भोलेनाथ को प्रिय बिल्वपत्र.. धर्म-आस्था का माध्यम, इससे स्वास्थ्य रक्षा भी..

मान्यता है कि इसके वृक्ष के दर्शन व स्पर्श से ही कई प्रकार के पापों का शमन हो जाता है तो इस वृक्ष को कटाने अथवा तोड़ने या उखाड़ने से लगने वाले पाप से केवल ब्रह्मा ही बचा सकते हैं।

भोलेनाथ को प्रिय बिल्वपत्र.. धर्म-आस्था का माध्यम, इससे स्वास्थ्य रक्षा भी..

जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..

 

जनजागरुकता, धर्म डेस्क। सनातन धर्म में भगवान भोलेनाथ को प्रकृति से जुड़ी अनेक चीजें बड़ी प्रिय है। इसमें से बेलपत्र, बिल्वपत्र भी है। जो धर्म और आस्था का बड़ा केंद्र और माध्यम है। इसके उपयोग से स्वास्थ्य रक्षा भी होती है।

पुराणों के अनुसार शिवरात्रि, श्रावण, प्रदोष, ज्योतिर्लिंग, बाणर्लिंग में इसे भगवान रुद्र पर समर्पित करने से अनंत गुना फल मिलता है। किसी भी पूजन में या शिव पूजन में बिल्वपत्र का उपयोग होता है। किसी भी पूजन में या शिव पूजन में बिल्वपत्र का उपयोग अति आवश्यक है, जो पापों का क्षय करने वाला होता है। 

 

शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि यदि किसी कारणवश बिल्वपत्र उपलब्ध न हो तो स्वर्ण, रजत, ताम्र के बिल्वपत्र बनाकर भी पूजन कर सकते हैं। ऐसा करने का फल भी वनस्पतिजन्य बिल्वपत्र के समकक्ष है। यदि किसी संकल्प के नि‍मित्त बिल्वपत्र चढ़ाना हो तो प्रतिदिन समान संख्या में या वृद्धि क्रम की संख्या में ही उपयोग करना चाहिए। अधिक संख्या के पश्चात न्यून संख्या में नहीं चढ़ाना चाहिए। 

केवल एक बिल्वपत्र अर्पित करने से ..ये फल की प्राप्ति

पुराणों में उल्लेख है कि 10 स्वर्ण मुद्रा के दान के बराबर एक आक पुष्प के चढ़ाने से फल मिलता है। 1 हजार आक के फूल का फल एवं 1 कनेर के फूल के चढ़ाने का फल के समान है। 1 हजार कनेर के पुष्प को चढ़ाने का फल एक बिल्वपत्र के चढ़ाने से मिल जाता है। 

.. इस पाप से केवल ब्रह्मा ही बचा सकते हैं

मान्यता है कि इसके वृक्ष के दर्शन व स्पर्श से ही कई प्रकार के पापों का शमन हो जाता है तो इस वृक्ष को कटाने अथवा तोड़ने या उखाड़ने से लगने वाले पाप से केवल ब्रह्मा ही बचा सकते हैं। अत: किसी भी स्‍थिति में इस वृक्ष को नष्ट होने से बचाने के लिए प्रयत्नशील रहना आध्यात्मिक एवं पर्यावरण दोनों की दृष्टि से लाभकारी है।  

बिल्वपत्र अर्पित करने के नियम.. 

यदि बिल्वपत्र पर चंदन या अष्टगंध से ॐ, शिव पंचाक्षर मंत्र या शिव नाम लिखकर चढ़ाया जाता है तो फलस्वरूप व्यक्ति की दुर्लभ कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। कालिका पुराण के अनुसार चढ़े हुए बिल्व पत्र को सीधे हाथ के अंगूठे एवं तर्जनी (अंगूठे के पास की उंगली) से पकड़कर उतारना चाहिए। चढ़ाने के लिए सीधे हाथ की अनामिका (रिंग फिंगर) एवं अंगूठे का प्रयोग करना चाहिए।

ये मंत्र बोलकर अर्पित करें..

