रद्द नहीं हो सकता देशद्रोह कानून! देश की सुरक्षा को होगा गंभीर खतरा
देशद्रोह कानून पर लॉ कमीशन ने केंद्र सरकार को सौंपी रिपोर्ट। कहा संशोधन की गुंजाइश है।
नई दिल्ली, जनजागरुकता। देशद्रोह से निपटने के लिए आईपीसी की धारा 124ए को बनाए रखने की आवश्यकता है। यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि लॉ कमीशन (विधि आयोग) ने केंद्र सरकार को गुरुवार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है। लॉ कमीशन ने अपने सुझाव में कहा कि जरूरत पड़ने पर संशोधन की गुंजाइश है। रिपोर्ट के अनुसार देशद्रोह कानून को खत्म किया गया तो यह देश की सुरक्षा पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है। आईपीसी की धारा 124ए को केवल इस आधार पर निरस्त करना कि कुछ देशों ने ऐसा किया है, ये ठीक नहीं है क्योंकि ऐसा करना भारत में मौजूद जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेने की तरह होगा।
लॉ कमीशन ने सौंपी केंद्र सरकार को रिपोर्ट
देशद्रोह कानून पर लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी है। उसका कहना है कि देशद्रोह से निपटने के लिए आईपीसी की धारा 124ए को बनाए रखना जरुरी है। हालांकि, प्रावधान के उपयोग को लेकर ज्यादा स्पष्टता के लिए कुछ संशोधन किए जा सकते हैं। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल मई के महीने में देशद्रोह कानून को स्थगित कर दिया था।
देशद्रोह कानून में संशोधन की तैयारी
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे अपने कवरिंग लेटर में 22वें लॉ कमीशन के अध्यक्ष जस्टिस रितु राज अवस्थी (सेवानिवृत्त) ने कुछ सुझाव भी दिए हैं। सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में आयोग ने कहा कि धारा 124ए के दुरुपयोग पर विचारों का संज्ञान लेते हुए ये अनुशंसा करता है कि उन्हें रोकने के लिए केंद्र की ओर से दिशा-निर्देश जारी किए जाएं। केंद्र सरकार देशद्रोह कानून में संशोधन की तैयारी कर रही है। इसे लेकर संसद के मानसून सत्र में एक प्रस्ताव भी लाया जा सकता है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में एक मई को भी इसके बारे में जानकारी दी थी। सरकार का कहना है कि 124ए की समीक्षा की प्रक्रिया आखिरी चरण में है।
कई सुझाव दिए लॉ कमीशन ने
इसमें कहा गया कि आईपीसी की धारा 124ए जैसे प्रावधान की अनुपस्थिति में, सरकार के खिलाफ दंगा भड़काने वाले किसी भी अभिव्यक्ति पर निश्चित रूप से विशेष कानूनों और आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत मुकदमा चलाया जाएगा, जिसमें अभियुक्तों से निपटने के लिए कहीं अधिक कड़े प्रावधान हैं।
अपनी स्थिति को देखकर कोई देश फैसला लेता है
आईपीसी की धारा 124ए को केवल इस आधार पर निरस्त करना कि कुछ देशों ने ऐसा किया है, ये ठीक नहीं है क्योंकि ऐसा करना भारत में मौजूद जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेने की तरह होगा। रिपोर्ट में कहा गया कि सभी देश अपनी स्थिति को देखकर फैसला लेते हैं।
देश की अखंडता और सुरक्षा को हो सकता है खतरा
रिपोर्ट में बताया गया कि इसे निरस्त करने से देश की अखंडता और सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है। अक्सर कहा जाता है कि देशद्रोह का अपराध एक औपनिवेशिक विरासत है जो अंग्रेजों के जमाने पर आधारित है, जिसमें इसे अधिनियमित किया गया था। विशेष रूप से भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इसके उपयोग के इतिहास को देखते हुए ये बात कही जाती है, लेकिन ऐसे में तो भारतीय कानून प्रणाली का संपूर्ण ढांचा एक औपनिवेशिक विरासत है।
शीर्ष अदालत ने सभी जांचों को स्थगित रखा है
यूनियन ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि वह धारा 124ए की फिर से जांच कर रहा है और अदालत ऐसा करने में अपना समय बर्बाद नहीं कर सकता है। उसी के अनुसार, शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को धारा 124ए के संबंध में जारी सभी जांचों को निलंबित करते हुए कोई भी प्राथमिकी दर्ज करने या कोई कठोर कदम उठाने से परहेज करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, यह भी निर्देश दिया कि सभी लंबित परीक्षणों, अपीलों और कार्यवाही को स्थगित रखा जाए।