श्राद्धपक्ष.. इस समय धरती पर रहते हैं पित्र.. जल-अन्न अर्पित कर पाएं आशीर्वाद

शास्त्रों की मान्यता के अनुसार, पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके तर्पण के निमित्त श्राद्ध किया जाता है। आइए जानते हैं श्राद्ध से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियों को..

श्राद्धपक्ष.. इस समय धरती पर रहते हैं पित्र.. जल-अन्न अर्पित कर पाएं आशीर्वाद

मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्धपक्ष में जीवों को मुक्त कर देते हैं

ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें

जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..

जनजागरुकता, धर्म डेस्क। सनातन धर्म शास्त्रों की मान्यता के अनुसार, पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके तर्पण के निमित्त श्राद्ध किया जाता है। इससे पीतर तृप्त होते हैं। यहां श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के प्रति सम्मान प्रकट करने से है। हिंदू धर्म में श्राद्ध का बड़ा और विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं। इस दौरान अपने परिजनों से जल-अन्न की आशा करते हैं। 

आइए जानते हैं श्राद्ध पक्ष से जुड़ी कथाएं और हर वह जरूरी बातें जिसे आप सभी को जानना चाहिए..

पितृपक्ष में पितरों को यह आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें अन्न-जल से संतुष्ट करेंगे, यही आशा लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। लेकिन जो लोग यह सोचकर पितर है कहां ? ..यह मानकर उचित तिथि पर जल व शाक से श्राद्ध नहीं करते हैं, उनके पितर दु:खी व निराश होकर श्राप देकर अपने लोक वापस लौट जाते हैं।

दुखी पित्र संबंधियों का चूसते हैं रक्त

उसके बाद दुखी पित्र बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बधियों का रक्त चूसने लगते हैं। फिर इस अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट-ही-कष्ट झेलना पड़ता है। मान्यता है कि ऐसा परिवार को मरने के बाद नरक में जाना पड़ता है।

यमराज जीवों को कर देते हैं मुक्त

श्राद्ध का अर्थ.. श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करने से है। सनातन मान्यता के अनुसार जो परिजन अपना देह त्यागकर चले गए हैं, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ जो तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें।

कौन कहलाते हैं पितर..

जिस किसी के परिजन चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित हों, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है। पितृपक्ष में मृत्युलोक से पितर पृथ्वी पर आते हैं और अपने परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनको तर्पण किया जाता है। पितरों के प्रसन्न होने पर घर पर सुख शान्ति आती है।

ऐसे बनता है पितृपक्ष का योग..

हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष के 15 दिन पितरों को समर्पित होता है। शास्त्रों अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपक्ष की पूर्णिणा से आरम्भ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं। भाद्रपद पूर्णिमा को उन्हीं का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन वर्ष की किसी भी पूर्णिमा को हुआ हो। शास्त्रों में कहा गया है कि साल के किसी भी पक्ष में, जिस तिथि को परिजन का देहांत हुआ हो उनका श्राद्ध कर्म उसी तिथि को करना चाहिए।

ये है श्राद्ध की तिथि..

पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। जिस तिथि पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं। बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती, ऐसी स्थिति में शास्त्रों में इसका भी निवारण बताया गया है।

जब याद ना हो श्राद्ध की तिथि तो..

शास्त्रों के अनुसार यदि किसी को अपने पितरों के देहावसान की तिथि मालूम नहीं है तो ऐसी स्थिति में आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है। इसलिये इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। इसके अलावा यदि किसी की अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। ऐसे ही पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी तिथि को करने की मान्यता है।

श्रद्धा को लेकर ये है पौराणिक कथा..

कहा जाता है कि जब महाभारत के युद्ध में दानवीर कर्ण का निधन हो गया और उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई, तो उन्हें नियमित भोजन की बजाय खाने के लिए सोना और गहने दिए गए। इस बात से निराश होकर कर्ण की आत्मा ने इंद्र देव से इसका कारण पूछा। तब इंद्र ने कर्ण को बताया कि आपने अपने पूरे जीवन में सोने के आभूषणों को दूसरों को दान किया लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों को नहीं दिया।

..तब कर्ण को धरती पर भेजा गया

तब कर्ण ने उत्तर दिया कि वह अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानता है। कर्ण का उत्तर सुनने के बाद, भगवान इंद्र ने उसे 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दे दी ताकि वह अपने पूर्वजों को भोजन दान कर सकें। इसी 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है।

पितरों का आहार है अन्न-जल का सारतत्व

जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सार-तत्व (गंध और रस) है। अत: वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं। शेष जो स्थूल वस्तु हैं, वह यहीं रह जाती है।

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