छेरछेरा त्यौहार : ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’, यह पर्व दान देने का पर्व है..

छत्तीसगढ़ में छेरछेरा त्यौहार तब मनाया जाता है, जब किसान अपने खेतों से पहली फसल काटकर एवं उसकी मिसाई कर अन्न (नया चावल) को अपने घरों में भंडारण कर चुके होते है।

छेरछेरा त्यौहार : ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’, यह पर्व दान देने का पर्व है..

रायपुर, जनजागरुकता। छत्तीसगढ़ में छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा के दिन बड़े ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार को छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं। इसे दान लेने-देने का पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन की कोई कमी नहीं होती, इस दिन बच्चे घर-घर जाकर छेरछेरा मांगते है और धन, चावल प्राप्त करते हैं।

इस पर्व में बच्चों और बड़े बुजुर्गों की टोलियां एक अनोखे बोल, बोल कर दान मांगते है। दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं और जब तक घर की महिलायें अन्न दान नहीं देंगी तब तक वे कहते रहेंगे ‘अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’। इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक हम नहीं जाएंगे।

यह त्यौहार क्यों मनाया जाता है?

छत्तीसगढ़ में छेरछेरा त्यौहार तब मनाया जाता है, जब किसान अपने खेतों से पहली फसल काटकर एवं उसकी मिसाई कर अन्न (नया चावल) को अपने घरों में भंडारण कर चुके होते है। यह पर्व दान देने का पर्व है। किसान अपने खेतों में साल भर मेहनत करने के बाद अपनी मेहनत की कमाई धन को दान देकर छेरछेरा त्यौहार मनाते हैं। माना जाता है कि दान देना महा पुण्य का कार्य होता है। किसान इसी मान्यता के साथ अपने मेहनत से उपजाई हुई धान का दान देकर महान पुण्य का भागीदारी निभाने हेतु छेरछेरा त्यौहार मनाते हैं। इस दिन बच्चे अपने गांव के सभी घरों में जाकर छेरछेरा कह कर अन्न का दान मांगते और सभी घरों में अपने कोठी अर्थात अन्न भंडार से निकालकर सभी को अन्नदान करते हैं। 

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