तंबाकू के धुएं से बच्चों के जीन में हो सकते हैं बदलाव, 7000 से अधिक रसायनों में से 69 हैं Cancer उत्पन्न करने वाले
तंबाकू का धुआं डीएनए के जीन अनुक्रम को नहीं बदलता, लेकिन डीएनए पर ऐसे निशान छोड़ सकता है जो जीन के सक्रिय या निष्क्रिय होने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। इन्हें 'डीएनए मिथाइलेशन' कहा जाता है।
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स्वास्थ्य, जनजागरुकता। धूम्रपान केवल करने वाले के लिए ही नहीं, बल्कि उसके आसपास मौजूद लोगों के लिए भी खतरनाक है। एक नए अध्ययन के अनुसार, सेकेंड हैंड स्मोक (पैसिव स्मोकिंग) के संपर्क में आने से बच्चों के जीन में परिवर्तन हो सकते हैं, जो भविष्य में गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ा सकते हैं। यह शोध बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया और इसे 'एनवायरमेंट इंटरनेशनल' पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि डीएनए में जीन की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले बदलाव 'एपिजीनोम' कहलाते हैं। पैसिव स्मोकिंग का मतलब है कि व्यक्ति खुद धूम्रपान नहीं करता, लेकिन आसपास के धुएं के संपर्क में आता है। तंबाकू का धुआं डीएनए के जीन अनुक्रम को नहीं बदलता, लेकिन डीएनए पर ऐसे निशान छोड़ सकता है जो जीन के सक्रिय या निष्क्रिय होने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। इन्हें 'डीएनए मिथाइलेशन' कहा जाता है।
बंद जगहों में बच्चे अधिक प्रभावित
हालांकि सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर सख्त प्रतिबंध लगाए गए हैं, लेकिन घरों में बच्चे अब भी पैसिव स्मोकिंग का शिकार हो रहे हैं। 2004 के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 40% बच्चे पैसिव स्मोकिंग के संपर्क में आते हैं। इसका असर उनके फेफड़ों, हृदय, मस्तिष्क के विकास और प्रतिरक्षा प्रणाली पर भी पड़ता है।
जीन पर गंभीर असर और बीमारियों का खतरा
पहले से यह ज्ञात था कि यदि गर्भावस्था के दौरान मां धूम्रपान करती है, तो यह बच्चे के जीन को प्रभावित कर सकता है। लेकिन यह अध्ययन पहली बार यह दिखाता है कि बचपन में तंबाकू के धुएं के संपर्क में आने से भी जीन पर गहरा असर हो सकता है। आईएसग्लोबल की प्रमुख शोधकर्ता मार्टा कोसिन-टॉमस के अनुसार, यह असर लंबे समय तक बना रह सकता है और आगे चलकर गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है।janjaagrukta.com