भाजपा में विद्रोह की आग..‼️ छत्तीसगढ़ में भी निराशा और नाराजगी

टिकिटों के विरोध में बग़ावत की मशालें उठीं!! फ़ायर ब्रिगेड का गठन! धर्मेन्द्र राठौड़ को क्यों बुलाया गया दिल्ली?

भाजपा में विद्रोह की आग..‼️ छत्तीसगढ़ में भी निराशा और नाराजगी

कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, राजस्थान

सहित सभी प्रदेशों में केंद्रीय नेतृत्व के प्रति

निराशा और नाराज़गी का भाव पनप चुका है

अजमेर, जनजागरुकता डेस्क। (✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी) राजस्थान में सनातनी भाजपा की पहली चुनावी लिस्ट श्राद्ध पक्ष में निकाल दी गई और विरोध का भंडाफोड़ हो गया। जब 41 उम्मीदवारों की लिस्ट में इतना भयंकर विस्फोट हो गया है ..तो दो सौ उम्मीदवारों की लिस्ट में क्या होगा?

जाहिर है कि हाईकमान के नाम पर सिर्फ जुड़वां भाईयों की दादागिरी से यह विरोध बरपा है। विरोध सिर्फ़ पार्टी के उन नेताओं में ही नहीं जिनको टिकिट नहीं मिला है बल्कि पूरी पार्टी में है। फर्क़ सिर्फ़ इतना है कि पार्टी के अंदर का विरोध विद्रोह करने से डर रहा है। जुड़वां भाईयों का तानाशाही रवैया न तो केन्द्रीय नेताओं को रास आ रहा है न राज्यों के नेताओं को। 

कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, राजस्थान सहित सभी प्रदेशों में केंद्रीय नेतृत्व के प्रति निराशा और नाराज़गी का भाव पनप चुका है। और तो और नागपुर का माहौल भी कोई कम आक्रामक नहीं। आदित्यनाथ योगी, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, रमन सिंह, शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती, वसुन्धरा राजे सहित लगभग सौ से अधिक दिग्गज नेता जुड़वां भाईयों की रीति-नीतियों और व्यवहार को लेकर नाराज हैं। किसी का वश नहीं चल रहा ..मगर कब तक? पहला मौका मिलते ही 1857 वाली क्रांति फूट सकती है। फ़िलहाल राजस्थान में होने जा रहे चुनावों के लिए ज़ारी पहली लिस्ट ने ही हाईकमान की चूलें हिला कर रख दी हैं।

मात्र 41 लोगों के नाम घोषित करने में ही बगावत की आंधी चल उठी है। विद्रोह के स्वर ही नहीं नेताओं का ग़ुस्सा भी सड़कों पर उतर आया है। तिजारा के पूर्व विधायक मामन यादव, झोटवाड़ा के पूर्व मंत्री राजपाल शेखावत और आशु सिंह सुरपुरा, कोटपूतली के यादराम जांगल, देवली-उनियारा के राजेंद्र गुर्जर, किशनगढ़ के विकास चौधरी, जयपुर नगर पूर्व विधायक अनीता सिंह गुर्जर, बानसूर के पूर्व मंत्री रोहिताश शर्मा, सांचौर के धनाराम चौधरी और पूर्व विधायक जीवाराम चौधरी तो इस स्तर पर ग़ुस्से में हैं कि यदि लिस्ट पर पुनर्विचार नहीं हुआ तो ये सारे उम्मीदवार किसी और पार्टी का दामन थाम लेंगे या निर्दलीय खड़े होकर भाजपा के अधिकृत उम्मीदवारों की पुंगी बजा देंगे। इनमें से कोई ऐसा नाम नहीं जो घोषित उम्मीदवारों से भारी न पड़ता हो। हर नेता जिताऊ है।

हाईकमान या तो आत्मविश्वास खो चुका है या हार की आशंका से डरा हुआ है या "चेहरे" के मोह ने मानसिक संतुलन बिगाड़ दिया है। वर्ना जितने नाम घोषित किए गए हैं उनमें से अधिकांश तो चले हुए कारतूस हैं। विजय बैंसला हों, बालकनाथ हों, भागीरथ चौधरी हों या ऐसे ही अन्य स्वनामधन्य नेता! ये चुनाव मैदान में उतार तो दिए गए हैं मगर इनका मालिक सनातन धर्म ही है। मतदाताओं के लिए तो ये अछूत ही लग रहे हैं।

यहां मज़ेदार बात यह है कि दिल्ली का दिल पहली लिस्ट निकालने के बाद मारे डर के बैठा जा रहा है। दिल्ली का दिल इतना दहला हुआ है कि राजस्थान भाजपा प्रभारी अरुण सिंह व छह नेताओं को विशेष चार्टेड प्लेन से दिल्ली बुला लिया गया और उनसे डैमेज कंट्रोल के लिए तत्काल कोई ठोस रणनीति बनाने को कहा गया है।

यहां सवाल उठता है कि डैमेज कंट्रोल कैसे होगा? लालच देकर? कोहनी में शहद लगाकर? भविष्य के सपने दिखा कर? डरा धमका कर? हाथ-पैर जोड़कर? घोषित उम्मीदवारों से चरण वंदन करवा कर? आख़िर कौन सा मार्ग अपनाया जाएगा?

