नैेतिकता का पाठ- धर्मात्मा तोता.. दुख के साथी को अंत तक नहीं छोड़ा..
किसी के सुख के साथी बनो.. न बनो, दुख के साथी जरूर बनो। यही धर्मनीति है और कूटनीति भी।
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। कथा कहती है कि- ब्राह्मण का रूप धारण कर शकरा पृथ्वी पर अवतरित हुए और पक्षी को संबोधित करते हुए कहा, हे शुक, हे पक्षियों में श्रेष्ठ, दक्ष की पोती (शुकी) धन्य हो गई है। आपको उसकी संतान के रूप में पाकर। मैं तुम से पूछता हूँ, तुम इस सूखे पेड़ को क्यों नहीं छोड़ते?
इस प्रकार प्रश्न करने पर शुक ने उन्हें प्रणाम किया और इस प्रकार उत्तर दिया.. आपका स्वागत है हे देवताओं के प्रमुख, मैंने अपनी कठोर तपस्या के गुण से आपको पहचान लिया है।
देवराज इन्द्र और धर्मात्मा तोते की यह कथा महाभारत से है। ..कहानी आगे कहती है, अगर किसी के साथ ने अच्छा वक्त दिखाया है तो बुरे वक्त में उसका साथ छोड़ देना ठीक नहीं।
एक शिकारी ने शिकार पर तीर चलाया। तीर पर सबसे खतरनाक जहर लगा हुआ था, पर निशाना चूक गया। तीर हिरण की जगह एक फले-फूले पेड़ में जा लगा। पेड़ में जहर फैला। वह सूखने लगा। उस पर रहने वाले सभी पक्षी एक-एक कर उसे छोड़ गए। पेड़ के कोटर में एक धर्मात्मा तोता बहुत बरसों से रहा करता था। तोता पेड़ छोड़ कर नहीं गया, बल्कि अब तो वह ज्यादातर समय पेड़ पर ही रहता। दाना-पानी न मिलने से तोता भी सूख कर कांटा हुआ जा रहा था।
तोते से मिलने इंद्र पृथ्वी पर आए
बात देवराज इन्द्र तक पहुंची। मरते वृक्ष के लिए अपने प्राण दे रहे तोते को देखने के लिए इन्द्र स्वयं वहां आए। धर्मात्मा तोते ने उन्हें पहली नजर में ही पहचान लिया। इन्द्र ने कहा, देखो भाई इस पेड़ पर न पत्ते हैं, न फूल, न फल। अब इसके दोबारा हरे होने की कौन कहे, बचने की भी कोई उम्मीद नहीं है। जंगल में कई ऐसे पेड़ हैं, जिनके बड़े-बड़े कोटर पत्तों से ढके हैं। पेड़ फल-फूल से भी लदे हैं। वहां से सरोवर भी पास है। तुम इस पेड़ पर क्या कर रहे हो, वहां क्यों नहीं चले जाते ?
इसी में जन्मा, सुख पाया इसलिए इसे नहीं छोड़ सकता
तोते ने जवाब दिया, देवराज.. मैं इसी पर जन्मा, इसी पर बढ़ा, इसके मीठे फल खाए।इसने मुझे दुश्मनों से कई बार बचाया। इसके साथ मैंने सुख भोगे हैं। आज इस पर बुरा वक्त आया तो मैं अपने सुख के लिए इसे त्याग दूं। जिसके साथ सुख भोगे, दुख भी उसके साथ भोगुंगा, मुझे इसमें आनन्द है।
इंद्र बोले मैं प्रशन्न हूं
आप देवता होकर भी मुझे ऐसी बुरी सलाह क्यों दे रहे हैं ?' यह कह कर तोते ने तो जैसे इन्द्र की बोलती ही बन्द कर दी। तोते की दो-टूक सुन कर इन्द्र प्रसन्न हुए, बोले, मैं तुमसे प्रसन्न हूं। कोई वर मांग लो।
वरदान में सूखे पेड़ को हरा-भरा करने कहा
तोता बोला, मेरे इस प्यारे पेड़ को पहले की तरह ही हरा-भरा कर दिजिए। देवराज ने पेड़ को न सिर्फ अमृत से सींच दिया, बल्कि उस पर अमृत भी बरसाया। पेड़ में नई कोपलें फूटीं। वह पहले की तरह हरा हो गया, उसमें खूब फल भी लग गए। तोता उस पर बहुत दिनों तक रहा, मरने के बाद देवलोक को चला गया।
भीष्म ने युधिष्ठिर को यह कथा सुनाई
युधिष्ठिर को यह कथा सुना कर भीष्म बोले, अपने आश्रयदाता के दुख को जो अपना दुख समझता है, उसके कष्ट मिटाने स्वयं ईश्वर आते हैं। बुरे वक्त में व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाता है। जो उस समय उसका साथ देता है, उसके लिए वह अपने प्राणों की बाजी लगा देता है। किसी के सुख के साथी बनो.. न बनो, दुख के साथी जरूर बनो। यही धर्मनीति है और कूटनीति भी।