुक्त और पवित्र स्थान कोई नहीं

लोकसभा अध्यक्ष की आसंदी के पास राजदंड सेंगोल स्थापित किया जाएगा।

विद्वान विचारकों के विचार विमर्श के बाद तय किया गया कि सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से उपयुक्त और पवित्र स्थान कोई और हो ही नहीं सकता। इसलिए जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन पीएम नरेंद्र मोदी तमिलनाडु से आए हुए अधीनम से सेंगोल को स्वीकार करेंगे और लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे।

राजदंड.. सेंगोल को आखिर क्यों छुपाया गया..?

अंग्रेजों ने जवाहर लाल नेहरू को सौंप दिया था।

सवाल पर सवाल..

इस बात को लेकर देशभर में सवाल उठाए जा रहे हैं। कि 1947 से इसे क्यों छुपाया गया? बाद में परंपरा का पालन क्यों नहीं किया गया? इसे गायब किसने किया? क्या ऐसा विशेष पंथों को खुश करने के लिए किया गया? ऐसी और कितनी बातें छिपी हैं और क्यों?

..इस संदेश के साथ सेंगोल सौंपा गया था

नटराज के हाथ में सेंगोल...शिवतांडव और धर्मदंड सेंगोल का सीधा संबन्ध है।

इतिहास के एक रिकॉर्ड अनुसार सेंगोल को एक पवित्र हिंदू समारोह में देश छोड़ने से पहले अंग्रेजों ने जवाहर लाल नेहरू को सौंप दिया था। पर इसकी महत्ता किसी को समझ नहीं आई। सेंगोल पर खुदी तमिल में यह कविता है :.. यह हमारा आदेश है कि भगवान (शिव) के अनुयायी, राजा, स्वर्ग में शासन करेंगे ..इस तरह, 15 अगस्त 1947 को सत्ता एक हिंदू 'राजा' को स्थानांतरित कर दी गई, जिसे एक जैसा शासन करने का आदेश दिया गया था।

यह गर्व का पल

यहां गर्व की बात है कि अंग्रेजों के बनाये गए संसद भवन से आत्मनिर्भर भारत के अपने संसद भवन में प्रवेश करना यकीनन हर भारतीय को गर्व से भर देने वाला होगा। ऐसा में कहा जाए तमिल में कविता अब सनातन सभ्यता में वापस आ रही है.. यह सनातन सभ्यता की पुनर्स्थापना नहीं, तो और क्या है?

अमृतकाल का हमारा संसद भवन

ये संसद आज भी है और सालों बाद जब हममें से कोई नहीं होगा तो उस आने वाली पीढ़ी के भारतीयों को भी ये हमेशा गर्व करने का मौक़ा देगा कि ये “आजाद भारत में बना हुआ अमृतकाल का हमारा संसद भवन है। यहां इमानदारी से निर्मित देश के सर्वोच्च भवन का विरोध करने वालों को लेकर ममन करने वाली बात भी है। आप यह समझ गए होंगे कि कुछ विरोधी मानसिकता के लोग नए संसद भवन उद्घाटन समारोह का बहिष्कार क्यों कर रहे हैं?

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