भविष्य की चिंता- भारत समेत 25 देशों में जल संकट का खतरा, वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित
दुनिया के यह देश जो अपनी जल आपूर्ति का 80 फीसदी हिस्सा खर्च कर रहे हैं। यह स्थिति जनजीवन, जीविका, खाद्य आपूर्ति, कृषि, उद्योगों और ऊर्जा सुरक्षा को भी बुरी तरह प्रभावित कर रही है।
नई दिल्ली, जनजागरुकता डेस्क। भारत सहित दुनिया के 25 देशों में जल संकट का गंभीर खतरा मंडराने लगा है। पानी की बढ़ती कमी यहां रहने वाले लोगों के जीवन, जीविका, खाद्य आपूर्ति, कृषि, उद्योगों और ऊर्जा सुरक्षा को भी बुरी तरह प्रभावित कर रही है। दुनिया के यह देश जो अपनी जल आपूर्ति का 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा खर्च कर रहे हैं।
पानी की समस्या केवल गर्मियों में ही नहीं बल्कि पूरे साल बरकरार रहती है। मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में जल संकट की स्थिति सबसे ज्यादा विकट है। इस क्षेत्र में 83% आबादी गंभीर जल संकट का सामना कर रही है। दक्षिण एशिया में करीब 74% आबादी जल संकट से त्रस्त है। जल संकट वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगी।
भारी बारिश के कारण जल वितरण प्रणाली लड़खड़ाई
यह जानकारी वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट द्वारा जारी एक्वाडक्ट वॉटर रिस्क एटलस के नवीनतम आंकड़ों में सामने आई है। उल्लेखनीय है कि यह 25 देश, दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी का स्थायी निवास है। इनमें कुछ ऐसे इलाके भी शामिल हैं जहां प्राकृतिक आपदा अथवा भारी बारिश के कारण जल वितरण प्रणाली बुरी तरह लड़खड़ा गई है।
1960 के मुकाबले पानी की मांग दोगुनी
आंकड़ों के अनुसार दुनिया की 400 करोड़ की आबादी साल में एक महीने पानी की भारी किल्लत का सामना करती हैं। 1960 के मुकाबले पानी की मांग बढ़कर दोगुनी हो गई है। इसके लिए कहीं न कहीं बढ़ती आबादी, उद्योग, कृषि, मवेशी, ऊर्जा उत्पादन, निर्माण और जलवायु में आता बदलाव जैसे कारण जिम्मेदार हैं। 2050 तक 100 करोड़ अतिरिक्त लोग इस गंभीर जल संकट का सामना करने को मजबूर होंगे।
पानी की किल्लत से अर्थव्यवस्था खतरे में
एक्वाडक्ट द्वारा 2010 में जारी नए आंकड़ों के मुताबिक जल प्रबंधन से जुड़ी नीतियों में सुधार न किया गया तो 27 वर्षों में भारत, चीन और मध्य एशिया को उसके जीडीपी के सात से 12 फीसदी हिस्से के बराबर आर्थिक नुकसान हो सकता है। 60% लोग प्रभावित होंगे प्रति माह पानी की किल्लत से 27 वर्षों में (अनुमान के अनुसार) 24% दुनिया की जीडीपी पानी की किल्लत से प्रभावित थी। जल संकट वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगी। अनुमान है कि 2050 तक करीब 5,818.9 लाख करोड़ मूल्य की अर्थव्यवस्था खतरे में पड़ जाएगी।