शरद पूर्णिमा- चंद्रदेव और मां लक्ष्मी की करें उपासना, आज रहेगा चन्द्रमा का ओज सबसे तेज और ऊर्जावान, रात बरसेगा अमृत
शरद पूर्णिमा के बाद मौसम में कोहरे के साथ ठंडक शुरू हो जाती है। बता दें कि शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है।
धर्म-आस्था, जनजागरुकता डेस्क। धर्म, आस्था और स्वास्थ्य रक्षा का पर्व है शरद पूर्णिमा। वर्षा ऋतु के बाद पहली पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा मनाया जाता है। इस दिन चंद्रदेव और मां लक्ष्मी की पूजा, उपासना की जाती है। खीर का भोग लगाकर खुले आसमाान के नीचे रखा जाता है जिसे औषधि के रूप में ग्रहण किया जाता है।
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कोजोगार पूर्णिमा, रास पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस बार यह पूर्णिमा 9 अक्टूबर को है। शरद पूर्णिमा के बाद मौसम में कोहरे के साथ ठंडक शुरू हो जाती है। बता दें कि शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। चंद्रमा इस दौरान अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है। इस रात्रि में चन्द्रमा का ओज सबसे तेजवान और ऊर्जावान होता है।
वर्ष की सभी पूर्णिमाओं में आश्विन मास की शरद पूर्णिमा श्रेष्ठतम मानी गई है क्योंकि इस दिन महालक्ष्मी की पूजा, आराधना करके अपने इष्ट कार्य को तो सिद्ध किया ही जा सकता है साथ ही राधा-कृष्ण की आराधना के लिए भी यह पूर्णिमा सर्वोपरि मानी गई है। इस साल 9 अक्टूबर, रविवार को शरद पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाएगा। शरद पूर्णिमा को कोजोगार पूर्णिमा, रास पूर्णिमा या कुमार पूर्णिमा कहा जाता है और इस दिन रखे जाने वाले व्रत को कौमुदी व्रत कहते हैं।
धर्मग्रंथों में ये है मान्यता
श्रीमद्भागवत के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा पर भगवान श्री कृष्ण और श्री राधा की अद्भुत और दिव्य रासलीलाओं का आरम्भ हुआ था। पूर्णिमा की श्वेत उज्जवल चांदनी में यमुनाजी के निकट वृन्दावन के निधिवन में भगवान श्री कृष्ण ने अपनी नौ लाख गोपिकाओं के साथ स्वंय के ही नौ लाख अलग-अलग गोपों के रूप में आकर ब्रज में महारास रचाया था इसलिए इस महीने की पूर्णिमा का महत्व और भी बढ़ जाता है।
ये फलदायी व्रत
इस दिन चंद्रदेव की भी पूजा अर्चना करने का विधान हैं। शास्त्रों के अनुसार माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था इसीलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है। कुंआरी कन्याएं इस दिन सुबह सूर्य और चन्द्र देव की पूजा अर्चना करे तो उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
अपनी सोलह कलाओं के साथ चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है
वर्षा ऋतु के बाद पहली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, उसके बाद मौसम में कोहरे के साथ ठंडक शुरू हो जाती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और वह अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है। इस रात्रि में चन्द्रमा का ओज सबसे तेजवान और ऊर्जावान होता है। इस रात चन्द्रमा की किरणों से अमृत तत्व बरसता है, चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषक शक्ति और शांति रूपी अमृत वर्षा करते हैं।
जीव-जगत को करती हैं आरोग्य प्रदान
चांद की उज्ज्वल किरणें जब फसलों, पेड़-पौधों, पेय एवं खाद्य पदार्थो में पड़ती हैं तो इनमें अमृत्व का प्रभाव आ जाता है और ये जीवनदायिनी होकर जीव-जगत को आरोग्य प्रदान करती है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है-पुष्णामि चौषधिः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्यमकः।। “मैं रसस्वरूप अर्थात अमृतमय चंद्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को, वनस्पतियों को पुष्ट करता हूं।“
देवता आते हैं धरती पर, मां लक्ष्मी की उपासना का भी पर्व
मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरुड़ पर सवार होकर पृथ्वी लोक पर भ्रमण के लिए आती हैं। इस दिन मां लक्ष्मी घर-घर जाकर भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। इस दिन प्रकृति मां लक्ष्मी का स्वागत करती हैं। ये भी मान्यता है कि इस रात को देखने देवतागण भी स्वर्ग से पृथ्वी पर आते हैं। शरद पूर्णिमा पर मां महालक्ष्मी की विधिवत पूजा की जाती है।
चंद्रमा की रोशनी में बैठने से मिलती है शारीरिक रोगों से मुक्ति
शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी में बैठने से शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है। श्वांस एवं पित्त संबंधी बीमारी दूर होती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्र दर्शन करने से नेत्र संबंधी रोग दूर हो जाते हैं,नेत्र ज्योति बढ़ती है। इस रात्रि खीर का भोग लगाकर आसमान के नीचे रखी जाती है एवं सुबह भोग लगाकर वितरित की जाती है। इस रात्रि में जागरण करने और मां लक्ष्मी की उपासना से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। janjaagrukta.com