विचारणीय.. लोक व्यवहार के बगैर सारी डिग्रियां, उपलब्धियां बेकार..

दुर्भाग्यवश आज से चार साल पहले उसने वहीं अमेरिका में सपरिवार आत्महत्या कर लिया। अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मारकर खुद को गोली मार दिया। आखिर ऐसा क्या हुआ? गड़बड़ कहां हुई?

विचारणीय.. लोक व्यवहार के बगैर सारी डिग्रियां, उपलब्धियां बेकार..

जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..

जनजागरुकता, विचारणीय डेस्क। लोक व्यवहार के बगैर कोई भी मनुष्य जीवन में आनंद नहीं पा सकता। डिग्रियां चाहे कितनी भी ले लो, सभी उपलब्धियां बेकार हो जाती है। एक उदाहरण से हम आपको लोक व्यवहार के बारे में बता रहे हैं..

एक बहुत ब्रिलियंट लड़का था। सारी जिंदगी पढ़ाई में प्रथम रहा। साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया। अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजीनियर, डॉक्टर, साइंटिस्ट, आईपीएस, आईएएस या बड़ी कंपनियों का बड़ा ऑफर होता है। ..सो उसका भी सिलेक्शन आईआईटी चेन्नई में हो गया। वहां से बीटेक किया और वहीं से आगे पढ़ने अमेरिका चला गया। यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निया से एमबीए किया।

अब इतना पढ़ने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है। उसने वहां भी हमेशा टॉप ही किया। वहीं नौकरी करने लगा। 5 बेडरूम का घर उसके पास। शादी चेन्नई की खूबसूरत लड़की से हुई। एक आदमी और क्या मांग सकता है अपने जीवन में? पढ़-लिख कर इंजिनियर बन गया। अमेरिका में सेटल हो गए। मोटी तनख्वाह की नौकरी। बीबी, बच्चे, सुख ही सुख। 

..लेकिन उसने परिवार सहित जीवन समाप्त कर लिया

लेकिन दुर्भाग्यवश आज से चार साल पहले उसने वहीं अमेरिका में सपरिवार आत्महत्या कर लिया। अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मारकर खुद को गोली मार दिया What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ? गड़बड़ कहां हुई? 

उनकी परिस्थितियों का पता लगाया गया..

ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया, फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा और उसमें बाकायदा अपने इस कदम को justify किया। उन्होंने यहां तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में। उनके इस केस को और उस suicide नोट को California Institute of Clinical Psychology ने ‘What went wrong?‘ जानने के लिए study किया गया।

अमेरिका में लगातार संघर्ष करते रहा

पहले कारण क्या था suicide नोट से और मित्रों से पता किया गया। अमेरिका की आर्थिक मंदी में उसकी नौकरी चली गयी। बहुत दिन खाली बैठे रहे। नौकरियां ढूंढते रहे। फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली तो मकान का किश्त जब टूट गया तो सड़क पर आने की नौबत आ गयी। कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पर तेल भरा करता था। साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर पति-पत्नी ने अंत में ख़ुदकुशी कर ली।

..पर असफलता का सामना करने नहीं सिखाया गया

इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने। This man was programmed for success but he was not trained, how to handle failure. यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था। पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए।

..उस पर शुरू से नज़र डालते हैं

अब उसके जीवन पर शुरू से नज़र डालते हैं। पढ़ने में बहुत तेज़ रहा। हमेशा टॉपर रहा। ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूं जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आये। कोई गलती न हो उससे। गलती हुई तो यूं मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया हो और इसके लिए वो सब कुछ करते हैं हमेशा फर्स्ट आने के लिए। 

हर वक्त केवल पढ़ाई, डिग्री का बोझ..

फिर ऐसे बच्चे चूंकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेल-कूद, घूमना-फिरना, लड़ाई-झगड़ा, मार-पीट, ऐसे पंगों से उन्हें मौका कम मिलता है बेचारों को। 12th कर निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लादा गया बेचारे पर। वहां से निकले तो एमबीए और अभी पढ़ ही रहे थे कि मोटी तनख्वाह की नौकरी। अब मोटी तनख्वाह तो बड़ी जिम्मेदारी। यानि बड़े बड़े targets।

ज़िदगी के अलग-अलग परिक्षाओं से गुजरना होता है 

कमबख्त ये दुनिया बड़ी कठोर है और ये ज़िदगी अलग से इम्तहान लेती है। आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे। वहां कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता। ये ज़िदगी अपना अलग question paper सेट करती है। और सवाल सब out ऑफ़ syllabus होते हैं। टेढ़े-मेढ़े, ऊटपटांग और रोज़ इम्तहान लेती है कोई डेट sheet नहीं। 

एक उदाहरण..

एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया। आगे जाकर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया। उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह। अभी थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा। किसी तरह झाड़ियों में घुस कर जान बचाई, तो सामने से भेड़िये आते दिखे। बहुत देर वहीं झाड़ियों में दुबका रहा। किसी तरह माँ के पास वापस पहुंचा तो बोला, माँ, वहां तो बहुत खतरनाक जंगल है Mom, there is a jungle out there.

बच्चों को जीवन के हर पहलुओं का ज्ञान हो.. ऐसा प्रयास करें..

इसका सार यही है कि इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग बच्चों को अवश्य दिजिए। बच्चों को पढ़ाई के साथ संस्कार भी आवश्यक है। हर परिस्थिति को ख़ुशी-ख़ुशी, धैर्य के साथ झेलने की क्षमता और उससे उबरने का तरीका विकसित करना जरूरी है। विवेक बच्चों में होना ज़रूरी है। माता-पिता बच्चों के सफल जीवन के लिए महापुरुषों के जीवन संघर्ष, बलिदान, जय-पराजय, हानि-लाभ, यश-अपयश, धैर्य, त्याग, संघर्ष और संतोष  की शिक्षा अवश्य देना चाहिए।

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