श्राद्धपक्ष.. फिर दुखी होकर पितर अपने सगे-सम्बधियों का रक्त चूसने लगते हैं

पितरों के श्राप से परिवार में कभी मंगल नहीं होता। हजारों साल पुराने हमारे धर्म ग्रंथों में इसका प्रमाण है। श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं माना गया है।

श्राद्धपक्ष.. फिर दुखी होकर पितर अपने सगे-सम्बधियों का रक्त चूसने लगते हैं

जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..

जनजागरुकता, धर्म डेस्क। हम जिनकी बदौलत इस दुनिया में आए। उनके सानिध्य में दुनिया की जानकारी हासिल की। सुख-दुख सभी का अनुभव किया। उसके बाद स्वयं के कर्मों से दुनिया की चीज पाई। मान-सम्मान पाया.. क्या साल में एक बाद उन अदृश्य पूर्वजों को मान-सम्मान देने के लिए हमारे पास समय नहीं है..? उनकी अनदेखी करते हैं, उपेक्षा करते हैं.. अगर ऐसा है ..तो भविष्य में हम दुख झेलने के लिए तैयार रहें..

जी हां यह सच है.. हजारों साल पुराने हमारे धर्म ग्रंथों में इसका प्रमाण है। श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं माना गया है। और ये भी सच बताया गया है कि वंशवृद्धि के लिए तो पितरों की आराधना, मान-सम्मान ही एकमात्र उपाय है।

मार्कण्डेयपुराण कहता है..

मार्कण्डेयपुराण के अनुसार माना जाता है कि जल-अन्न अर्पित नहीं करने पर पितर बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले, पितर में जल-अन्न अर्पित न करने पर हमारे पीतर दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप देते हैं.. और फिर वे अपने सगे-सम्बधियों का रक्त चूसने लगते हैं।

जीवन भर कष्ट-ही-कष्ट

इसका परिणाम ये होता है कि फिर अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट-ही-कष्ट झेलना पड़ता है। यहां तक मरने के बाद नरक में जाना पड़ता है। मार्कण्डेयपुराण में बताया गया है कि जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता है, उसमें दीर्घायु, निरोग व वीर संतान जन्म नहीं लेती हैं। और वहीं परिवार में कभी मंगल नहीं होता है। परिवार में चारों ओर दुख, तकलीफ और अधक संघर्ष बना रहता है।

file photo

पितर प्रसन्न तो देवता भी..

आप जान लें कि पितर पक्ष तक हमारे स्व. पूर्वज धरती पर हमारे सभी क्रियाकलाप को देखते हैं। उनके लिए उनके वंशज क्या अर्पित कर रहे हैं। कितना समर्पित हैं इसका आंकलन करते हैं। इसलिए माना जाता है कि श्राद्ध से बढ़कर पूर्वजों के लिए और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है। और वंशवृद्धि के लिए तो पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है।

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