रुपया Vs डॉलर : चिदंबरम ने दी पीएम को सलाह, बंद कमरे में करें डॉ. रघुराम राजन से सलाह

रुपए के लगातार गिरने पर विपक्ष अब केंद्र सरकार पर और ज्यादा हमलावर।

रुपया Vs डॉलर : चिदंबरम ने दी पीएम को सलाह, बंद कमरे में करें डॉ. रघुराम राजन से सलाह

नई दिल्ली, जनजागरुकता डेस्क। पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर कटाक्ष करते हुए पीएम मोदी को सलाह दी है कि अगर डॉलर के मुकाबले रुपए को मजबूत करना है तो भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर डॉ. रघुराम राजन से सलाह लेनी चाहिए। दरअसल डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है। चिदंबरम का यह बयान उसी परिप्रेक्ष्य में है। दरअसल रुपए के लगातार गिरने पर विपक्ष अब केंद्र सरकार पर और ज्यादा हमलावर हो गया है।  

इसके बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या वाकई रघुराम राजन डॉलर के मुकाबले रुपए को मजबूत कर सकते हैं ? जब रघुराम राजन आरबीआई के गर्वनर थे, तब रुपए की क्या स्थिति थी ?उल्लेखनीय है बुधवार 19 अक्टूबर को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया अब तक के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया। यह 61 पैसे की गिरावट के साथ 83 के पार यानी 83.01 पर बंद हुआ। यह पहली बार है जब एक डॉलर की कीमत 83 रुपये के पार हुई है। इसको लेकर विपक्ष ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है।

चिदबरंम की सलाह- पीएम नरेंद्र मोदी डॉ. रघुराम राजन, डॉ. सी रंगराजन, डॉ. वाईवी रेड्डी,

डॉ. राकेश मोहन और मोंटेक सिंह अहलूवालिया की बंद कमरे में बुलाएं बैठक

डॉ. रघुराम, डॉ. रंगराजन, डॉ. वाईवी रेड्डी, डॉ. राकेश, मोंटेक सिंह

चिदंबरम ने पीएम मोदी को सलाह दी है कि रुपए में यदि सुधार चाहते हैं तो उन्हें इस पर विचार करने के लिए तुरंत डॉ. रघुराम राजन, डॉ. सी रंगराजन, डॉ. वाईवी रेड्डी, डॉ. राकेश मोहन और मोंटेक सिंह अहलूवालिया की बंद कमरे में बैठक बुलानी चाहिए। इस बैठक में वित्त मंत्री, आरबीआई गवर्नर और अधिकारियों को भी मौजूद रहना चाहिए। बता दें कि रंगराजन, वाईवी रेड्डी और रघुराम राजन आरबीआई के पूर्व गवर्नर रहे हैं। राकेश मोहन डिप्टी गवर्नर गवर्नर रहे हैं। वहीं मोंटेक सिंह अहलूवालिया यूपीए सरकार के दौरान योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे।चिदंबरम ने ट्विट में लिखा कि सरकार रुपए के मूल्य में लगातार गिरावट के खिलाफ असहाय दिख रही है। गिरते रुपए का असर मुद्रास्फीति, चालू खाता घाटे और ब्याज दरों पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि सरकार को देश के पूर्व अर्थशास्त्रियों से अनुभव लेने की जरूरत है। 

 

ऐसा था डॉ. रघुराम राजन का रुपए का गणित

दरअसल रघुराम राजन का कार्यकाल 2013 से 2016 के बीच रहा। वे रिजर्व बैंक के 23वें गवर्नर थे। 4 सितंबर को जब उन्होंने आरबीआई के गवर्नर का पद संभाला तब एक डॉलर की कीमत 67.03 रुपए थी। इसके बाद 2014 तक ये घटकर 63.17 रुपए हो गई। मतलब इस दौरान रुपए की स्थिति में काफी सुधार हुआ। 2015 में फिर से रुपए की स्थिति कमजोर होने लगी और एक डॉलर की कीमत 63.17 से बढ़कर 66.16 रुपए पहुंच गई। 2016 में ये स्थिर बनी रही और जब रघुराम राजन का कार्यकाल खत्म हो गया।  यानी 4 सितंबर 2016 को एक डॉलर की कीमत 66.67 रुपए थी। मतलब राजन के 3 साल के कार्यकाल में रुपया सुधार की तरफ भी बढ़ा और फिर 2013 की स्थिति के करीब आकर ही रुक गया। अब 2016 से 2018 के बीच जब उर्जित पटेल गवर्नर थे तो इन दो वर्षों में एक डॉलर की कीमत 67.19 रुपए से बढ़कर 69.79 रुपए पहुंची थी। मतलब दो साल में भारतीय करंसी 2.6 रुपए कमजोर हुई। इसके बाद 2019-2020 में कोरोनाकाल के दौरान सबसे ज्यादा भारतीय मुद्रा को नुकसान पहुंचा। एक साल के अंदर डॉलर के मुकाबले रुपया करीब 4 रुपए तक गिरा। 2019 में एक डॉलर की कीमत 70.42 रुपए थी, जो 2020 तक 74.10 रुपए पहुंच गई। 2021 में इसमें सुधार देखने को मिला और एक डॉलर की कीमत 74.10 से घटकर 73.91 रुपए पहुंच गई। इस साल इसमें सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। अब एक डॉलर की कीमत 83.01 रुपए पहुंच गई है। आंकड़ों को देखें तो रुपए का सतत अवमूल्यन जारी है। बीते कुछ दिनों से इसमें तेजी आई है।  

डॉलर के मुकाबले रुपया तभी मजबूत होगा जब हम कम विदेशी मुद्रा खर्च करें और ज्यादा हासिल करें

दरअसल हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेन-देन करता है। विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा की चाल तय होती है। अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर है तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं। भारत ने 1975 में इस सिस्टम को अपनाया है। डॉलर के मुकाबले रुपया तभी मजबूत होगा जब हम कम विदेशी मुद्रा खर्च करें और ज्यादा हासिल करें या फिर अगर हम कोई सामान आयात करने के लिए 100 डॉलर खर्च करते हैं, तो इतने का सामान निर्यात भी करें। इससे विदेशी मुद्रा स्थिर होगी और रुपया भी मजबूत होगा। 

ये रोचक है... आजादी के बाद यानी 1948 में एक डॉलर- 1.3 रुपए के बराबर ही था

रुपया आजादी से पहले डॉलर के मुकाबले मजबूत था। असल में तब सभी अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं का मूल्य सोने-चांदी से तय होता था। इसके बाद ब्रिटिश पाउंड और विश्व युद्धों के बाद से अमेरिकी डॉलर उस भूमिका में है। वैसे आजादी के बाद यानी 1948 में एक डॉलर-1.3 रुपए के बराबर ही था। 1975 में डॉलर का मूल्य 8.39 रु., 2000 में 43.5 रु. हो गया। 2011 में इसने पहली बार 50 का आंकड़ा पार किया।

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