जलवायु संकट : अंटार्कटिका में इस साल रिकॉर्ड तोड़ बर्फ पिघला, पर जमा नहीं

दुनियाभर के कई देश मौसम की मार झेल रहे हैं। कहीं बाढ़, तो कही बढ़ता तापमान देखा जा सकता है। इस बीच एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है।

जलवायु संकट : अंटार्कटिका में इस साल रिकॉर्ड तोड़ बर्फ पिघला, पर जमा नहीं

नई दिल्ली, जनजागरुकता डेस्क बदलते जलवायु के कारण दुनियाभर के कई देश मौसम की मार झेल रहे हैं। कहीं बाढ़, तो कही बढ़ता तापमान देखा जा सकता है। इस बीच एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। कहा जा रहा है कि इस साल फरवरी में अंटार्कटिका में रिकॉर्ड तोड़ बर्फ पिघला है। लेकिन वापस जमीं नहीं है। जो वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ा चिंता का कारण है। कहा जा रहा है कि इस साल अंटार्कटिका में रिकॉर्ड तोड़ बर्फ पिघला है। जो 45 वर्षों के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। 

अंटार्कटिका में जलवायु संकट बढ़ने के कारण समुद्री बर्फ लगातार पिघलता जा रहा है। अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ पिछले कुछ दशकों में रिकॉर्ड ऊंचाई से रिकॉर्ड निचले स्तर तक पहुंच गया है, जिससे वैज्ञानिकों के लिए यह समझना कठिन हो गया है।

जलवायु परिवर्तन, समुद्र का बर्फ इतने निचले स्तर पर

बता दें, पिछले 45 सालों में यहां बहुत परिवर्तन देखा गया है। यह इतने वर्षों में पहली बार है, जब समुद्र का बर्फ इतने निचले स्तर पर है। पिछले कुछ समय में इसके धंसने की दर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर (एनएसआईडीसी) के आंकड़ों के अनुसार, बर्फ 2022 में पिछले शीतकालीन रिकॉर्ड निचले स्तर से लगभग 1.6 मिलियन वर्ग किलोमीटर (0.6 मिलियन वर्ग मील) कम है।

जलवायु संकट से बर्फीले क्षेत्र अधिक प्रभावित

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यह चौंकाने वाली गिरावट एक संकेत है कि जलवायु संकट इस बर्फीले क्षेत्र को अधिक गंभीरता से प्रभावित कर सकता है। ग्लोबल वॉर्मिंग इसका सबसे बड़ा कारण है।

तेजी से पिघल रहा है अंटार्कटिका का समुद्री बर्फ

इस साल जुलाई के मध्य में, अंटार्कटिका का समुद्री बर्फ 1981 से 2010 के औसत से 2.6 मिलियन वर्ग किलोमीटर (1 मिलियन वर्ग मील) कम था। यह लगभग अर्जेंटीना या टेक्सास, कैलिफोर्निया, न्यू मैक्सिको, एरिजोना, नेवादा, यूटा और कोलोराडो के संयुक्त क्षेत्रों जितना बड़ा क्षेत्र है।

वैज्ञानिकों ने बताया यह साधारण घटना नहीं

इस घटना को कुछ वैज्ञानिकों ने असाधारण बताया है। कोलोराडो बोल्डर विश्वविद्यालय के ग्लेशियोलॉजिस्ट टेड स्कैम्बोस ने कहा कि यह साधारण घटना नहीं है। मौसम लगातार बदल रहा है। खैर, वैज्ञानिक अब यह पता लगाने में लगे हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है।

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