मित्रों! जिनके टिकिट काटे गए हैं इनमें से एक भी नेता ऐसा नहीं जो हाईकमान द्वारा दिये गए खिलौनों से बह जाएं! सब अपने आप में सौर्य उर्जा के पावर हाउस हैं। ऐसे में मुझे लगता नहीं कि लिस्ट पर पुनर्विचार से कम पर कोई विद्रोह शांत हो सकेगा! और ये भी तय है कि पुनर्विचार होगा नहीं!

ज़ाहिर है कि बाग़ी उम्मीदवार अब अपने समर्थकों के सहारे दूसरी पार्टियों से सम्पर्क कर रहे हैं। और मेरा दावा है कि उतारे गए कुछ भाजपाई उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ कांग्रेस, आरएलपी और आम पार्टी बाग़ी नेताओं को अपना टिकिट दे सकती है।

पहली लिस्ट के बाद दूसरी लिस्ट में अब दिल्ली अतिरिक्त सावधानी बरत रही है। नए प्रयोग ले डूबेंगे यह अब उनके दिमाग़ में आ गया होगा। नहीं आया होगा तो बचा-खुचा रायता वसुंधरा की फौज ढोल देगी। महारानी की चुप्पी को अभी शायद कायरता में लिया जा रहा है, मगर यह तूफ़ान के पहले की ख़ामोशी है इसे जुड़वां भाई भी जानते हैं।

कल दिल्ली में एक और मज़ेदार घटना हुई। कांग्रेस के वार रूम में टिकिटों के बारे में अंतिम फ़ैसला लेते समय। वार रूम 15 आरजी के बाहर गहलोत के हनुमान जी को देखा गया। लाल डायरी के रचयिता धर्मेन्द्र राठौड़ को मीडिया कर्मी देख कर चौंक गए। ऐसा लगा जैसे खड़गे, वेणुगोपाल और अन्य शीर्ष नेताओं ने उनसे रायशुमारी करने के लिए उन्हें बुलाया हो।

लोगों में तरह-तरह की चर्चा थी। कुछ कह रहे थे कि उनकी टिकिट कटने के पूरे आसार हैं और उनके आक़ा ने उनको अपनी पैरवी के लिए बुलाया है। कुछ कह रहे थे कि अशोक गहलोत से जुड़े टेढ़े सवालों से उनका लेना-देना है। बातें और भी थीं जिनको बिना पुख़्ता किए बताना नहीं चाहता।

जानकारी मिली है कि आरपीएससी में कर्नल केसर सिंह का इस्तीफा दिलवाने के लिए कांग्रेस की सेंट्रल लीडरशिप पर डोटासरा ने यह बोलकर दबाव बनाया है कि इसको हटाया नहीं तो मैं कांग्रेस से इस्तीफा दे दूंगा। हरीश चौधरी ने भी इसकी खिलाफत की है। समझा जा रहा है कि ऐसे में धर्मेंद्र राठौर को दिल्ली तलब किया गया है। अलवर के सांसद और राहुल गांधी के सबसे नज़दीतर कहे जाने वाले भंवर जितेंद्र सिंह भी गहलोत की तरफ से इस्तीफा देने के लिए दबाव बना रहे हैं।

असलियत क्या है यह धर्मेन्द्र राठौड़ ख़ुद ही जानें, मगर उनके राजपूत प्रेम से उठे हुए मोह को लेकर बड़ी चर्चाएं हैं। महाराणा प्रताप बोर्ड के गठन की घोषणा में अजमेर के एक भी राजपूत नेता को योग्य नहीं समझा गया, बल्कि सुनियोजित तरीके से नामों को हटवाया गया। जब सिन्धी अकेडमी के लिए धर्मेन्द्र राठौड़ अपने दो नाम अजमेर से एडजेस्ट करवा सकते थे ..तो क्या अपने एक राजपूत भाई को अजमेर से शामिल नहीं करवा सकते थे? या अजमेर ज़िले में कोई योग्य राजपूत है ही नहीं?

फ़िलहाल अजमेर के राजपूतों में महाराणा प्रताप के बोर्ड गठन को लेकर काफ़ी रोष है। आज इतना ही कल फिर हाज़िर होऊंगा.. नए मुद्दे को लेकर..

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