यूक्रेन युद्ध से तो बचकर लौट गए लेकिन मेडिकल स्टूडेंट्स अवसाद से कैसे बचें..?

पालकों में गहन पीड़ा है कि सरकारें (राज्य व केंद्र दोनों) इस बारे में उदासीन हैं। उनका कहना है बच्चों का भविष्य बनाने पैसे खर्च करने को भी तैयार हैं पर सरकारें स्वार्थों में उलझी हैं।

यूक्रेन युद्ध से तो बचकर लौट गए लेकिन मेडिकल स्टूडेंट्स अवसाद से कैसे बचें..?

चिंतित पालकों ने सरकार से लगाई गुहार- हमारे बच्चों का भविष्य बचा लो 

सिंहदेव बोले- हमारे पास अधिकार नहीं हैं, हम बिना सीट के एडमिशन कैसे दे दें ?

जनजागरुकता सरोकार   रामप्रसाद दुबे  janjaagrukta.com

रायपुर, जनजागरुकता। यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों के सामने कई तरह की कठिनाइयां और चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। बीच में पढ़ाई छूटने से ये बच्चे अब अवसाद का शिकार हो रहे हैं। नाम न छापने की शर्त पर कई पालकों ने ऐसे बच्चों की व्यथा "जनजागरुकता" से साझा की। उन्हें इस बात की गहन पीड़ा है कि सरकारें (राज्य व केंद्र दोनों) इस बारे में उदासीन हैं। उनका कहना है कि वे (पालक) अपने बच्चों का भविष्य बनाने पैसे खर्च करने को भी तैयार हैं पर सरकारें अपने निहित स्वार्थों में उलझी हैं, उन्हें हमारे बच्चों की चिंता क्यों होने लगी ?

7 माह से बिना शिक्षा और रोजगार के छात्र-छात्राएं अब अवसादग्रस्त होते जा रहे हैं। अभिभावकों ने अपने बच्चों के भविष्य पर चिंता जाहिर कर केंद्र और राज्य सरकार से मार्मिक अपील के माध्यम से आगे आकर मदद की गुहार लगाई है। इन छात्र-छात्राओं के अभिभावकों का कहना है कि युद्ध से तो बच्चे बचकर घर आ गए पर उन्हें अवसाद से कैसे बचाएं? अभिभावकों ने शासन से यहां तक अपील की कि नए मेडिकल कॉलेजों में दाखिला देकर समस्या का हल निकाला जा सकता है। 

ये विकल्प भी दिया पालकों ने 

अभिभावकों का तर्क है कि नीट की परीक्षा पास करने के बाद नए परीक्षार्थी फर्स्ट ईयर में प्रवेश प्राप्त करेंगे जबकि यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्र मेडिकल की पढ़ाई में तीसरे और चतुर्थ वर्ष के शिक्षार्थी हैं इसलिए उन कॉलेजों में प्रवेश दिया जा सकता है। इसमें राज्य और केंद्र सरकार को किसी तरह का बदलाव करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। 

एनएमसी के तर्क आपत्तिजनक

"जनजागरुकता" janjaagrukta.com ने यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्र के अभिभावक एम कुमार राव खमतराई से बातचीत की जिसमें अभिभावक का स्पष्ट कहना था कि बच्चे युद्ध से तो बचकर लौट गए लेकिन आगे की शिक्षा नहीं मिलने से अवसाद के शिकार होते जा रहे हैं। अभिभावक ने एनएमसी (नेशनल मेडिकल कॉउंसिल) के तर्क को काफी आपत्तिजनक बताया जिसमें एनएमसी ने यूक्रेन के छात्रों को भारत में पढ़ाई के योग्य नहीं बताया है। 

केंद्र सरकार की नीति में खोट- आरोप

उनका कहना था कि केंद्र सरकार अन्य देशों में मोबिलिटी कार्यक्रम के तहत पढ़ाई के लिए भेजने तैयार हैं। इस तरह की व्यवस्था देश में क्यों नहीं हो सकती। उन्होंने आरोप लगाया कि अच्छे पैसे होते तो अभी भारत में ही हमारे बच्चों को एडमिशन मिल जाता, पैसे नहीं हैं इसीलिए बच्चों को परेशान होना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि खास कैटेगरी के नौनिहाल होते तो तत्काल एडमिशन हो जाता, यही हमारे बच्चों का सबसे बड़ा दोष है जिससे हम सभी दुखी हैं और चिंतित हैं। 

पालक ने पूछा-हमारे बच्चे अयोग्य कैसे ?

