अभी कलयुग नहीं.. घोर कलयुग चल रहा..
इस युग में चारों ओर विकारों की ऐसी तेज आंधी चल रही है जिसमें सबकुछ जलकर भस्म हो जाना है। भला ऐसी सृष्टि और कितने वर्षों तक और कैसे चल सकती है..
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। यह सृष्टि का चक्र अनवरत घूमता ही रहता है.. जिसमें चार युग क्रमशः आते-जाते रहते हैं। सत युग- था जिसमें श्री लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, जिनकी 8 गद्दी चली। फिर आया त्रेतायुग- जिसमें श्री राम और सीता का राज्य पूरे 12 गद्दी रही। इसके बाद द्वापर युग चला भगवान कृष्ण का समय रहा। फिर कलयुग- और अब तो घोर कलयुग चल रहा है।
इस युग में जो हुआ वह बहुत कम है.. अभी बहुत कुछ होना बाकी है.. क्योंकि सारी सृष्टि तमो प्रधान है.. हर आत्मा विकारों के अधीन और प्रकृति के तत्व थी। अपना उग्र रूप समय-समय पर दिखाते ही रहते हैं.. अर्थात प्रकृति भी तमोगुणी होती जा रही है.. अर्थात सारा स्वरूप ही सृष्टि का जर्जर होता जा रहा है।
इस युग में चारों ओर विकारों की ऐसी तेज आंधी चल रही है जिसमें सबकुछ जलकर भस्म हो जाना है। भला ऐसी सृष्टि और कितने वर्षों तक और कैसे चल सकती है.. जिस प्रकार रात्रि और फिर घोर रात्रि.. उसके बाद पुनः सुनहरी आभा लिए नया दिन शुरू होता है..
ठीक इसी तरह कलयुग.. अब तो घोर कलयुग चल रहा है.. तो निश्चित ही पुण: सुंदर नवयुग.. अर्थात देवी-देवताओं का युग सतयुग स्वर्ग आना ही है.. और उस सतयुग, स्वर्ग को धरा पर लाने के लिए स्वयं परमात्मा निराकार शिव को धरा पर अवतरित होना पड़ता है..।
अध्यात्म की बात.. इच्छा और आनन्द
सभी इच्छाएं प्रसन्नता के लिए होती हैं। वहीं हर इच्छा का लक्ष्य है, है न? फिर भी प्रायः कितनी बार तुम्हारी इच्छा, तुम्हें लक्ष्य तक पहुंचाती है? जब इच्छाएं पूरी हो जाती हैं तो और अधिक इच्छाओं को जन्म देती हैं। क्या तुमने इच्छाओं की प्रकृति पर विचार किया है? इच्छा का अर्थ यही है कि आनन्द 'कल' है और अभी नहीं, है न?
इसीलिए, यह माया है..
आनन्द कभी आने वाले कल में नहीं है। यह सदा वर्तमान में है। जब तुम आनन्दित हो, तुममें इच्छाएं कैसे हो सकती हैं? और जब तुम इच्छा के चंगुल में हो ..तब खुश कैसे रह सकते हो? इच्छा तुम्हें सुख की ओर ले जाने का भरोसा देती है। वास्तव में वह ऐसा कर ही नहीं सकती। और इसीलिए, यह माया है।