कान्हां जी की प्रेरणा ऐसी कि.. जूते-चप्पल की रखवाली करने वाली वृद्धा ने मंदिर को अर्पित कीं लाखों की राशि
"जथा नाम तथा गुण" यशोदा दासी ने भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा में अपनी कमाई का लाखों रुपए गौ शाला को समर्पित कर हर किसी को दंग कर दिया।
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। मनुष्य का जीवन उस परमात्मा के इशारे पर चलता है जो हमें अच्छा जीवन का मार्ग दिखाता है। अवसर देता है सद्मार्ग के लिए, बस समझने की देर होती है कि धरती पर आए हैं तो कुछ अच्छा कर जाएं। हमारा जीवन उस परमात्मा का ऋण होता है जो अच्छा और बुरा दोनों का अहसास करता है।
ऐसा ही एक उदाहरण हम आपके सामने रख रहे हैं। साधारण सा मानव, पर काम दुर्लभ और करोड़ों लोगों में एक मात्र बुजुर्ग महिला ने उस परमात्मा का धन्यवाद कर अपना फर्ज निभाया है। यह भगवान की प्रेरणा है।
भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा में यह बात सामने आई है। हम कभी सुने नहीं हैं कि मंदिर के द्वार पर जूते-चप्पल की रखवाली करने वाली एक वृद्ध महिला लाखों रुपए भगवान की सेवा में अर्पित कर दिया है। करोड़ों की संपत्ति लिए लोगों में यह बात आश्चर्य लगा है, पर दान-पुण्य के लाभ को समझने वाले ऐसा काम बिना किसी के परवाह कर गुजरते हैं।
आपको यह सवाल जरूर अटपटा लग सकता है, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबी हुई एक वृद्ध महिला इन दिनों भगवान बांकेबिहारी की नगरी वृन्दावन में चर्चा का विषय बनी हुई है। इस महिला ने एक-दो नहीं पूरे पचास लाख रुपए दान कर अपने आराध्य की सेवा में जीवन की कमाई गौशाला और आश्रम में लगा दी हैं।
कण कण में वास.. भक्तों को खींचते हैं भगवान
कान्हां की नगरी, भगवान की क्रीड़ा स्थली वृन्दावन के कण-कण में भगवान का वास है।तभी तो देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु यहां खींचे चले आते हैं। और वे फिर यहीं के होकर रह जाते हैं। ऐसी ही एक महिला यशोदा दासी है। यशोदा दासी करीब 40 साल पहले सब कुछ छोड़ कर वृन्दावन आ गयी और भगवान की भक्ति में खो गयी। समय बीतता गया और यशोदा दासी मंदिर के बहार यहां आने वाले श्रद्धालुओं के जूते-चप्पलों की रखवाली करने की जिम्मेदारी निभाने लगी।
आराध्य के दर को ही जीविका के लिए चुना
स्वाभिमानी यशोदा दासी किसी के सामने हाथ फैलाने की बजाय मेहनत कर अपना जीवनयापन करना चाहती थी। इसीलिए उसने अपने आराध्य के दर को ही अपनी जीविका के लिए चुना। यशोदा दासी अपने खर्चे से बचे पैसे को भगवान की सेवा में लगाना चाहती थी। मन में दृढ़ विश्वास से यशोदा दासी ने एक-एक पैसा जोड़ना शुरू किया। जीवन का अंतिम पड़ाव है, यशोदा ने सोचा क्यों ने उसका दिया जीवन, उनके पैसे उसे ही समर्पित किया जाए। यशोदा ने कान्हा की प्यारी गायों की सेवा में लाखों रूपए समर्पित कर दिया। ||भक्त और भगवान की जय||