अब किसी को धर्म या जाति की जानकारी देने की जरूरत नहीं
न्यायमूर्ति ललिता कन्नेगांती की पीठ ने कहा है कि हर नागरिक को किसी भी धर्म का पालन न करने या उसे स्वीकार न करने का अधिकार है, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 में निहित है।
तेलंगाना, जनजागरुकता डेस्क। यहां के आम नागरिकों के लिए एक राहत भरी खबर सामने आई है। अब जन्म प्रमाण पत्र आवेदन प्रारूप में किसी को भी धर्म या जाति की जानकारी देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मामले में उच्च न्यायालय ने आवेदन प्रारूपों में "कोई धर्म नहीं" और "कोई जाति नहीं" के विकल्प शामिल करने का निर्देश दिया है।
तेलंगाना हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति ललिता कन्नेगांती की पीठ ने कहा है कि हर नागरिक को किसी भी धर्म का पालन न करने या उसे स्वीकार न करने का अधिकार है, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 में निहित है।
अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि राज्य के नागरिकों को किसी भी धर्म से जुड़े होने की घोषणा करने या उसका दावा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। अलग-अलग धर्मों से संबंध रखने वाले व धर्म की अवधारणा में विश्वास नहीं करने वाले एक जोड़े द्वारा दायर याचिका के जवाब में अदालत ने उक्त निर्देश दिया है।
दंपति के अनुरोधों को अधिकारियों ने स्वीकार नहीं किया
बता दें कि दम्पति अपने बच्चों का पालन-पोषण अपनी मान्यताओं के आधार पर करना चाहते थे। मामले मं हालांकि, जब 2019 में उनका बेटा हुआ तो दंपति ने उसके जन्म प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया, तो उन्हें उसकी धार्मिक स्थिति की जानकारी देनी पड़ी। इस दौरान दंपति को उनके बच्चे की स्थिति को "कोई धर्म नहीं" और "कोई जाति नहीं" घोषित करने के कई प्रयासों के बावजूद, अधिकारियों ने उनके अनुरोधों को स्वीकार नहीं किया।
हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
उसके बाद दंपति ने हाई कोर्ट जाने का फैसला किया और मामलों में सभी जन्म प्रमाण पत्र फॉर्मों पर "कोई धर्म नहीं और कोई जाति नहीं" का विकल्प शामिल करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की।
एकल माताओं पर फैसले का हवाला दिया
उच्च न्यायालय ने एबीसी बनाम राज्य (एनसीटी ऑफ दिल्ली) (2015) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की एक मिसाल का हवाला दिया, जहां शीर्ष अदालत ने अधिकारियों को निर्देश दिया था कि एकल माताओं के मामलों में जन्म प्रमाण पत्र जारी करने के लिए पिता के हस्ताक्षर की आवश्यकता न हो।
जरूरतों के अनुकूल आवश्यक परिवर्तन करने चाहिए
इसके अतिरिक्त, अदालत ने माना कि समाज लगातार विकसित हो रहा है, और संविधान के आदेश के अनुसार, राज्य को बढ़ती जरूरतों के अनुकूल आवश्यक परिवर्तन करने चाहिए, क्योंकि परिवर्तन अपरिहार्य है। अदालत ने आगे इस बात पर जोर दिया कि प्रत्येक नागरिक को अपने विवेक और विश्वास के अनुसार कार्य करने का अधिकार है, और राज्य इसे अन्यथा लागू नहीं कर सकता है। अदालत ने कहा कि इस संबंध में कोई भी जबरदस्ती भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
अधिकारियों को निर्देश
परिणामस्वरूप, अदालत ने जोड़े की याचिका स्वीकार कर ली और प्रतिवादी अधिकारियों को जन्म प्रमाण पत्र के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रारूप में "कोई धर्म नहीं" और "कोई जाति नहीं" का एक कॉलम शामिल करने का निर्देश दिया।