करवा चौथ : पति के लिए सुहागिनों का महापर्व, जानें शुभ मुहूर्त और आपके शहर में चांद निकलने का समय
करवा चौथ पर महिलाएं दिनभर निराहार और निर्जला व्रत रखते हुए शाम पूजा के दौरान अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना करती हैं।
जनजागरुकता, धर्म डेस्क। हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए आज के दिन खास व्रत रखती हैं। इसे करवा चौथ कहा जाता है। इस पर्व पर सुहागिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर शाम के चंद्रोदय होने तक व्रत रखती हैं। चंद्रमा का दर्शन के बाद ही व्रत तोड़ती हैं।
करवा चौथ पर महिलाएं दिनभर निराहार और निर्जला व्रत रखते हुए शाम पूजा के दौरान अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना करती हैं। व्रती महिलाएं सूर्योदय से पहले सरगी ग्रहण करती हैं और दिन भर उपवास रखते हुए शाम के समय करवा माता की पूजा, आरती और कथा सुनती हैं। इसके बाद शाम को चंद्रमा के निकलने का इंतजार करती हैं और जब चांद के दर्शन होते हैं तो सभी सुहागिन महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए अपने पति के हाथों से जल ग्रहण कर व्रत खोलती हैं। सभी सुहागिन महिलाएं व्रत पूरा करने के बाद अपने सास-ससुर और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते हुए करवा चौथ का पारण करती हैं।
आइए जानते हैं सुहागिनों का महापर्व कहलाए जाने वाले इस करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, पूजा सामग्री, मंत्र, कथा और चंद्रोदय का समय..
ये है पूजा मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार करवा चौथ का त्योहार हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस बार करवा चौथ का पर्व 13 अक्टूबर 2022, गुरुवार को है। करवा चौथ पर दिनभर निर्जला व्रत रहते हुए भगवान शिव, माता पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, भगवान गणेश और चंद्रदेव की पूजा होती है। करवा चौथ पर शुभ मुहूर्त में करवा माता की पूजा, आरती और कथा सुनने का विधान होता है। फिर इसके बाद चंद्रमा के दर्शन करते हुए अर्घ्य देकर व्रत पूरा करते हैं।
पूजा का समय -1 घंटा 9 मिनट, चंद्रोदय का समय -शाम 8.10 बजे
बना है शुभ योग
करवा चौथ पर सर्वार्थसिद्ध योग बन रहा है। ज्योतिष में इस योग को बहुत ही शुभ माना जाता है। सर्वार्थसिद्धि योग से करवा चौथ की शुरुआत होगी। इसके अलावा शुक्र और बुध के एक ही राशि में यानी कन्या राशि में मौजूद होंगे। ऐसे में लक्ष्मी नारायण योग बनेगा। वहीं बुध और सूर्य के एक राशि में मौजूद होने पर बुधादित्य योग बनेगा। वहीं शनि और गुरु स्वयं की राशि में मौजूद रहेंगे। इस तरह के शुभ योग में पूजा करना बहुत ही शुभ लाभकारी रहता है।
शुभफलदायी
करवा चौथ पर व्रती महिलाएं पूरे दिन निर्जला रखते हुए भगवान शिव, माता पार्वती, स्वामी कार्तिकेय और गणेशजी की पूजा-आराधना व मंत्रोचार करना बहुत ही शुभफलदायी होता है।
ये है चंद्रमा दिखने का समय
करवा चौथ पर दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा और गाजियाबाद में करीब शाम 8 बजकर 9 मिनट से 8 बजकर 30 मिनट के बीच चांद के दर्शन होंगे।
करवा चौथ पर भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और अहमदाबाद में करीब शाम 8 बजकर 21 मिनट से 8 बजकर 41 मिनट के बीच चांद के दर्शन संभव हैं।
चंडीगढ़, लुधियाना, शिमला और जम्मू में करीब शाम 8 बजकर 6 मिनट से 8 बजकर 10 मिनट के बीच चांद निकलेगा।
प्रयागराज, लखनऊ, कानपुर और वाराणसी में चांद करीब शाम 7 बजकर 52 मिनट से 8 बजकर 2 मिनट के बीच निकलने के संकेत हैं।
जयपुर, मुंबई, बंगलूरू और गुवाहटी में चांद 7 बजकर 15 मिनट से लेकर 9 बजे तक चंद्रमा के दर्शन होंगे।
मेरठ. देहरादून, आगरा और पटना में चांद के निकलने का समय 7 बजकर 44 मिनट से लेकर 8 बजकर 15 मिनट के बीच होगा।
करवा चौथ
करवाचौथ दो शब्दों से मिलकर बना है, 'करवा' यानि कि मिट्टी का बर्तन व 'चौथ' यानि गणेशजी की प्रिय तिथि चतुर्थी। प्रेम, त्याग व विश्वास के इस अनोखे महापर्व पर मिट्टी के बर्तन यानि करवे की पूजा का विशेष महत्त्व है, जिससे रात्रि में चंद्रदेव को जल अर्पण किया जाता है।
करवा चौथ पर छलनी से क्यों देखते हैं चांद
मन को शीतलता पहुंचाने वाले, सौम्य स्वभाव वाले, सभी मंत्रों एवं औषधियों के स्वामी चंद्रमा होते हैं। चांद में सुंदरता, सहनशीलता, प्रसिद्धि और प्रेम जैसे सभी गुण पाए जाते हैं। इसलिए सुहागिन महिलाएं छलनी से पहले चांद देखती हैं फिर अपने पति का चेहरा। वह चांद को देखकर यह कामना करती हैं कि उनके पति में भी यह सभी गुण आ जाएं।
वास्तु के अनुसार करें करवा चौथ पूजा
उत्तर-पूर्व (ईशान) करवा चौथ की पूजा करने के लिए आदर्श स्थान है क्योंकि यह कोण पूर्व एवं उत्तर दिशा के शुभ प्रभावों से युक्त होता है। घर के इसी क्षेत्र में सत्व ऊर्जा का प्रभाव शत-प्रतिशत होता है। सामान्य तौर पर पूजा करते वक्त मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर करना चाहिए। जल कलश व अन्य पूजन सामग्री जैसे पताशा, सिन्दूर, गंगाजल, अक्षत-रोली, मोली, फल, मिठाई, पान-सुपारी, इलाइची आदि उत्तर-पूर्व में ही रखा जाना शुभ फलों में वृद्धि करेगा।
देवी पार्वती का ही स्वरुप
चौथ माता देवी पार्वती का ही स्वरुप हैं और देवी मां को लाल रंग अत्यधिक प्रिय है। लाल रंग को वास्तु में भी शक्ति और शौर्य का प्रतीक माना गया है अतः माता को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र, श्रृंगार की वस्तुएं एवं पुष्प यथासंभव लाल रंग के होने चाहिए। वास्तु नियमों के अनुसार अखंड दीपक पूजा स्थल के आग्नेय कोण में रखा जाना चाहिए, इस दिशा में दीपक रखने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है तथा घर में सुख-समृद्धि का निवास होता है। ध्यान रखें कि यदि मिट्टी का दीप जला रहें हैं तो दीप साफ हो और कहीं से टूटे हुए न हो। किसी भी पूजा में टूटा हुआ दीपक अशुभ और वर्जित माना गया है।
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