गंगा की काली, राजिम की दोमट और गुजरात की मिट्टी से मां दुर्गा की मूर्तियों को दिया आकार, 15 फीट की मूर्ति बिकी ढाई लाख में
माना कैंप में मां दुर्गा की मूर्ति तैयार करने वाले कारीगर मां की मूर्तियों को विशेष स्वरूप देने में जुटे हैं।
"जनजागरुकता" मां दुर्गा पर विशेष
रामप्रसाद दुबे janjaagrukta.com
रायपुर, जनजागरुकता। सोमवार से दुर्गा पूजा यानी दुर्गोत्सव या शरद उत्सव की शुरुआत होने जा रही है। देश व प्रदेश में हर जगह मां की आराधना की तैयारियां जोर-शोर से चल रही है। समितियां पंडाल को नयनाभिराम स्वरूप देने में लगी हैं वहीं देवी मंदिरों में मां की आराधना की तैयारी के साथ आस्था की जोत कलश की स्थापना की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। इस बीच माना कैंप में मां दुर्गा की मूर्ति तैयार करने वाले कारीगर मां की मूर्तियों को विशेष स्वरूप देने में जुटे हैं।
मां की मूर्ति में गंगा की काली मिट्टी, राजिम की दोमट मिट्टी और गुजरात की विशेष मिट्टी का उपयोग किया गया है। इस वर्ष माना कैंप में अधिकतम 15 फीट की मूर्ति तैयार की गई है जो ढाई रुपए में बिकी। कोरोना के दो साल बाद कारीगर भी खुश हैं और इसे मां का आशीर्वाद मानते हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण एशिया में मनाए जाने वाले वार्षिक हिंदू पर्व को दुर्गोत्सव कहा जाता है जिसमें हिंदू देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। 9 दिनों तक चलने वाली इस आराधना के पर्व में हर कोई मां की भक्ति व उल्लास के रंग में डूबा दिखेगा।
ऑनलाइन ऑर्डर पर तैयार हुई मूर्तियां, ऑनलाइन बुकिंग इसलिए ताकि
मूर्ति के साथ अन्याय न हो, तैयार कर यूं ही नहीं छोड़ सकते
मूर्तिकार अरविंद घोष का कहना था कि समितियों की अपील पर ऑनलाइन चित्र दिए जाते हैं। उन चित्रों के आधार पर मां की आराधना को स्वरूप में बदला जाता है। यह परंपरा वर्ष 1964 से उनके दादा ने शुरू की थी। घोष ने बताया की कई समितियां रायपुर से और राजधानी से बाहर की होती हैं इसलिए मूर्तियों को तैयार करने के ऑर्डर ऑनलाइन लिए जाते हैं। ऑनलाइन ऑर्डर पर ऑनलाइन पेमेंट भी एडवांस लिए जाते हैं और सौदा तय होने पर ही मूर्तियां तैयार की जाती हैं क्योंकि यह आस्था से जुड़ा प्रश्न है। मां की मूर्ति तैयार होने के बाद उसे विसर्जन करना होता है। यूं ही मूर्ति तैयार कर नहीं छोड़ा जा सकता इसलिए सुनिश्चित होने के बाद और एक निश्चित संख्या में मूर्तियां बनाई जाती हैं ताकि इस सम्मान की रक्षा की जा सके।
कोलकाता की मिट्टी का नहीं होता प्रयोग, उसका प्रचलन केवल बंगाल में
अरविंद घोष ने स्पष्ट कहा कि कोलकाता की काली घाट की मिट्टी का प्रयोग छत्तीसगढ़ में नहीं किया जाता। वहां की मिट्टी का प्रयोग पश्चिम बंगाल में ही विशेष परंपरा को पूरा करने के लिए किया जाता है जो बंगाली समाज के लोग ही पूरा करते हैं। इसे बलि प्रथा भी कहा जाता है। यहां पर उस तरह की व्यवस्थाएं नहीं हैं और न ही उस तरह की पूजा होती है। पश्चिम बंगाल में भी 200 से 250 परिवार ही उक्त परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं।
