सब कुछ लुटा के सीखे.. तो क्या सीखे..

विचारणीय.. आज के जमाने में लालची, स्वार्थी, धोखेबाज लोगों के चंगुल में फंसी हमारी बेटियों को, जिन्हें लगता है कि ये दुनिया अच्छी है.. उन्हें समर्पित।

सब कुछ लुटा के सीखे.. तो क्या सीखे..

जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..

जनजागरुकता, विचारणीय सीख। एक झील में एक मछली अपने माता-पिता के साथ रहती थी। उसके माता-पिता की सख़्त हिदायत थी, उथले पानी में किनारे पर न जाना।कभी-कभार बहुत जरूरी होता तो माता-पिता की कड़ी सुरक्षा व निगरानी में किनारे तक उथले पानी में जाती और यथाशीघ्र पुनः गहरे पानी में लौट आती।

छोटी मछली को गहरे पानी में सुरक्षा तो थी किन्तु उसे सूर्योदय व सूर्यास्त के समय पानी पर बिखरी हुई लालिमा, झील के किनारे लगे बड़े-बड़े पेड़ों पर बैठते और हवा में स्वच्छन्द उड़ते पक्षी बहुत लुभाते थे।

सूर्योदय और सूर्यास्त के समय क्षितिज पर उगता/डूबता हुआ सूरज बहुत अच्छा लगता था। उसे लगता था कि वहां धरती और आसमान मिलकर एक हो जाते हैं और वो वहां तक तैर कर जा सकती है। वह सोचती उसे भी कभी उड़ने का मौका मिलता तो वह उड़कर चांद-तारों के पार चली जाती, और तमाम सितारे लाकर अपनी झील में सजाती।

मछली ने बचपन छोड़कर यौवन की दहलीज़ पर कदम रखा ही था.. अब इसे यौवन की उमंग कहिये चाहे हार्मोनल इफ़ेक्ट, माता-पिता की बन्दिशें उसे पैरों में पड़ी हुई बेड़ियां लगतीं थी। वो मां-बाप की नज़रों से छुपकर कभी-कभार किनारे पर जाती जरूर थी। 

एक दिन वो किनारे पर सुरक्षित गहराई से झील के बाहर की दुनियां का अवलोकन कर रही थी कि उसे एक बगुले ने पुकारा। ये उसके लिए मित्रता का आमन्त्रण था। युवा मछली ने उसका आमन्त्रण स्वीकार नहीं किया, परन्तु एकदम मना भी नहीं किया।

किन्तु सुरक्षित दूरी से बात और मुलाक़ात की शुरुवात हो गयी। धीरे-धीरे ये मुलाक़ातें आएदिन की बात हो गयी। बातें सच्ची मित्रता की, आसमान की ऊंचाइयों व सफलता की बुलन्दियों को छूने की बातें। सहयोग, सफलता, शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व, Symbol of freedom बनने की बातें।

युवा मन पर ऐसे विचार जल्दी असर करते हैं। गहरा असर मछली पर भी पड़ा.. उसे लगता कि जैसे माता-पिता उसे रंग-बिरंगी दुनिया की तमाम ख़ुशियों से वंचित रखना चाहते हैं।

ये दुनिया उतनी ही बुरी..

अब माता-पिता से दबी ज़ुबान से शिकायत की, बगुलों की तरह उनके साथ आसमान में उड़ान भरने की बात की.. तो पिता ने डांट कर चुप करा दिया। फिर मां ने प्यार से समझाया कि "बेटी ये दुनिया जो दूर से इतनी खूबसूरत और रंग-बिरंगी नज़र आती है.. वास्तविकता में उतनी ही बुरी, क्रूर और स्वार्थी है। ये जो सर से टखनों तक सफ़ेद पंखों वाले बगुले हैं न इनका दिल उतना ही काला है। इनकी भूरी या सुरमयी मासूमियत छलकाती आंखों के पीछे तमाम नफ़रतें छिपी हैं.. इनके इन बेरहम काले पंजों ने हमारी कई पीढ़ियों में तुम्हारी परदादी, परनानी के ज़िस्मों को खाल उतारकर नोचा है। दुश्मन हैं ये दुश्मन..

सफेद लिबास में काला शैतान..

ये सफ़ेद लिबास पहने कोई नेकदिल महात्मा नहीं बल्कि केवल पंखों से ही सफ़ेद हैं। काले दिल वाले शैतान हैं ये.. बेटी, तुम अभी अपरिपक्व हो.. इन की कुटिलता को नहीं समझतीं.. इनसे हमेशा दूर रहना.. कभी बात मत करना.. कभी भरोसा मत करना.. हमेशा दूर रहना.."

