यह एक आदिवासी की मौत नहीं... प्रशासनिक व्यवस्था को आईना दिखाने की तस्वीर है...
एक आदिवासी की मौत हो गई। शव वाहन उसे घर तक पहुंचाने जा रहा था पर एक संवेदनशील स्थान से आगे बढ़ने से न केवल गिट्टी भरा रास्ता आड़े आ गया बल्कि नक्सलियों का खौफ भी।
दंत्तेवाड़ा के नीलवाया के बंडी की मौत, एंबुलेंस ने 8 किमी पहले सड़क पर उसके शव को उतार दिया, वजह... रास्ते के नाम पर सिर्फ गिट्टी का जाल और उस पर पड़ने वाले नाले
जनजागरुकता ब्रेकिंग janjaagrukta.com
दंतेवाड़ा, जनजागरुकता। आदिवासी क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं के अभाव का दर्द हमेशा सामने आता रहा है पर सच्चाई ये है कि प्रशासन और सरकारी दावों की पोल खोलते हादसे झेलने 21वीं सदी में भी विवश हैं। खाट पर शव लेकर जा रही ये तस्वीर दिल दहला देने वाली है।
एक आदिवासी की मौत हो गई। शव वाहन उसे घर तक पहुंचाने जा रहा था पर एक संवेदनशील स्थान से आगे बढ़ने से न केवल गिट्टी भरा रास्ता आड़े आ गया बल्कि नक्सलियों का खौफ भी। नतीजा... बीच रास्ते में शव को सड़क पर उतार दिया, इसके बाद परिजन उस शव को खाट पर ढोकर 7 किमी पैदल गांव तक ले गए, वो भी गिट्टी भरे रास्ते पर। यानी मरने की पीड़ा से कहीं कम न थी शव को ढोने की पीड़ा। पैरों से रिसते खून के बीच नालों के पानी ने मानो जले पर नमक भी छिड़का।
तस्वीर कहीं और की नहीं बल्कि दंतेवाड़ा जिले के कुआकोंडा ब्लॉक के नीलावाया ग्राम पंचायत की है। नीलावाया ग्राम का एक ग्रामीण बंडी (52) किरंदुल के छोटे से अस्पताल में एक हफ्ते से जीवन और मौत से जूझ रहा था। शनिवार को डॉक्टरों ने हाथ झटक दिए और जगदलपुर रेफर कर दिया। उसे किरंदुल से एंबुलेंस से 130 किमी दूर जगदलपुर ले जाया जा रहा था पर 60 किमी तक पहुंचे ही थे कि गीदम के करीब बास्तानार घाट पर उसकी मौत हो गई।
एंबुलेंस ने शव को 20 किमी दूर दंतेवाड़ा छोड़ दिया। वहां से सारी औपचारिकताएं पूरी कर शव को उसके गांव नीलवाया ले जाया जा रहा था पर 8 किमी पहले एंबुलेंस ने समेली अरनपुर सड़क पर ही शव को छोड़ दिया। जहां शव को छोड़ा वह दंत्तेवाड़ा से 49 किमी दूर है। वजह.... सड़क के नाम पर केवल गिट्टी ही गिट्टी है और नक्सली खौफ तो है ही। यहां से 7 किमी नीलवाया तक परिजन शव को खाट पर बारी-बारी से ढोकर ले गए। गिट्टी से पैरों के छिलने की मर्मांतक पीड़ा परिजन के खोने की पीड़ा कैसे इन आदिवासियों से छीनी जा रही है, ये उसका एक छोटा सा उदाहरण है।
बड़ा सवाल-कौन है बैकफुट पर..? इसी सड़क पर शहीद हुए थे 3 जवान व कैमरामैन
जानकारी के लिए बता दें कि नीलावाया वही ग्राम है जहां की सड़क पिछले 5 वर्षों से अधूरी है। इसी सड़क पर 2018 में सबइंस्पेक्टर रुद्रप्रताप सिंह, 2 जवान और दूरदर्शन के कैमरामैन अचितानंद साहू शहीद हुए थे, बाइक सवार इन लोगों को नक्सलियों ने गोलियों से भून डाला था। तब से अभी तक यह सड़क उसी हालत में है। जहां एक तरफ पुलिस नक्सलियों के बैकफुट पर होने का दावा करते नहीं थक रही है वहीं यह अधूरी सड़क, टूटी पुलिया अभी भी नक्सलियों की मौजूदगी का एहसास दिलाती है। इन दोनों के बीच भोले-भाले आदिवासी ग्रामीण पिस रहे हैं।
इस दर्द को दवा की जरूरत पर हकीम (व्यवस्था) ही बीमार है...
ग्रामीणों का कहना है कि यह सड़क बनने से पहले ही ठीक थी, कम से कम गांव तक गाड़ियां तो पहुंचती थी लेकिन जब से यह सड़क बनाना शुरू हुई है तब से गांव तक पहुंचने का एकमात्र साधन पैदल ही है। सड़क पर गिट्टी बिछाकर छोड़ दी गई है जिससे नंगे पांव चलने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। और तो और सड़क बनने की वजह से माओवादियों ने यहां पहुंचने वाले गोलानाला के पुल को भी तोड़ दिया है, जिसकी वजह से बारिश के दिनों में जान जोखिम में डालकर नदी पार करना पड़ता है।
5 साल से बन रही सड़क
यह सड़क पीएमजीएसवाई के तहत बन रही है, जिसकी लागत 305.76 लाख रुपए है लेकिन बदकिस्मती ऐसी कि पिछले 5 साल से यह सड़क अधूरी ही है। हमारे अफसरों को ऐसी मौतों के पीछे की आवाज सुनाई नहीं देती क्योंकि वह संगठित नहीं है। janjaagrukta.com