मलमास आज से- भगवान विष्णु की महाकृपा पाने इन बातों का रखें ध्यान, न करें ये काम
इस मास पूजा, पाठ और दान-पुण्य के कार्य करने का फल अधिक मिलता है। वहीं मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। जानें मलमास में क्या करें क्या न करें..
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। सनातन धर्म ग्रह-नक्षत्रों, पृथ्वी, आकाश, पाताल के साथ प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर आधारित है। इसी के अनुसार पूरी पृथ्वी पर मानव का कल्याण होता है। दिनों के नाम, सप्ताह, माह, साल सभी के नाम उन्हीं के आधार पर रखे गए हैं। और उसी अनुसार देवी-देवाओं की पूजा अर्चना कर कृपा पाई जाती है।
इन्हीं में से पुरुषोत्तम मास (Purushottam Maas) 2023 है, जिसे अधिकमास या मलमास (खरमास) कहा जाता है, क्योंकि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने उनको अपना नाम दिए थे। इस माह पूजा, पाठ और दान-पुण्य के कार्य करने का फल अधिक मिलता है। वहीं मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
इसके लिए अनेक व्यावहारिक नियमों का पालन करना होता है। जिससे मानव जीव सुखमय रहे, तकलीफ आए भी तो उसका समाधान भी निकल आए। आइए जानते हैं कि अधिकमास में क्या करना चाहिए और क्या नहीं..
अधिकमास में क्या करें.. क्या ना करें..
18 जुलाई दिन मंगलवार से अधिकमास या मलमास की शुरुआत हो रही है, जो 16 अगस्त दिन बुधवार को समाप्त होगा। अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है क्योंकि इसके स्वामी स्वयं भगवान श्रीहरि हैं। पुरुषोत्तम मास का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस माह भगवान विष्णु की आराधना और भागवत कथा सुनना करना बहुत पुण्यदायी माना गया है।
अधिक मिलता है फल
मान्यता है कि इस मास किए गए धार्मिक कार्यों और पूजा पाठ का फल अधिक मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। ज्योतिष शास्त्र में मलमास का महत्व बताते हुए, कुछ ऐसी चीजों के बारे में भी जानकारी दी गई है कि इस अवधि में भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए कौन सी चीजें करनी चाहिए और कौन सी नहीं..
मलमास में ये कर सकते हैं..
* धर्म-कर्म के कार्यों के लिए अधिकमास बेहद उपयोगी माना गया है। इस मास में भगवान कृष्ण और नरसिंह भगवान की कथाओं को सुनना चाहिए। दान पुण्य के कार्य करने चाहिए। अधिकमास में श्रीमद्भगवद्गीता, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ, राम कथा और गीता का अध्याय करना चाहिए। सुबह शाम 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए।
* अधिकमास में जप-तप के अलावा भोजन का भी ध्यान रखना चाहिए। इस पूरे मास में एक समय ही भोजन करना चाहिए। इस मास में चावल, जौ, तिल, केला, दूध, दही, जीरा, सेंधा नमक, ककड़ी, गेहूं, बथुआ, मटर, पान-सुपारी, कटहल, मेथी आदि चीजों के सेवन का विधान है। इस मास में ब्राह्मण, गरीब व जरूरतमंद को भोजन करना चाहिए और दान करना चाहिए।
* अधिकमास में दीपदान करने का विशेष महत्व है। साथ ही इस माह एक बार ध्वजा दान भी अवश्य करना चाहिए। इस अवधि में दान पुण्य के कार्य करना, सामाजिक व धार्मिक कार्य, साझेदारी के कार्य, वृक्ष लगाना, सेवा कार्य, मुकदमा लगाना आदि कार्यों में कोई दोष नहीं होता है।
* अधिकमास में विवाह तय कर सकते हैं और सगाई भी कर सकते हैं। भूमि व मकान खरीदने का कॉन्ट्रैक्ट कर सकते हैं। साथ ही आप शुभ योग व मुहूर्त में खरीदारी भी कर सकते हैं। इसके अलावा आप संतान के जन्म संबंधी कार्य कर सकते हैं। सीमांत, शल्य कार्य आदि कार्य भी कर सकते हैं।
ये कार्य नहीं करना चाहिए
* अधिकमास या मलमास में मांस-मछली, शहद, मसूर दाल और उड़द दाल, मूली, प्याज-लहसुन, नशीले पदार्थ, बासी अन्न, राई आदि चीजों का सेवन करने से बचना चाहिए।
* इस माह नामकरण, श्राद्ध, तिलक, मुंडन, कर्ण छेदन, गृह प्रवेश, संन्यास, यज्ञ, दीक्षा लेना, देव प्रतिष्ठा, विवाह आदि शुभ व मांगलिक कार्यों को करना वर्जित बताया गया है।
* अधिकमास में घर, मकान, दुकान, वाहन, वस्त्र आदि की खरीदारी नहीं करनी चाहिए। हालांकि शुभ मुहूर्त निकलवाकर आभूषण खरीद सकते हैं।
* अधिकमास में शारीरिक और मानसिक रूप से किसी का अहित नहीं करना चाहिए। इस माह अपशब्द, क्रोध, गलत कार्य करना, चोरी, असत्य बोलना, गृहकलह आदि चीजें नहीं करना चाहिए। साथ ही तालाब, बोरिंग, कुआं आदि का त्याग करना चाहिए।