लगा मां उसे डरा रही है..

बेचारी मछली को ये अतिश्योक्ति लगी। लगा कि मां उसे डरा रही हैं.. बात आयी, गयी हो गई.. मछली ने बगुले से मिलना नहीं बंद किया.. बगुला उसे आयेदिन अपने साथ आसमान में उड़ने का ऑफर देता.. एक दिन मछली ने मन में कुछ सोचा, विचारा और बगुले के साथ आसमान में परवाज भरने का निर्णय ले लिया..। मन में डर तो था किन्तु उसे लगा कि जब वो लौटकर मां-बाप समेत सबको आसमान की बुलंदियां छूकर आने की खबर सुनाएगी ..तो सब उसे सराहेंगे, उसकी मिसाल देंगे.. उसकी सफलता पीढ़ियों से चली आ रही बगुलों से बेपनाह नफ़रत को एक ही झटके में समाप्त कर देगी.. 

सपने बुनते-बुनते..

वो उस जगह तक जाएगी जहां पर धरती और आसमान मिलकर एक हो जाते हैं.. और वापस आकर वहां का आंखों देखा हाल अपनी मछली सहेलियों को बताएगी.. वो साबित कर देगी कि माता-पिता की ये बात गलत है कि धरती और आसमान कभी भी एक नहीं हो सकते.. बगुले भी नेकदिल और सच्चे दोस्त होते हैं.. हम मछलियां उनसे बेवज़ह डरते हैं और नफरत करते हैं, आदि.. आदि..

नसीहतों को दरकिनार किया..

मां-बाप की तमाम नसीहतों को दरकिनार कर मछली एक शाम अपने मित्र बगुले के साथ आसमान में उड़ान भरने के लिए तैयार हो गई.. अपनी कल्पनाओं में सुनहरे सपने बुनती हुई बगुले के पास पहुंच गयी.. बगुला उसे पंजे में दबाकर उड़ चला..

बगुले ने असली रंग दिखाया..

अभी पानी से निकले ज्यादा वक़्त न बीता था कि मछली को घुटन महसूस हुई.. उसे सांस लेने में परेशानी हो रही थी.. उसने बगुले से वापस झील में पहुंचाने.. पानी में जाने के लिए आग्रह किया.. अपना दम घुटने की शिकायत की.. किन्तु अब बगुले ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया..

बोटियां नोंचकर खा गए..

बगुला उसे लेकर एक सूखी चट्टान पर पहुंचा.. वहां उसके जैसे तमाम बगुले थे.. उनमें मछलियों को मिल-बांट कर शिकार करने और खाने की रीति-रिवाज चली आ रही थी.. बगुलों ने मिलकर मछली की खाल नोंचकर उतार दी.. वे उसे अपनी चोंचों में दबाकर उछाल रहे थे और उसके जिन्दा ज़िस्म से छोटी-छोटी बोटियां नोंचकर खा रहे थे..

याद आ रही थी मां की नसीहतें..

मछली को अपनी मां की नसीहतें बहुत याद आ रही थीं, उसे विश्वास हो गया था कि मां की नसीहतें सच थीं, धरती और आसमान कभी एक नहीं हो सकते.. मछलियों की बगुलों से कभी मित्रता नहीं हो सकती.. कोई चांद सितारे नहीं तोड़ सकता.. लेकिन अफ़सोस अब कोई लाभ नहीं था..

पुकार सुनने वाला कोई नहीं..

मछली की चीखें और बचाव की पुकार सुनने वाला वहां कोई भी नहीं था.. उसके आंसू और खून परस्पर मिलकर बह रहे थे.. मांस विहीन हड्डियों व सूखी चट्टान पर खून के दागों से Symbol of freedom बन चुका था..

उड़कर फिर झील किनारे..

मछली को निपटाने के बाद बगुलों ने अट्टहास किया.. अपने पंख और चोंच व पंजों पर लगा खून साफ किया.. पुनः ज़ल्द मिलने का वायदा किया और उड़कर फिर झील के किनारे जा पहुंचे.. फिर वही मित्रता आदि की कहानियां किसी और को सुनाने के लिए..

बेटियों को समर्पित..

युवा मछली के माता-पिता भी अपनी पुत्री की गुमशुदगी पर कुछ दिन रोने-धोने और तलाश करने के बाद खामोश हो गए थे.. न उनमें बगुलों से बदला लेने की इच्छाशक्ति थी न सामर्थ्य.. आज के जमाने में लालची, स्वार्थी, धोखेबाज लोगों के चंगुल में फंसी हमारी बेटियों को, जिन्हें लगता है कि ये दुनिया अच्छी है.. उन्हें समर्पित।  janjaagrukta.com