सप्तधान अर्पित करने से प्रसन्न हो जाते हैं न्याय के देवता शनिदेव
कहते हैं शनिदेव को सप्तधान अर्पित करने वालों के अच्छे दिन शुरू हो जाते हैं। शनि दोष से राहत मिलती है।
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। इस वर्ष शनि जन्मोत्सव बहुत खास रहा। क्योंकि इसी दिन गजकेसरी योग, शोभन योग का संयोग भी बना है। जो साधक के जीवन से दुखों को दूर कर खुशियों का खजाना भर देंगे। इन शुभ योगों में शनिदेव की विधि-विधान से पूजा कई गुना फल प्रदान करेगी।
वैसे तो शनि देव की पूजा में ज्यादा सामग्री की जरुरत नहीं होती है, लेकिन कुछ खास चीजें हैं जो उन्हें अति प्रिय है। कहते हैं शनिदेव को सप्तधान अर्पित करने वालों के अच्छे दिन शुरू हो जाते हैं। शनि दोष से राहत मिलती है। आइए जानते हैं शनि देव को क्यों प्रिय है सप्तधान और इससे क्या फल प्राप्त होगा।
शनिदेव को अर्पित करने एक-एक किलो सात प्रकार के अनाज, कुछ लोहे की कील, आधा किलो तिल, आधा किलो काले चने के साथ एक नीले कपड़े में बांध लें और इसे किसी शनि मंदिर में दान कर दें। ऐसा करने से शनि की कृपा प्राप्त होती है और कष्टों का नाश होता है।
सप्तधान से शनि देव का ये है संबंध
पौराणिक कथा के अनुसार शनिदेव एक बार कुछ गंभीर चिंतन कर रहे थे, तभी नारद जी ने उनसे इस चिंता का कारण पूछा। शनिदेव ने कहा कि मुझे कर्मों के अनुसार सप्त ऋषियों के साथ न्याय करना है लेकिन उससे पहले सात ऋषियों की परीक्षा लेनी है। नारद मुनि ने शनि देव को इस समस्या का एक उपाय सुझाया, जिसका पालन करते हुए शनि देव ब्राह्मण के रूप में सप्त ऋषियों के समक्ष पहुंच गए।
जब शनि देव ने ली सप्तऋषियों की परीक्षा
सप्त ऋषियों के साथ शनि देव खुद की बुराई करने लगे, लेकिन सप्त ऋषियों ने उनके लिए जरा भी कड़वे बोल नहीं बोले। साथ में ये कहा कि शनि देव तो कर्मों के फलदाता हैं और उनका न्याय गलत नहीं है। सप्त ऋषियों से अपने प्रति ऐसी बातें सुनकर शनिदेव प्रसन्न हो गए और अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए। उसके बाद सप्तऋषियों ने 7 प्रकार के अनाज से शनिदेव की पूजा की। प्रसन्नचित शनिदेव ने कहा जो व्यक्ति सप्त धान से मेरी पूजा करेगा, उस पर मेरी बुरी दृष्टि नहीं पड़ेगी। तभी से कर्म फलदाता को सप्तधान अर्पित किए जाते हैं।