महंगाई और पेट्रोल के बढ़े दाम से इस बार दाम अधिक
अरविंद घोष का कहना है कि कोविड-19 के दौर में सर्वाधिक 50 मूर्तियों की बिक्री की गई थी। उस दौर में सामान सस्ते थे इसलिए एक मूर्ति अधिकतम 18000 रुपए की तक ही बिकी थी। इस वर्ष महंगाई, पेट्रोलियम के दामों की वजह कीमतें बढ़ी हुई हैं, केमिकल के दाम भी बढ़े हुए हैं। मां के श्रृंगार में प्रयोग में आने वाले सभी रंग केमिकल से बने होते हैं जो काफी महंगे होते हैं इसलिए इस वर्ष मूर्तियां काफी महंगी कीमत पर दी जा रही हैं।
एक मूर्ति को बनाने में 10 से 15 कलाकार और 15 दिन लगते हैं
"जनजागरुकता" को माना कैंप के मूर्तिकार अरविंद घोष ने बताया कि मां दुर्गा की मूर्ति में 3 विशेष प्रकार की मिट्टी का सम्मिश्रण किया जाता है। उन्होंने बताया कि मां की मूर्ति में गंगा की काली मिट्टी, राजिम की दोमट मिट्टी और गुजरात की विशेष मिट्टी का उपयोग कर मां को विभिन्न स्वरूप दिए जाते हैं। एक मूर्ति को तैयार करने में 10 से 15 कलाकार लगते हैं और 15 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद अलग-अलग प्रक्रियाओं के बाद मां की प्रतिमा तैयार हो पाती है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष सर्वाधिक 15 फीट की मां की मूर्ति तैयार की गई है जिसमें वस्त्रों से लेकर श्रृंगार के सभी सामानों का उपयोग कर मां दुर्गा के रूप को नयनाभिराम बनाया गया है।
मुख्य कारीगर को 60 हजार रुपए वेतन
मूर्ति को तैयार करने वाले कलाकारों के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल से कलाकार बुलाए जाते हैं जो 1 माह तक वेतन पर रखे जाते हैं। इसमें मुख्य कारीगर को 60000 रुपए तथा सहायक को 30000 रुपए और अन्य को 8 से 15 हजार रुपए वेतन दिया जाता है। एक मूर्ति को तैयार करने में कम से कम 8 से 15 कलाकारों की जरूरत होती है और दिन-रात की मेहनत के बाद मूर्तियां तैयार हो पाती हैं।
विश्वास और आस्था का विशेष ध्यान
अरविंद घोष का कहना है कि मां की मूर्ति तैयार करते समय आस्था और विश्वास का विशेष ध्यान रखा जाता है क्योंकि ऑनलाइन ऑर्डर पर हर तरह की मांग होती है मगर मां के स्वरूप को समझने के साथ ही आकार देना पड़ता है। गणेश की मूर्तियां तैयार करते समय तमाम स्वरूप दिए जा सकते हैं परंतु देवी दुर्गा की मूर्ति तैयार करते समय किसी कहावत या किसी परंपरा को शामिल नहीं किया जा सकता क्योंकि मां की मूर्ति अपने आपमें विशेष होती है।
5 फीट की मूर्ति 15 हजार रुपए में बिकी
5 से लेकर 15 फीट तक की मूर्ति तैयार की गई है। इसमें 5 फीट की कीमत 15000 रुपए रखी गई और 15 फीट की सर्वाधिक ऊंची मूर्ति ढाई लाख रुपए में बिकी है। समिति वाले 55 से 60 हजार रुपए कीमत के आधार पर भी मूर्तियों की मांगकर मां को विशेष आस्था के साथ पूजन के लिए लेकर जाते रहे हैं। janjaagrukta.com