श्राद्धपक्ष.. भूत, भविष्य और वर्तमान सब जानते हैं हमारे पितर..
पांच तन्मात्राएं- मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति.. इन नौ तत्वों से उनका शरीर बना होता है और इसके भीतर दसवें तत्व के रूप में साक्षात् भगवान पुरुषोत्तम जो उसमें निवास करते हैं।
जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। श्राद्ध पक्ष में भगवान हमारे पितरों को धरती पर भेजते हैं।हमारे पित्र भी एक आशा के साथ पितृपक्ष तक अपने वंशजों के आसपास रहते हैं। वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। पुत्र-पौत्रों से जल-अन्न ग्रहण कर तृप्त होते हैं।
हमारे पितरों को, आत्मा को, ब्रह्म को सब पता होता है। वे भूत, भविष्य व वर्तमान सब जानते हैं। वे बिना बाधा के सभी जगह पहुंच सकते हैं। पांच तन्मात्राएं- मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति–इन नौ तत्वों से उनका शरीर बना होता है और इसके भीतर दसवें तत्व के रूप में साक्षात् भगवान पुरुषोत्तम उसमें निवास करते हैं।
यह बात हमारे धर्म ग्रथों में बताया गया है। इसलिए देवता और पितर गन्ध व रसतत्व से तृप्त होते हैं। शब्दतत्व से रहते हैं और स्पर्शतत्व को अर्पित चीजों को ग्रहण करते हैं। पवित्रता से ही वे प्रसन्न होते हैं और वंशजों को वर देते हैं, आशीर्वाद देते हैं।
बच्चों को भी शामिल करें प्रक्रियाओं में
इसलिए हमें पितृपक्ष तक ऐसी कोई गलती नहीं करनी चाहिए कि उन्हें दुख हो। वे अदृश्य रूप में सब देखते, सुनते और महसूस करते रहते हैं। इसलिए हमें उनके मान-सम्मान का पूरा ध्यान रखना चाहिए। परिवार के हर सदस्य को इस बारे में बताना चाहिए। उन्हें भी पितरों के सम्मान में की जाने वाली प्रक्रियाओं से अवगत कराना चाहिए। ज्यादा कुछ नहीं कर सकते तो कुशा के साथ जल-तिल-जंव का अर्पण अवश्य करना चाहिए।
पितरों का आहार है अन्न-जल का सारतत्व
जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सार-तत्व (गंध और रस) है। अत: वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं। शेष जो स्थूल वस्तु हैं, वह यहीं रह जाती है।