28 वर्षों तक पति से अलगाव मानसिक क्रूरता का उदाहरण- हाईकोर्ट

शादी के कुछ साल बाद पति के खिलाफ पत्नी ने झूठा मुकदमा दायर किया था। इसी पर नई दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई की गई।

28 वर्षों तक पति से अलगाव मानसिक क्रूरता का उदाहरण- हाईकोर्ट

नई दिल्ली, जनजागरुकता डेस्क। हाई कोर्ट ने पति और पत्नी के रिश्ते को लेकर एक केस की सुनवाई करते हुए बड़ी संवेदनशीलता के साथ निर्णय दिया है। न्यायाधीश ने  1992 में हुई शादी और फिर 1995 से अलग रह रहे पति के खिलाफ पत्नी की शिकायत के आधार पर कोर्ट ने कहा कि लगभग 28 साल का यह अलगाव गंभीर क्रूरता का संकेत देता है। अदालत ने कहा, "लगभग 28 वर्षों का इस तरह का अलगाव मानसिक क्रूरता का एक उदाहरण है।“

मामले पर सुनवाई में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि एक पत्नी द्वारा अलग हो चुके पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ लगातार झूठे मुकदमे चलाना क्रूरता है। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा कि पत्नी की ऐसी झूठी शिकायतें और आरोप उसके पति के खिलाफ मानसिक क्रूरता के समान हैं।

कोर्ट ने रद्द की शादी

केस पर पीठ ने 1992 में हुई शादी को रद्द कर दिया, वे 1995 से अलग रह रहे थे। कोर्ट ने कहा ये देखते हुए कि लगभग 28 साल का यह अलगाव भी गंभीर क्रूरता का संकेत देता है। अदालत ने कहा कि महिला ने अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए (महिला के प्रति क्रूरता), 504 और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया था।

लंबी सुनवाई के बाद पुनरीक्षण याचिका खारिज

मामले पर लंबी सुनवाई के बाद उन्हें बरी कर दिया गया और उनकी पुनरीक्षण याचिका भी खारिज कर दी गई। पीठ ने कहा कि पत्नी द्वारा लंबे समय तक लगातार मुकदमेबाजी करना क्रूरता है, खासकर तब जब मामले में क्रूरता के कथित सबूत साबित नहीं हुए हों। तलाक देने के बजाय, अदालत ने विवाह को शून्य घोषित कर दिया। महिला ने तर्क दिया कि, झांग समुदाय में प्रथा के अनुसार, उनकी शादी को मान्यता दी गई थी। हालांकि, पति ने तर्क दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 (वी) के उल्लंघन के कारण विवाह अमान्य था, जो बिना किसी रीति-रिवाज के सपिंडों के बीच विवाह पर रोक लगाता है।

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