आजादी का जज्बा- बेमेतरा में अंग्रेजों के शाासन काल में अंग्रेजों के खिलाफ ही लाए प्रस्ताव
जेल से आवाज बुलंद करते रहे इस क्षेत्र के सेनानी। आजादी के लिए यहां लगातार बड़ा आंदोलन चला।
स्वतंत्रता दिवस- विशेष
रायपुर, जनजागरुकता। देश की आजादी के लिए छत्तीसगढ़ में भी बड़ा आंदोलन चला। जिसमें बेमेतरा क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा। हम आज आपको स्वतंत्रता दिवस के मौके पर त्याग, तपस्या की एक शतक तक की यहां की स्थिति की जानकारी दे रहे हैं।
1906 में तहसील बनने के बाद से जिला बनने तक करीब 106 साल के इतिहास खंगालने से जो बात सामने आई उसके अनुसार पूर्व में बेमेतरा परिक्षेत्र सिमगा पुलिस थाना क्षेत्र में शामिल था और वही तहसील कार्य रायपुर के अधिकार क्षेत्र हुआ करता था। 1906 में दुर्ग जिला गठन के साथ ही बेमेतरा तहसील भी अस्तित्व में आया।
जिसके बाद तहसील मुख्यालय होने के साथ अंचल का केन्द्र होने के संपर्क बढ़ते ही धीरे-धीरे अंग्रेजों के विरोध में बेमेतरा तालुका में भी स्वर मुखर होने लग गया था, चूंकि पोस्ट ऑफिस, पुलिस स्टेशन एवं तहसील मुख्यालय का कामकाज प्रारंभ हो चुका था।
5 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी देवकर से थे
जिले के तत्कालीन ग्राम देवकर में दुर्ग के करीब होने के साथ-साथ जिला मुख्यालय में अंग्रेजों के विरोध में उठ रहे विद्रोह का प्रभाव पड़ा था जिसके चलते देवकर के चंदूलाल पिता गंगाराम, झगरन, कोन्दा भोई पिता सुन्हरव झगरू पिता सालिक, विश्वनाथधर दीवान स्वाधीनता की लड़ाई में शामिल हुए।
गांवों की आवाज गूंजती थी कारागार में
इस दौरान बेमेतरा तहसील बन चुका था पर स्वरूप कस्बा की तरह था। बैजलपुर, अंंधियारखोर, दाढ़ी, बिलाई, जिया, कुसमी बेरला, सोढ़, धुुुरसेना, केसडबरी, देवकर, कुम्ही, पिकरी, नगपुरा, भिभौरी, तेन्दुवा, हथमुड़ी, बचेड़ी, नगपुरा, सिलधट, हरदास समेत अनेक गांवों के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। इन गांवों से निकले युवाओं की आवाज कारगार में गूंजा करती थी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अवध राम कुर्मी के पुत्र कोमल वर्मा से कई साल पहले चर्चा में बताया था कि उनके पिता सन 42 में केन्द्रीय जेल में थे। करीब 6 माह तक जेल में रहे।
प्रभातफेरी के साथ लोगों को आजादी के लिए जगाते थे
वहीं खम्हन लाल सौनिक के पौत्र ने कुछ साल पहले एक अखबार में जानकारी दी थी उनके अनुसार शहर में तब सुबह प्रभातफेरी के साथ लोगों को जगाने का काम करते थे। साथ ही शाम होने के बाद सभी चरखा चलाते थे और अपने मिशन को लेकर चर्चा कर आगे सूचना को लेकर विचार कर मंथन करते थे। बहरहाल जिला मुख्यालय बनने से पूर्व ग्राम पंचायत से लेकर तहसील बनने तक शहर के स्वतत्रता संग्राम सेनानियों गौरवशाली इतिहास रहा है।
ये हैं जिले के सेनानी जो आजादी के लिए योगदान दिया
स्व. टीएन ठाकुर आ. प्रयागराज ठाकुर बेमेतरा, स्व. ररूहा आ. छेरका ग्राम बासा बेरला, सखाराम आ. मनोहर भरकसी बेमेतरा, स्व. रामस्वरूप आ. राजन धुरसेना नवागढ़, स्व. कृपाराम आ. दीना कुसमी बेरला, स्व. मन्शाराम लल्लूप्रसाद केशडबरी, स्व मुन्जन आ. सुखभजन सिंह बेमेतरा, स्व. दशाशंकर तिवारी आ. गणेश प्रसाद बेमेतरा, स्व. झूलाराम आ. सीतादास, स्व. रामदास आ. चैनदास, स्व. मधुकर सिंह आ. प्रेमसिंह वर्मा सोढ बेरला, स्व. दयाराम आ. दीना बिलाई बेमेतरा, स्व. थनवार आ. धनिया बैजलपुर बेमेतरा, स्व. ललुवा आ. शिवराम बेमेतरा, स्व. शिवशंकर आ. माधोप्रसाद सप्रे, स्व. लक्ष्मण प्रसाद वैध आ.