"जनजागरुकता" प्रतिनिधि ने यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्र के अभिभावक एम कुमार राव खमतराई से बातचीत की । ये अकेले अभिभावक ऐसे थे जो सार्वजनिक रूप से सामने आए। उनका कहना था कि बच्चे युद्ध से तो बचकर लौट गए लेकिन आगे की शिक्षा नहीं मिलने से और अवसाद के शिकार  होते जा रहे हैं. इस अभिभावक ने एनएमसी के तर्क को काफी आपत्तिजनक बताया, जिसमें एनएमसी ने यूक्रेन के छात्रों को भारत में पढ़ाई के योग्य नहीं बताया है । 

एनआरआई कोटे में एडमिशन

इन मेडिकल छात्रों के अभिभावकों का कहना था कि एनआरआई के बच्चों को देश के कॉलेजों में एडमिशन मिल जाता है, उनके लिए अलग से सीटें रखी जाती हैं। जिन सीटों पर एडमिशन नहीं होते उन्हें देश के छात्रों से भरा जाता है। अभिभावकों का सवाल है कि एनआरआई प्रमाण के लिए विदेशी करंसी का उपयोग कर देश के युवाओं को एडमिशन दिलाया जाता है तो फिर एनआरआई का महत्व ही क्या है ?

पैसे वालों का बोलबाला- 300-400 कट ऑफ मार्क्स के बाद भी बच्चों को दाखिला नहीं दिया जाता

अभिभावकों ने आरोप लगाया कि नीट के परीक्षा के बाद क्वालीफाइंग नंबर से कहीं अधिक अच्छे नंबर बच्चों के हैं लेकिन 300-400 कट ऑफ मार्क्स के बाद भी बच्चों को दाखिला नहीं दिया जाता। सरकारी कालेजों में न प्राइवेट कॉलेजों में ही दाखिला मिल पाता है। देश में करोड़ रुपए मेडिकल शिक्षा में प्राप्त करने के लिए आवश्यक होते हैं।  यूक्रेन में 2500000 में पढ़ाई हो रही थी इसीलिए यहां के कई युवा मेडिकल की शिक्षा लेने यूक्रेन में रह रहे थे। देश की सरकारें इस पक्ष में विचार करें तो कोई बच्चा देश छोड़कर अन्य देशों में मेडिकल शिक्षा लेने नहीं जाना चाहेगा। पालकों ने कहा कई बार सवाल उठते हैं कि विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी है।

हमारे पास अधिकार नहीं है कि हम बिना सीट के एडमिशन कैसे दे दें- टीएस सिंह देव

     मोबिलिटी कार्यक्रम और यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों के भविष्य पर उठ रहे सवालों के बीच राज्य के स्वास्थ्य मंत्री   टीएस सिंहदेव ने चर्चा में बताया कि मेडिकल छात्रों के संदर्भ में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मंडावी से पत्र के माध्यम से चर्चा कर चुके हैं। कई बार चर्चाएं हो चुकी हैं हर बार पहल करने की बात की जाती है लेकिन अब तक केंद्र की सरकार ने कोई मजबूत फैसला नहीं लिया है।

     उनका कहना है कि एनएमसी (नेशनल मेडिकल कॉउंसिल) के बिना मंजूरी वे कॉलेजों में एडमिशन नहीं करा सकते क्योंकि मेडिकल कॉलेज में सीट संख्या की अनुमति एनएमसीसी से मिलती है। अब 150 छात्रों की सीट में 200 छात्रों को तो भर्ती नहीं कराया जा सकता इसलिए केंद्र सरकार को इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाना होगा। और फिर राज्य सरकारें इसमें बड़ा फैसला लेकर आगे आ सकती हैं क्योंकि सीटों में 18% केंद्र और 82% राज्य सरकार का कोटा होता है। हमारे पास अधिकार नहीं है कि हम बिना सीट के एडमिशन कैसे दे दें। janjaagrukta.com