बहुला चतुर्थी आज.. श्री कृष्ण और गणेश जी से पाएं कृपा.. और पाएं ये आशीर्वाद

इसे संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। संतान की प्राप्ति के लिए भी है महत्व। वहीं साधक को बल, बुद्धि, विद्या और धन-धान्य का आशीर्वाद मिलता है।

बहुला चतुर्थी आज.. श्री कृष्ण और गणेश जी से पाएं कृपा.. और पाएं ये आशीर्वाद

जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..

जनजागरुकता, धर्म डेस्क। हलशष्ठी के पहले बहुला चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) की पूजा का विधान है। सनातन धर्म के अनुसार आज, 03 सितंबर 2023 को भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी है। इस चतुर्थी को बहुला चतुर्थी या बहुला चौथ के नाम से जाना जाता है। इस दिन गणेशजी की पूजा के साथ श्री कृष्ण और गायों की पूजा की जाती है। 

मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर भगवान श्री कृष्ण और गणेश जी की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक को बल, बुद्धि, विद्या और धन-धान्य का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन संकष्टी चतुर्थी के साथ ही बहुला चतुर्थी का व्रत भी रखा जाता है, इसलिए इसे कृष्ण चतुर्थी या बहुला चौथ के नाम से जाना जाता है। 

इसलिए आज है बहुलाचौथ

हम बता रहे हैं कि बहुलाचौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व क्या है। पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 02 सितंबर को रात 08 बजकर 49 मिनट से शुरू होकर 03 सितंबर को शाम 6 बजकर 24 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि 03 सितंबर को प्राप्त हो रही है। ऐसे में संकष्टी चतुर्थी और बहुला चतुर्थी का व्रत 03 सितंबर 2023, रविवार के दिन रखा जा रहा है।

ये है पूजा विधि

-बहुला चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें।

-शाम के समय भगवान गणेश, भगवान श्री कृष्ण और गौ माता की उपासना करें। 

-पूजा के लिए भगवान श्रीकृष्ण के किसी ऐसे चित्र या प्रतिमा को पूजा स्थान पर स्थापित करें, जिसमें उनके साथ गाय भी हो।

-सबसे पहले भगवान को कुमकुम तिलक लगाएं और हार-फूल अर्पित करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। इसके बाद अबीर-गुलाल आदि चीजें चढ़ाएं।

-कृष्ण और गणेश जी की पूजा के बाद गाय सहित बछडे़ की पूजा करें। 

इस बहुला चतुर्थी का ये है महत्व

धार्मिक मान्याताओं के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन भगवान गणेश की उपासना के साथ ही गौ माता की भी उपासना की जाती है। मान्यता है कि बहुला चतुर्थी के दिन गाय माता की पूजा और सेवा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश और चंद्र देव की उपासना करने से जीवन में आ रही कई प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं।

ये है इस व्रत की कथा

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कृष्णजी की लीलाओं को देखने के लिए कामधेनु गाय ने बहुला के रूप में नन्द की गोशाला में प्रवेश किया। कृष्ण जी को यह गाय बहुत पसंद आई, वे हमेशा उसके साथ समय बिताते थे। बहुला का एक बछड़ा भी था, जब बहुला चरने के लिए जाती तब वो उसको बहुत याद करता था। एक बार जब बहुला चरने के लिए जंगल गई और चरते-चरते वो बहुत आगे निकल गई। वह इस दौरान एक शेर के पास जा पहुंची। शेर उसे देखकर खुश हो गया और अपना शिकार बनाने की सोचने लगा। 

बहुला डर गई, और उसे अपने बछड़े का ही खयाल आ रहा था। जैसे ही शेर उसकी ओर आगे बढ़ा, बहुला ने उससे बोला कि वो उसे अभी न खाए, घर में उसका बछड़ा भूखा है, उसे दूध पिलाकर वो वापस आ जाएगी तब वो उसे अपना शिकार बना ले। शेर ने कहा कि मैं कैसे तुम्हारी इस बात पर विश्वास कर लूं ? तब बहुला ने उसे विश्वास दिलाया और कसम खाई कि वो जरुर आएगी।

बहुला वापस गौशाला जाकर बछड़े को दूध पिलाती है, और बहुत प्यार कर, उसे वहां छोड़कर वापस जंगल में शेर के पास आ जाती है। शेर उसे देख हैरान हो जाता है। दरअसल ये शेर के रूप में कृष्ण होते हैं, जो बहुला की परीक्षा लेने आते हैं। कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ जाते है और बहुला को कहते हैं कि मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हुआ। तुम परीक्षा में सफल रही। 

समस्त मानव जाति द्वारा सावन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारी पूजा अर्चना की जाएगी और समस्त जाति तुमको गौमाता कहकर संबोधित करेगी। जो भी ये व्रत रखेगा उसे सुख, समृद्धि, धन, ऐश्वर्या व संतान की प्राप्ति होगी।

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