तीन जन्मों के पापों के संहार के लिए त्रिनेत्ररूपी भगवान शिव को तीन पत्तियोंयुक्त बिल्व पत्र, जो सत्व-रज-तम का प्रतीक है, को इस मंत्र को बोलकर अर्पित करना चाहिए-

 

'त्रिदलं  त्रिगुणाकरं  त्रिनेत्र   व   त्रिधायुतम्।

त्रिजन्म पाप संहारं एकबिल्वम शिवार्पणम्।।

..इसमें तनिक भी संदेह नहीं

शिव उपासना अर्थात मंगल की कामना की साधना के लिए यदि प्रत्येक शिवभक्त अर्थात कल्याण की आकांक्षा का प्रेमी यदि बेल पत्र के वृक्ष का रोपण एवं उसके पत्र का अर्पण करें तो देश की अनेक समस्याओं सहित पर्यावरण की समस्या से भी बहुत हद तक मुक्ति मिल सकती है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। आवश्यकता मात्र ऐसे शिवभक्तों की है।

बिल्वपत्र के बारे में महत्वपूर्ण बातें 

1 बिल्वपत्र 6 महीने तक बासी नहीं माना जाता। इसे एक बार शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद धोकर पुन: चढ़ाया जा सकता है। कई जगह शिवालयों में बिल्वपत्र उपलब्ध नहीं हो पाने पर इसके चूर्ण को चढ़ाने का विधान भी है। 

 

2 बिल्वपत्र को औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इसमें निहित इगेलिन व इगेलेनिन नामक क्षार-तत्व औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। यह चातुर्मास में उत्पन्न होने वाली विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से भी निजात दिलाता है। 

 

3 यह गैस, कफ और अपचन की समस्या को दूर करने में सक्षम है। इसके अलावा यह कृमि और दुर्गंध की समस्या में भी फायदेमंद है। प्रतिदिन 7 बिल्वपत्र खाकर पानी पीने से स्वप्नदोष की बीमारी से छुटकारा मिलता है। इसी प्रकार यह एक औषधि के रूप में भी काम आता है।

 

4 मधुमेह के रोगियों के लिए बिल्वपत्र रामबाण इलाज है। मधुमेह होने पर 5 बिल्वपत्र, 5 कालीमिर्च के साथ प्रतिदिन सुबह के समय खाने से अत्यधि‍क लाभ होता है। बिल्वपत्र के प्रतिदिन सेवन से गर्मी बढ़ने की समस्या भी समाप्त हो जाती है।  

 

5 शिवलिंग पर प्रतिदिन बिल्वपत्र चढ़ाने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं भक्त को कभी भी पैसों की समस्या नहीं रहती है। बिल्वपत्र को तिजोरी में रखने से भी बरक्कत आती है। 

इस दौरान बि‍ल्वपत्र तोड़ना वर्जित

- कुछ विशेष तिथि‍यों पर बि‍ल्वपत्र को तोड़ना वर्जित होता है। चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति पर बिल्वपत्र को नहीं तोड़ना चाहिए।

- सोमवार के दिन बिल्वपत्र को नहीं तोड़ना चाहिए, इसमें शि‍वजी का वास माना जाता है। इसके अलावा प्रतिदिन दोपहर के बाद भी बिल्वपत्र नहीं तोड़ना चाहिए। 

बिल्वपत्र अर्पित करने का मंत्र..

नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च

नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥

दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम्‌ पापनाशनम्‌। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥

सूचना- इसमें दी गई जानकारी, सामग्री, गणना में सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। अनेक माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्म ग्रंथों से मिली जानकारी आप तक पहुंचाई जा रही है। उद्देश्य भी लोगों तक सूचना पहुंचाना है। इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना की तहत ही लिया जा सकता है। इसके अलावा इसका किसी और उपयोग के लिए जिम्मेदारी उपयोगकर्ता की होगी।

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