सर्व प्रथम देव गणेश जी.. इस विधि से निर्माण व स्थापना से मिलता है फल

सिद्धि विनायक, एकदंत, बप्पा, विघ्नहर्ता न जाने कितने रूपों में भक्तों पर कृपा बरसाने को गौरी पुत्र गणेश पंडलों और घरों में विराजे हैं।

सर्व प्रथम देव गणेश जी.. इस विधि से निर्माण व स्थापना से मिलता है फल

जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..

जनजागरुकता, धर्म डेस्क। गणेश चतुर्थी का पर्व हर साल बड़ी श्रद्धा के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। भाद्रपद मास की शुक्‍ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से इस उत्‍सव की शुरुआत होती है और अनंत चतुर्दशी पर इसका समापन होता है। 

गणपति बप्पा मोरया की गूंज शहरों और गांवों में गूंज है। सिद्धि विनायक, एकदंत, बप्पा, विघ्नहर्ता न जाने कितने रूपों में भक्तों पर कृपा बरसाने को गौरी पुत्र गणेश पंडलों और घरों में विराजे हैं। गुजरात, महाराष्‍ट्र, राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश, उत्‍तर प्रदेश समेत देश के तमाम हिस्‍सों में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को पड़ा है। 

सनातन धर्म के अनुसार प्रथम पुज्यनीय देव गौरी नंदन गणेश जी हैं। उनकी मूर्ति स्थापना को लेकर कई तरह की बातें हमारे धर्म शास्त्रों में दी गई है। श्रद्धा अनुसार उनकी प्रतिमा तैयार करने के लिए नियमों के पालन के साथ श्रद्धा रखा जाए तो फल अवश्य मिलता है।

ये है गणेश जी की मूर्ति से जुड़ी जरूरी बातें..

1- गंगा या किसी भी पवित्र नदी की मिट्टी के साथ शमी या पीपल के जड़ की मिट्टी से मूर्ति बना सकते हैं। जहां से भी मिट्‌टी लें, वहां ऊपर से चार अंगुल हटाकर, अंदर की मिट्टी इस्तेमाल कर सकते हैं।

2- मिट्टी के अलावा गाय के गोबर, सुपारी, सफेद मदार की जड़, नारियल, हल्दी, चांदी, पीतल, तांबा और स्फटिक से बनी मूर्तियों की भी स्थापना कर सकते हैं।

3- मिट्टी में स्वाभाविक पवित्रता होती है। इसमें भूमि, जल, वायु,अग्नि और आकाश के अंश होने से ये पंच तत्वों से बनी होती है। देवी पार्वती ने भी मिट्टी का ही पुतला बनाया था।

4-घर में हथेली भर के गणेशजी स्थापित करने चाहिए। ग्रंथों के माप के मुताबिक मूर्ति 12 अंगुल यानी तकरीबन 7 से 9 इंच तक की हो। इससे ऊंची मूर्ति घर में नहीं होनी चाहिए। 

5- मंदिरों और पंडालों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है। बैठे हुए गणेश घर में और खड़े गणपति ऑफिस, दुकान, कारखानों के लिए शुभ होते हैं।

6- पूर्व, उत्तर या ईशान कोण में (उत्तर-पूर्व के बीच) मूर्ति रखें। ब्रह्म स्थान यानी घर के बीच में खाली जगह पर भी स्थापना कर सकते हैं। शयन कक्ष में, सीढ़ियों के नीचे और बाथरूम के नजदीक मूर्ति स्थापना न करें। || जय श्री गणेश जय गजानन देवा ||

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