पोला पर विशेषः मिट्टी और काष्ठ के बैलों को नहीं मिल रहे दाम, बनाने वाले हाथ खाली

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस की मार से पीड़ित मध्यम व्यवसायियों को अब तक राहत नहीं मिल पायी है।

पोला पर विशेषः मिट्टी और काष्ठ के बैलों को नहीं मिल रहे दाम, बनाने वाले हाथ खाली

रायपुर, जनजागरूकता। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस की मार से पीड़ित मध्यम व्यवसायियों को अब तक राहत नहीं मिल पायी है। हालांकि बाजार से प्रतिबंध हटा लिए गए हैं, फिर भी प्रमुख त्योहारों पर भी बाजारों में मध्यम व्यापारियों को ग्राहक नहीं मिल पा रहे हैं जबकि उम्मीद के साथ सुंदर, आकर्षक खिलौनों से अच्छी आवक होने की आस थी, जो दम तोड़ने लगी है।

छत्तीसगढ़ में पारंपरिक त्योहार शनिवार के दिन मनाने की तैयारी है। आम लोगों के घर पर चल रही है लेकिन शुक्रवार के दिन ग्राहकी में 1 मध्यम व्यवसायी दोपहर तक 5 सौ रुपए का व्यापार कर पाया था। बूढ़ेश्वर मंदिर, पुरानी बस्ती, लाखेनगर, रायपुरा चौक और सदर बाजार में सजी दुकानों के मालिक चेहरे पर मुस्कान की जगह झुर्रियां थीं। कई दुकानदार तो घर जाने की तैयारी कर ली है। वहीं मिट्टी और काष्ठ के खिलौने वाले कारीगर में भी विशेष उत्साह नहीं था, क्योंकि खिलौने खरीदने पर्याप्त व्यापारी नहीं आए।

जनजागरूकता के प्रतिनिधि ने पोला पर्व पर त्योहार से जुड़े खिलौने बनाने वाले मध्यम वर्गीय व्यवसायियों से चर्चा की। इस दौरान उनका दर्द सामने आया। रायपुरा चौक पर दुकान लगाने वाले तुलेश्वर साहू ने कहा सुबह से दुकान लगाकर बैठा हूं। अब तक केवल 2 जोड़ी बैल बेच पाया हूं। उसने बताया कि 50 रुपए से लेकर 150 रुपए तक मिट्टी और काष्ठ के बैल की खरीदी की है। इस खरीदी में 10 हजार रुपए ही खर्च किए। इसमें अब तक 6 दिन में 1 हजार की ही आमदनी हुई है। 

इसी तरह महिला दुकानदार रामधनी, पुरानी बस्ती ने कहा कि ग्राहक नहीं आ रहे हैं। ऐसा खिलौने खरीदने वाले नहीं मिल रहे हैं। महिला कहती है कि अब इन पारंपरिक त्योहारों में लोगों की दिलचस्पी नहीं रही। 3 साल के सन्नाटे ने लोगों को केवल त्योहारों की औपचारिकता सिखा दी है।

खिलौने को तैयार करने वाले कुम्हार रामबिलास साहू, महादेवघाट ने बताया कोरोना के पहले 15 से 20 हजार तक के खिलौने आसानी से बिक्री में आ जाते थे। इस बार 5 हजार का तैयार किया तो 3 हजार की बिक्री हुई है। स्वयं दुकान लगाकर बैठे ग्राहक की प्रतिक्षा में कुम्हार का कहना था कि लोग टेलीविजन में और मोबाईल में खर्च कर देंगे परन्तु त्योहार पर नहीं। उन्होंने बताया कि वर्तमान दौर के बच्चे रस्सी में बांधकर बैल दौड़ाने को मजाक समझते हैं, इसका आनंद नहीं ले पाते इसलिए यह परंपरा अब समाप्त होने की तरफ बढ़ रही है।