Donald Trump होंगे America के 47वें राष्ट्रपति, भारत-अमेरिका संबंधों पर क्या असर पड़ेगा?
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2024 नतीजे आ गए हैं। ट्रंप चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बन गए हैं, इसका भारत पर भी असर पड़ेगा। ऐसे में ये जानना जरूरी है कि ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और अमेरिका के संबंध कैसे रहेंगे, आइए इस बारे में जानते है..
वाशिंगटन, जनजागरुकता डेस्क। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2024 (America Presidential Election 2024) नतीजे आ गए हैं। रिपब्लिकन कैंडिडेट डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बन चुके हैं। हालांकि, डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस ने ट्रंप को तगड़ी टक्कर दी। ट्रंप चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बन गए हैं, इसका भारत पर भी असर पड़ेगा। ऐसे में ये जानना जरूरी है कि ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और अमेरिका के संबंध कैसे रहेंगे, आइए इस बारे में जानते है..
ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान इकोनॉमिक और ट्रेड पॉलिसीज में अमेरिका को सर्वोपरि रखा था। कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों से अमेरिका को बाहर कर दिया था। इस बार भी ट्रंप प्रशासन अमेरिका केंद्रित पॉलिसीज पर ही जोर देगा। ट्रंप ने हाल ही में भारत पर आयात शुल्क बढ़ाने की बात कही थी। ऐसे में ट्रंप के नए आयात शुल्कों से भारत के आईटी, फार्मास्यूटिकल और टेक्सटाइल क्षेत्र प्रभावित हो सकता है। ट्रंप ने अमेरिका फर्स्ट का नारा दिया है और वो अमेरिकी वस्तुओं और सेवाओं के आयात पर ज़्यादा टैरिफ लगाने वाले देशों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकते हैं. भारत भी इसके घेरे में आ सकता है.ट्रंप की कारोबारी नीतियों से भारत का आयात महंगा हो सकता है. ये महंगाई दर को बढ़ाएगा और इसे ब्याज दरों में ज्यादा कटौती नहीं हो पाएगी. इससे उपभोक्ताओं ख़ास कर मध्य वर्ग की मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि उनकी ईएमआई बढ़ सकती हैं.
ट्रंप की कारोबारी नीतियों से भारत का आयात महंगा हो सकता है. ये महंगाई दर को बढ़ाएगा और इसे ब्याज दरों में ज्यादा कटौती नहीं हो पाएगी. इससे उपभोक्ताओं ख़ास कर मध्य वर्ग की मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि उनकी ईएमआई बढ़ सकती हैं.ट्रंप की नीतियां प्रवासियों के लिए काफी मुश्किलें पैदा कर सकती हैं. ट्रंप इस मामले में काफ़ी मुखर हैं और यह अमेरिकी चुनाव का अहम मुद्दा है.ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेजने का वादा किया है. उनका कहना है कि अवैध प्रवासी अमेरिका के लोगों के रोज़गार खा रहे हैं.बड़ी संख्या में भारतीय अमेरिका के टेक्नोलॉजी सेक्टर में काम करते हैं और वो वहाँ एच- 1 बी वीजा पर जाते हैं. ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल एच -1बी वीज़ा नियमों पर सख़्ती दिखाई थी. यदि यह नीति फिर से लागू होती है, तो इसका असर भारतीय प्रोफेशनल्स पर पड़ सकता है और भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका में नौकरी की संभावनाएं कम हो सकती हैं।
ट्रंप ने भारत में मानवाधिकार के रिकॉर्ड पर अब तक कुछ नहीं कहा है. ये भारत की मोदी सरकार के लिए अनुकूल स्थिति है.कश्मीर में पुलवामा अटैक के दौरान भी ट्रंप ने भारत के 'आत्मरक्षा के अधिकार' का समर्थन किया था. हालांकि बाइडन प्रशासन मानवाधिकार और लोकतंत्र के सवाल पर भारत के ख़िलाफ़ ज्यादा मुखर रहा है.
भारत-अमेरिका के बीच रक्षा और सैन्य सहयोग पिछले कुछ वर्षों में मजबूत हुआ है। ट्रंप प्रशासन के नेतृत्व में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग और बेहतर व मजबूत होने की संभावनाएं हैं। डोनाल्ड ट्रंप चीन के कट्टर विरोधी माने जाते हैं. उनके पहले कार्यकाल में अमेरिका और चीन के रिश्ते काफी ख़राब हो गए थे.ये स्थिति भारत और अमेरिका के बीच रक्षा संबंधों को और मज़बूत करेगी. अपने पहले कार्यकाल के दौरान वो क्वाड को मज़बूती देने के लिए काफ़ी सक्रिय दिखे थे. क्वाड एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान का गठजोड़ है.चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ तनाव के बीच अतिरिक्त संयुक्त सैन्य अभ्यास, हथियारों की बिक्री और टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत कर सकता है।
अमेरिका और कनाडा में खालिस्तानी गतिविधियां बढ़ने से पिछले दिनों भारत को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है. न सिर्फ दो देशों के रिश्ते खराब हुए है , बल्कि भारतीय हिंदुओं की सुरक्षा में खतरे में आ गई है. चूंकि, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की नीतियां अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी से काफी मेल खाती हैं, ऐसे में उम्मीद करना चाहिए कि ट्रंप के आने से भारत को कनाडा पर दबाव बनाने में मदद मिलेगी.
वैसे तो डोनाल्ड ट्रंप भारत के दोस्त नजर आते हैं, लेकिन वे जिस तरह ताबड़तोड़ फैसले लेते हैं, कई बार उससे असहज स्थिति पैदा हो जाती है. जैसे अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने इमरान खान को व्हाइट हाउस बुलवा लिया, और कश्मीर मामले में मध्यस्थता की इच्छा भी जता दी. बाद में भारत के ऐतराज पर अमेरिकी विदेश विभाग को इस मामले में सफाई देनी पड़ी. जबकि, इसके उलट बाइडेन के कार्यकाल में अमेरिका ने पाकिस्तान को कोई भाव नहीं दिया.