बालोद का हर्बल गुलाल बना लोगों की पसंद, महिलाओं को मिली आत्मनिर्भरता
इस त्योहारी सीजन में 500 किलो से अधिक गुलाल बेचने का लक्ष्य रखा गया है, जिसके लिए जनपद में स्टॉल भी लगाए गए हैं।

बालोद, जनजागरुकता। छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के ग्राम धनोरा में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिलाओं द्वारा तैयार किया जा रहा हर्बल गुलाल अब राजधानी तक अपनी पहचान बना चुका है। इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए अब तक 200 किलो गुलाल राजधानी भेजा जा चुका है। यह गुलाल पूरी तरह से प्राकृतिक है, जिसे फल, सब्जियों और फूलों से तैयार किया जाता है। इनमें मुख्य रूप से पलाश के फूल, पालक और चुकंदर का उपयोग किया जा रहा है। इस पहल के जरिए समूह की महिलाएं न केवल लोगों को हर्बल गुलाल अपनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं, बल्कि आत्मनिर्भर भी बन रही हैं।
रसायन मुक्त गुलाल बना कमाई का जरिया
बालोद जिले में कई स्व-सहायता समूह हर्बल गुलाल तैयार कर रहे हैं, लेकिन धनोरा की महिलाओं का यह प्रयास खास पहचान बना रहा है। यहां बनने वाले गुलाल में किसी भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता। समूह की सदस्य यास्मीन खान का कहना है कि वे इस काम से प्रति किलो 40 रुपये तक की आय अर्जित कर रही हैं। उन्होंने कहा, "धूप में मजदूरी करने की बजाय हम इस योजना से जुड़कर आराम से काम कर पा रहे हैं और इस बात का गर्व है कि हम लोगों के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने में योगदान दे रहे हैं।"
रायपुर से मिला बड़ा ऑर्डर
सहायक विकास विस्तार अधिकारी लक्ष्मी ठाकुर ने बताया कि रायपुर के व्यापारियों ने 200 किलोग्राम हर्बल गुलाल का ऑर्डर दिया है, जिसे वहां भेजा जा रहा है। इस गुलाल की कीमत 100 से 120 रुपये प्रति किलो रखी गई है। टीम सदस्य यारूनी साहू ने बताया कि महिलाओं का यह संगठन समय-समय पर ऐसे कार्य करता है और हर्बल गुलाल बनाने में उन्हें बेहतरीन अनुभव मिला है। इस त्योहारी सीजन में 500 किलो से अधिक गुलाल बेचने का लक्ष्य रखा गया है, जिसके लिए जनपद में स्टॉल भी लगाए गए हैं।
21 क्विंटल हर्बल गुलाल तैयार
होली के अवसर पर जिले में बड़े पैमाने पर हर्बल गुलाल का निर्माण किया जा रहा है। इसे पूरी तरह रसायन मुक्त रखते हुए नीम, पालक, गेंदा, कनेर, पलाश और चुकंदर जैसे प्राकृतिक तत्वों से तैयार किया गया है। हर्बल गुलाल के उपयोग से न केवल त्वचा की सुरक्षा सुनिश्चित हो रही है, बल्कि पर्यावरण में वायु और जल प्रदूषण को कम करने में भी मदद मिल रही है। साथ ही, यह ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार के नए अवसर भी प्रदान कर रहा है। अब तक जिले में कुल 21 क्विंटल हर्बल गुलाल तैयार किया जा चुका है, जिससे यह पहल आत्मनिर्भरता और स्वच्छ पर्यावरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बन गई है।janjaagrukta.com