देवउठनी एकादशी: जानें सही मुहूर्त, पारण समय और इस व्रत का महत्व

इस दिन भगवान विष्णु 4 माह की लंबी निद्रा से जागते हैं। इसलिए इस एकादशी को देवोत्थान या देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है।

देवउठनी एकादशी: जानें सही मुहूर्त, पारण समय और इस व्रत का महत्व

जनजागरुकता, धर्म डेस्क। आज शुक्रवार को देवउठनी एकादशी का त्योहार है। इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी का व्रत, त्योहार है। यहा तिथि श्रीहरि विष्णु को समर्पित है। हर एकादशी का अपना अलग महत्व है।

इसी तरह से कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु 4 माह की लंबी निद्रा से जागते हैं। इसलिए इस एकादशी को देवोत्थान या देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। आम भाषा में इस देवउठनी ग्यारस और ड्योठान के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं देव उठनी एकादशी की तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि महत्व और पारण का समय।

एकादशी तिथि

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का समापन: 4 नवंबर, शुक्रवार, सायं 6.08 मिनट पर। उदयातिथि के आधार पर देवउठनी एकादशी व्रत 04 नवंबर को रखा गया है। 

देवउठनी एकादशी पूजा मुहूर्त

देवउठनी एकादशी का पूजा मुहूर्त: 4 नवंबर, शुक्रवार, प्रातः 06: 35 मिनट से प्रातः 10: 42 मिनट के मध्य

देवउठनी एकादशी पारण समय 

देवउठनी एकादशी व्रत का पारण तिथि : 5 नवंबर, शनिवार 

पारण समय: सुबह 6.36 बजे से 08.47 बजे के बीच

द्वादशी तिथि समाप्त: सुबरह 5.06 बजे 

देवउठनी एकादशी पूजा विधि 

देवउठनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहू्र्त में स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद भगवान विष्णु जी की पूजा करते हुए व्रत का संकल्प लें।  

श्री हरी विष्णु की प्रतिमा के समक्ष उनके जागने का आह्वान करें।  

शाम को पूजा स्थल पर घी के 11 दीये देवी-देवताओं के समक्ष जलाएं। 

यदि संभव हो पाए तो गन्ने का मंडप बनाकर बीच में विष्णु जी की मूर्ति रखें। 

भगवान हरि को गन्ना, सिंघाड़ा, लड्डू, जैसे मौसमी फल अर्पित करें। 

एकादशी की रात एक घी का दीपक जलाएं। 

अगले दिन हरि वासर समाप्त होने के बाद ही व्रत का पारण करें।

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