हाथियों के संरक्षण में अफसर काम आ रहा और न दफ्तर, फिर गई एक हाथी की जान
अब तक मानव और हाथियों के बीच संघर्ष में 3 साल के रिकॉर्ड देखें तो बिजली के करंट से 50 हाथियों की जान जा चुकी है।
अंबिकापुर, जनजागरुकता। प्रदेश के वन क्षेत्र से लगे इलाकों में हाथियों की मौत का मामला बढ़ते जा रहा है। अब तक मानव और हाथियों के बीच संघर्ष में 3 साल के रिकॉर्ड में 50 हाथियों की जान जा चुकी है। रिकॉर्ड देखें तो हाथियों के संरक्षण में कोई काम नहीं आ रहा, न अफसर और न दफ्तर।
सरगुजा के सूरजपुर जिले के घुई वन परिक्षेत्र में एक दंतैल हाथी की करंट लगने से मौत हो गई है। एक महीने पहले भी सूरजपुर जिले में एक मादा हाथी की मौत हो गई थी। रिकॉर्डे देखें तो 7 साल में जिले में 38 हाथियों की जान जा चुकी है। घुई रेंज के पकनी गांव में हाथी का शव रविवार की सुबह ग्रामीणों ने देखा और इसकी जानकारी वन विभाग के कर्मचारियों को दी।
उसके बाद हाथी का शव मिलने की जानकारी पर फारेस्ट विभाग के अधिकारी व वेटनरी डॉक्टर मौके पर पहुंचे। बताया गया है पकनी के जंगल में एक नाला है, उसके आसपास लोगों ने खेत बना लिया है जहां वे खेती करते हैं। नाले में पंप लगाकर सिंचाई करते हैं। यहीं पर सिचाई पंप चलाने बिजली पोल से हुकिंग कर मोटे तार को बांस के पोल के सहारे खेत तक ले जाया गया है। इसी तार के संपर्क में आने से हाथी को करंट लगा।
बताया गया कि यह भी आशंका है कि फसलों को बचाने के लिए भी तार को बिछाया गया होगा। इससे मौके पर हाथी की मौत हो गई। जांच में पता चला कि तरंगित तार से हाथी के शरीर में गहरा जख्म हो गया है। सुबह ग्रामीण जंगल की तरफ गए तो हाथी का शव दिखा। डॉक्टर महेंद्र पांडे ने बताया कि हाथी की मौत करेंट लगने से हुई है।
3 साल में प्रदेश में 50 हाथियों और 225 लोगों की मौत हुई
एक आंकड़े के अनुसार प्रदेश में 3 साल में 50 हाथियों की मौत हो चुकी है। वहीं 225 लोगों की हाथियों के हमले से जान गई है। इसमें सबसे ज्यादा मौत सरगुजा संभाग में हुई है। अधिकांश मामलों में हाथियों की मौत इंसान व हाथियों के बीच होने वाला संघर्ष कारण सामने आया है।
हाथियों के संरक्षण के लिए कोई काम नहीं आ रहा
सरगुजा क्षेत्र में हाथियों का रहवास क्षेत्र होने के कराण यहां एलिफेंट उप निदेशक, वाइल्ड लाइफ के सीएफ, साथ ही मैदानी अमला को गजराज वाहन, हाथी मित्र भी हैं, लेकिन इसके बाद भी हाथियों की लगातार मौत हो रही है। वहीं सबसे हैरानी की बात है कि वन विभाग को इतना सब कुछ होने के बाद भी मौत की खबर गांव वालों से मिलती है।
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