वट सावित्री व्रत.. सुख-समृद्धि, अखंड सौभाग्य, कलह नाश के लिए करते हैं व्रत
मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु एवं डालियों में त्रिनेत्रधारी शंकर का निवास होता है एवं इस पेड़ में बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती हैं जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है।
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य के साथ ही हर तरह के कलह और संतापों का नाश करने के लिए वट वृक्ष की पूजा की जाती है। वट सावित्री व्रत इस बार कल शुक्रवार 19 मई को है। वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार धार्मिक मान्यता है कि वट सावित्री व्रत रखना विवाहित महिलाओं के लिए बेहद ही शुभ और मंगलकारी है।
धर्म शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने पर भगवान विष्णु और डालियों पर त्रिनेत्रधारी शिव का निवास होता है। इसलिए अखंड सौभाग्य की प्राप्ति और अपने पति की दीर्घायु की कामना के लिए वट सावित्री व्रत रखा जाता है। और बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है।
मान्यता के अनुसार वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संतापों का नाश करने वाली होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पांच वटवृक्षों में अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट का महत्व अधिक है। प्रयाग में अक्षयवट, नासिक में पंचवट, वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है।
फाइल फोटो।
।।तहं पुनि संभु समुझिपन आसन। बैठे वटतर, करि कमलासन।।
भावार्थ यह है कि कई सगुण साधकों, ऋषियों, यहां तक कि देवताओं ने भी वट वृक्ष में भगवान विष्णु की उपस्थिति के दर्शन किए हैं।
ये है पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार इस दिन बांस की टोकरी में सप्तधान्य के ऊपर ब्रह्मा और ब्रह्मसावित्री तथा दूसरी टोकरी में सत्यवान एवं सावित्री की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित कर बरगद के नीचे बैठकर पूजा करने का विधान है। साथ ही इस दिन यमराज की भी पूजा की जाती है। लाल वस्त्र, सिन्दूर, पुष्प, अक्षत, रोली, मौली, भीगे चने, फल और मिठाई लेकर पूजन करें।
कच्चे दूध और जल से जड़ों को सींचें
कच्चे दूध और जल से वृक्ष की जड़ों को सींचकर वृक्ष के तने में सात बार कच्चा सूत या मौली लपेटकर यथाशक्ति परिक्रमा करें। पूजा के उपरान्त भक्तिपूर्वक सत्यवान-सावित्री की कथा का श्रवण और वाचन करना चाहिए। ऐसा करने से परिवार पर आने वाली अदृश्य बाधाएं दूर होती हैं, घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
ये है भीगे चने का महत्व
इस व्रत की पूजा में भीगे हुए चने का अर्पण करने का बहुत महत्व है क्योंकि यमराज ने चने के रूप में ही सत्यवान के प्राण सावित्री को दिए थे। सावित्री चने को लेकर सत्यवान के शव के पास आईं और चने को सत्यवान के मुख में रख दिया, इससे सत्यवान पुनः जीवित हो गए।
बरगद के वृक्ष का धार्मिक महत्व
आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व के बोध के नाते भी स्वीकार किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु एवं डालियों में त्रिनेत्रधारी शंकर का निवास होता है एवं इस पेड़ में बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती हैं जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है। इसलिए इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं। अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्वर माना गया है।
वट वृक्ष की छांव में ही पति को पुनः जीवित किया था
वट वृक्ष की छांव में ही देवी सावित्री ने अपने पति को पुनः जीवित किया था। इसी मान्यता के आधार पर स्त्रियां अचल सुहाग की प्राप्ति के लिए इस दिन बरगद के वृक्षों की पूजा करती हैं। शास्त्रों के अनुसार जिस समय भगवान विष्णु की नाभि से कमल उत्पन्न हुआ था उसी वक्त यक्षों के राजा मणिभद्र से वट वृक्ष उत्पन्न हुआ। यक्ष के नाम से बरगद के पेड़ को यक्षवास, यक्षतरु और यक्ष वारुक आदि नामों से जाना जाता है। मान्यता है कि प्रलय के अंत में भगवान श्री कृष्ण ने इसी वृक्ष के पत्ते पर मार्कण्डेय ऋषि को दर्शन दिए थे। बरगद को साक्षात शिव भी कहा गया है, बरगद को देखना शिव का दर्शन करना है।