आ. रामलाल, स्व. अवधराम आ. उन्नत राम कुर्मी, स्व. नम्मू आ. सुखी, स्व. बिसाहू प्रसाद आ. चुरामन प्रसाद, स्व. भागवत प्रसाद आ. गोपाल उपाध्याय तेन्दुवा, स्व. बुधराम आ. गणेश हथमुडी बेमेतरा, स्व. भागवत प्रसाद आ. गोपाल प्रसाद, स्व. नरसिंह प्रसाद आ. राजाराम अग्रवाल, स्व. झाडूराम आ. रामभरोसा, स्व. मल्लूराम आ. दीनदयाल, स्व. जेठूरमल आ. खुरजी बिलाई, स्व. बुधराम आ. दीना बेमेतरा, स्व. मुकुटराम आ. नारायण बेमेतरा, स्व. खम्हनलाल आ. गोवर्धन, स्व. पदुम आ. पचकौड़, स्व. कलीराम आ. सदाशिव, स्व. उदयसिंह आ. घनाराम सिंह बेमेतरा, स्व. पंडित भगवती प्रसाद आ. महादीन मिश्रा अंधियारखोर, स्व. चन्दूलाल आ. गंगाराम देवकर, स्व. झरगन आ. सालिक देवकर बेमेतरा, स्व. सुन्दर आ. बण्डा, स्व. नाथूराम आ. गजराजसिंह सिलधट, स्व. लक्ष्मीदास आ. रघुनाथ बचेडी, स्व. लालूराम आ. अनन्दसिंह तिसमौर, स्व. नान्हू आ. गोदी हरदास बेमेतरा, स्व. कोन्दा भोई आ. सुनहर देवकर, स्व. झगरू आ. सालिक आदि शामिल थे।
ऐसा कोई घर नहीं था जो कि आजादी की लड़ाई में योगदान न दिया हो
जिले के बैजलपुर के आजादी के दिवानों के समर्पण व त्याग का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1935 से 1937 के दौरान इस गांव के पांच युवा थनवार पिता धनिया, मुकुतराम पिता नारायण, बुधराम पिता दिना, कलीराम पिता सदाशिव व पदुम पचकौड समर में सामने आये जो अंत तक डटे रहे। जेल गये देश के लिए लड़ते हुए आंदोलन में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधितत्व करते रहे। गांव के लोगों ने बताया कि इस गांव में तब स्कूल हुआ करता था। सभी पढ़ते समय आजादी की लड़ाई में शामिल होने का मन बना लिया था।
तब ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आया बेमेतरा
यह गोड़ राजा के क्षेत्र था। बेमेतरा 1822-25 में धमधा के गोड़ राजा के पराजित होने के बाद बेमेतरा क्षेत्र कम्पनी के अधिकार क्षेत्र में आ गया। पहले धमधा ईस्ट इंडिया कम्पनी के कार्यकाल में मेजर पीएस एगन्यू के नेतृत्व में गोड़ राजवंशों पर आक्रमण किया था। जिसके बाद मेजर एगन्यू ने अपने प्रशासनिक मुख्यालय डिप्टी कमिश्नरी को रतनपुर से रायपुर स्थानांतरित किया। एक राजनीतिक एजेंट भी रायपुर में नियुक्त किया गया। जिले में 1857 के आसपास अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह ग्राम दाढ़ी व नवागढ़ क्षेत्र से प्रारंभ होने लगा था। आजादी के दौरान जिले से अंग्रेजों के खिलाफत करने वालों में जिले के 42 से अधिक सेनानियों का नाम शामिल है जिनमें बेमेतरा तहसील, देवकर, दाढ़ी के साथ अन्य ग्रामीण अंचल से सामने आये थे।
लाया गया था अंग्रेजो के खिलाफ प्रस्ताव
1946 के दैरान बेमेतरा में मुंजन सोनी, सुख भंजन सोनी, जीवन लाल शुक्ल, लक्ष्मण प्रसाद वैद्य झुलाराम, लक्ष्मण प्रसाद दुबे अवध राम, भागवत उपाध्याय, भगवती प्रसाद मिश्र, रामदास, मधुकर सिंह, प्रेमलाल, नममू, सुखी, मालू राम, जेठमल, बुधराम, खम्मन मुकुट राय, पदुम, पचकौड़, थनवार दयाशंकर, मूलाराम, गंगाधर यादव तामस्कर, विश्वनाथ यादव तामस्कर की उपस्थिति में तहसील स्तर का राजनीतिक सम्मेलन 31 दिसंबर 1946 को मोहनलाल बाकलीवाल की अध्यक्षता में किया गया था। जिसका व्यापक प्रभाव पड़ा था।
पहली बार ऐसा हुआ
क्षेत्र में पहली दफा थी जब अंग्रेजों के शाासन काल में अंग्रेजों के ही खिलाफ प्रस्ताव लाए गए और अब स्वतंत्रता प्राप्ति का लक्ष्य रखा गया। उक्त सम्मेलन में सैकड़ों लोग उपस्थित हुए जबकि सैकड़ों लोग पीछे से मदद कर रहे थे। जो बेमेतरा की तात्कालिक राजनीतिक सूझबूझ एवं जागृति को प्रदर्शित करता है। इस विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों में प्रमुख रूप से सामने आया था। सम्मेलन के 8 माह 15 दिन के बाद देश आजाद हुआ था।
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