द्वापर का अंत.. और जन्माष्टमी का आध्यात्मिक पक्ष..

वसुदेव अर्थात् शुद्ध अंतःकरण, देवकी अर्थात् पवित्र बुद्धि। अंतःकरण के पेट में नहीं बल्कि पवित्र बुद्धि जो कि अंतरंग है के गर्भ से श्री भगवान का अवतरण होता है।

द्वापर का अंत.. और जन्माष्टमी का आध्यात्मिक पक्ष..

जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..

जनजागरुकता, धर्म डेस्क। द्वापर अर्थात् दो नाव पर पैर रखना और संकंट मोल लेना.. द्वापर अर्थात् संशय। द्वापर अर्थात् जब सनातन धर्म पर संशय, ईश्वर पर संशय, आत्मा ब्रह्म की एकता पर संशय, संत-महात्माओं पर संशय। द्वापरांत अर्थात् संशय के अन्त का समय। और वही जन्माष्टमी आती है जब द्वापर का अंत होने वाला ही होता है। वसुदेव अर्थात् शुद्ध अंतःकरण, देवकी अर्थात् पवित्र बुद्धि। अंतःकरण के पेट में नहीं बल्कि पवित्र बुद्धि जो कि अंतरंग है के गर्भ से श्री भगवान का अवतरण होता है।

पौराणिक पक्ष.. पृथ्वी- घमंड का बोझ नहीं झेल पाती

पृथ्वी के उपर पेड़-पहाड़ का बोझ नहीं होता। पेड़-पहाड़ इत्यादि पृथ्वी के अवयव हैं।पृथ्वी के उपर घमंड का बोझ पड़ता है। पृथ्वी घमंड का बोझ नहीं झेल पाती। जब घमंड का बोझ पड़ता है तब रजोगुण का चैतन्य तमोगुण का चैतन्य रूद्र, सर्व दैवीय संपदा के राजा इंद्र, श्री हरि नारायण जो कि सत् गुण के सागर क्षीरसागर में रहते हैं के पास जाकर पृथ्वी के उपर विचरण कर रहे घमंडिया का गठबंधन कंस जरासंध दुर्योधन इत्यादि के नाश के लिये प्रार्थना करते हैं।

फिर घमंडियों का अन्त करते हैं

श्री हरि नारायण कहते हैं कि ठीक है कुछ उपाय करता हूं। और पूतना अर्थात् अविद्या, और कंस अर्थात् हिंसक इत्यादि इत्यादियों के इन घमंडियों का अन्त करते हैं।

नारायणाकार होकर करें शत्रुओं पर प्रहार

सनातन हिन्दू धर्म के नाश का दुःस्वप्न देखने वाले के समूल नाश के लिये हम सभी पवित्र त्यौहारों पर संकल्प लें और हम सब अर्जुन बनकर अपनी बुद्धि को नारायणाकार करके शत्रुओं पर जैसे भी हो सके जितना भी हो सके प्रहार करें।

गीता संपूर्ण दर्शन है

श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान मानव जीवन और जीवन के बाद के जीवन, दोनों के लिए उपयोगी माना गया है। गीता संपूर्ण जीवन दर्शन है और इसका अनुसरण करने वाला व्यक्ति सर्वश्रेष्ठ होता है। गीता में श्रीकृष्ण ने धर्म का सही तात्पर्य समझाया है। 

।।जय श्री कृष्ण।।  janjaagrukta.com