सूखत का दर्द... समिति कर्मियों का धान खरीदी से इंकार लेकिन एसडीएम की समझाइश पर मान गए
सूखत के नाम पर लाखों का हर्जाना भर चुके सहकारी समिति कर्मचारी इस बार धान खुद को धान खरीदी से अलग रखने की मांग कर रहे हैं।
देवभोग, जनजागरुकता। सूखत के नाम पर लाखों का हर्जाना भर चुके सहकारी समिति कर्मचारी इस बार धान खुद को धान खरीदी से अलग रखने की मांग कर रहे हैं। समितियों के लोग 29 सितंबर को एसडीएम अर्पिता पाठक से इस आशय की मांग करने पहुंचे थे पर के उन्होंने अपनी सूझबूझ से उन्हें धान खरीदी में सहयोग करने राजी कर लिया। एसडीएम अर्पिता ने उन्हें भरोसा भी दिलाया कि जिन कारणों से बेवजह परेशानी बढ़ती है उसकी पुनरावृत्ति इस सीजन में नहीं होने देंगे।
देवभोग में संचालित 8 सहकारि समितियों के कर्मचारियों ने आज बैठक आहूत कर शुरू होने जा रही धान खरीदी की प्रक्रिया में शामिल नहीं होने का निर्णय लिया। फिर ज्ञापन लेकर एसडीएम अर्पिता पाठक के दफ्तर पहुंचे जिसमें उन्होंने 2023 में होने वाली धान खरीदी की प्रक्रिया में शामिल न करने की मांग की।
एसडीएम ने समिति कर्मचारियों की बात को पूरी गंभीरता से सुनकर सहकारी विभाग के अफसरों से तत्काल बातकी। इसके बाद भरोसा दिलाया कि आने वाले सीजन में दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
कर्मतारी राजी हैं-एसडीएम अर्पिता
एसडीएम ने जनजागरुकता को बताया कि समिति कर्मचारियों ने जिन समस्याओं का जिक्र किया था, उसकी जानकारी व समाधान पर चर्चा की गई है और वे काम करने के लिए दोबारा राजी हो गए हैं।
30 लाख भरना पड़ा था समितियों को
उल्लेखनीय है कि बीते सीजन में धान खरीदी खत्म होने के बाद धान का उठाव कर अंतिम मिलान किया गया तो 8 समितियों में लगभग 30 लाख कीमत का वजन कम पाया गया। इसकी वसूली शासन ने समिति के कर्मचारियों से की। वसूली के लिए पुलिसिया दबाव भी बनाया गया था, इसी दबाव की कार्रवाई से आहत कर्मचारियों ने इस बार धान खरीदी से दूर रहने का मन बना लिया था।
समितियों ने दिया तर्क- प्रशासन व पुलिस दबाव बनाकर वसूलते हैं राशि, नमी वाला धान भी खरीदने बनाया जाता है दबाव
आहत कर्मियों ने एसडीएम को सौंपे गए ज्ञापन में सूखत के वाजिब कारणों को गिनाया है। बताया है कि 31 मार्च तक समिति में खरीदी गए धान का उठाव अनुबंध के मुताबिक हो जाना चाहिए लेकिन यहां अगस्त तक उठाव होता रहता है। 17 प्रतिशत तक नमी के बजाए ख़रीदी के वक़्त 15 प्रतिशत नमी के धान को भी ख़रीदने का दबाव बनाया जाता है। उठाव तक धान सूख जाता है जिससे समितियों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
परिवहन के दौरान गायब होता है धान और खामियाजा समितियों से वसूला जाता है
समिति कर्मियों ने बताया कि राइस मिल की संख्या कम होने से खरीदे गए धान का अधिकांश भाग उपार्जन केंद्र भेजना पड़ता है, जिसकी दूरी 160 किमी से ज्यादा होती है। स्थानीय धर्मकांटा में वजन कर ट्रक को रवाना किया जाता है पर गंतव्य तक जाकर दोबारा तौल होते ही 24 घंटे में ही वजन में भारी अंतर आ जाता है। समितियों ने रास्ते में गड़बड़ी की संभावना जताई, इसका खामियाजा भी समिति को भुगतना पड़ता है। यह भी मांग रखी कि खरीदी प्रक्रिया में प्रशासन अपने एक कर्मचारी को प्रभारी नियुक्त करे, जिसे परिवहन होते तक जवाबदार माना जाना चाहिए। janjaagrukta.com