तीन नदियों का संगम, महादेव-श्रीराम और राजिम माता का आशीर्वाद – छत्तीसगढ़ का पवित्र Rajim Kumbh

माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक यहां लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं।

तीन नदियों का संगम, महादेव-श्रीराम और राजिम माता का आशीर्वाद – छत्तीसगढ़ का पवित्र Rajim Kumbh
तीन नदियों का संगम, महादेव-श्रीराम और राजिम माता का आशीर्वाद – छत्तीसगढ़ का पवित्र Rajim Kumbh

छत्तीसगढ़, जनजागरुकता। जब प्रयागराज कुंभ में देशभर के साधु-संतों और श्रद्धालुओं की आस्था उमड़ती है, तब छत्तीसगढ़ का राजिम तीर्थ भी ध्यान आकर्षित करता है। जल, जंगल और भूमि की समृद्धि से भरपूर यह राज्य सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां की परंपराएं और धार्मिक मान्यताएं सदियों से जीवित हैं और इन्हीं के बीच हर वर्ष भव्य राजिम कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।

छत्तीसगढ़ में कुंभ! कैसे और क्यों?

आमतौर पर कुंभ मेले का नाम लेते ही हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन का जिक्र होता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में भी एक ऐसा स्थान है जहां कुंभ की भव्यता देखने को मिलती है। राजिम तीर्थ, रायपुर से लगभग 45 किमी दूर स्थित है, जहां महानदी, सोंढूर और पैरी नदियों का त्रिवेणी संगम है। माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक यहां लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं।

यह तीर्थ भगवान श्रीराम को समर्पित है और उनका एक नाम 'राजीव लोचन' होने के कारण इसे राजीव लोचन मंदिर कहा जाता है। इतिहासकारों के अनुसार, यह मंदिर आठवीं सदी का है। माता कौशल्या श्रीराम को "राजीव नयन" कहकर पुकारती थीं, क्योंकि उनके नेत्र कमल के समान थे।

राजीव लोचन मंदिर की पौराणिक कथा

इस मंदिर को लेकर एक प्रचलित मान्यता है कि इसकी प्रतिमा स्वयं विश्वकर्मा ने बनाई थी। कहा जाता है कि यह क्षेत्र प्राचीनकाल में दंडकारण्य का हिस्सा था, जहां सतयुग और त्रेतायुग में राक्षसों का आतंक था। उस समय यह क्षेत्र पद्मावती क्षेत्र या पद्मपुर के नाम से जाना जाता था।

एक बार राजा रत्नाकर ने इस क्षेत्र की रक्षा के लिए यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन राक्षसों ने विघ्न डाल दिया। दुखी होकर राजा ने कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और वचन दिया कि वे इस स्थान पर अवतार लेंगे और स्वयं यहां निवास करेंगे। तभी से भगवान विष्णु राजीव लोचन मंदिर में प्रतिमा रूप में स्थापित हैं।

प्रतिमा को ले जाने की कोशिश और चमत्कार

एक अन्य कथा के अनुसार, कांकेर के कंडरा राजा को इस दिव्य प्रतिमा के बारे में पता चला तो उसने इसे अपने राज्य में स्थापित करने का विचार किया। जब पुजारियों ने प्रतिमा देने से इनकार कर दिया, तो राजा ने बलपूर्वक इसे ले जाने का प्रयास किया।

प्रतिमा को नाव में रखकर वह महानदी के जलमार्ग से रवाना हुआ, लेकिन धमतरी के पास रुद्री गांव में नाव पलट गई और प्रतिमा जल में समा गई। कुछ समय बाद यह प्रतिमा महानदी के कुलेश्वर महादेव मंदिर की सीढ़ियों के पास बहकर आई।

उसे 'राजिम' नाम की एक तेलिन (तेली जाति की महिला) अपने घर ले गई और अपने कोल्हू में रख दिया। इसके बाद उसके घर में समृद्धि आ गई। इधर, राजा जगतपाल को भगवान ने स्वप्न में दर्शन देकर प्रतिमा को पुनः स्थापित करने का आदेश दिया। पहले तो तेलिन तैयार नहीं हुई, लेकिन भगवान के दर्शन मिलने पर उसने मूर्ति वापस कर दी।

इसके बाद राजा ने इस क्षेत्र को 'राजिम तेलिन' के नाम पर 'राजिम तीर्थ' घोषित कर दिया। आज भी राजीव लोचन मंदिर के पास राजिम माता (राजिम तेलिन) का मंदिर स्थित है। इस कथा का उल्लेख लेखक धनंजय चोपड़ा ने अपनी पुस्तक "भारत में कुंभ" में भी किया है।

राजिम तीर्थ – तीन नदियों के संगम पर बसे पवित्र धाम

महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित राजिम, छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथपुरी की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक यात्री राजिम की यात्रा न कर ले।

कहते हैं कि माघ पूर्णिमा के दिन स्वयं भगवान जगन्नाथ पुरी से यहां आते हैं। इस दिन जगन्नाथ मंदिर के पट बंद रहते हैं और भक्तों को राजीव लोचन मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन होते हैं।

कुलेश्वर महादेव मंदिर – भगवान शिव का पावन धाम

राजिम तीर्थ में ही स्थित कुलेश्वर महादेव मंदिर का भी विशेष महत्व है। यह मंदिर त्रिवेणी संगम के मध्य एक द्वीप पर स्थित है।

मान्यता है कि माता सीता ने वनवास काल के दौरान यहां रेत से शिवलिंग बनाकर पूजा की थी। इस शिवलिंग की स्थापना बाद में स्थायी रूप से कर दी गई। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर के अंदर एक गुप्त गुफा है, जो समीप स्थित लोमस ऋषि के आश्रम तक जाती है।

इसी त्रिवेणी संगम के कारण राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है।

महाभारत और राजिम तीर्थ

महाभारत के आरण्यक पर्व के अनुसार, पूरे छत्तीसगढ़ में राजिम ही एकमात्र स्थान है जहां बद्रीनारायण का प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर का वही महत्व है, जो जगन्नाथपुरी का है।

यहां महाप्रसाद के रूप में विशेष "पीड़िया" (चावल से बनी मिठाई) वितरित की जाती है, जो इस तीर्थ की खास पहचान है।

राजिम कुंभ – आस्था और संस्कृति का संगम

हर वर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक 15 दिनों तक चलने वाला राजिम कुंभ मेला भव्य तरीके से आयोजित किया जाता है। इस मेले में देशभर के नागा साधु, संत-महात्मा और विभिन्न अखाड़ों के महंत शामिल होते हैं।

राजिम कुंभ में श्रद्धालुओं के लिए विशेष आयोजन किए जाते हैं:

* धार्मिक प्रवचन और कथा

* महाशिवरात्रि पर भव्य शाही स्नान

* छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम

* गंगा आरती और दीपदान

छत्तीसगढ़ का आध्यात्मिक केंद्र

राजिम कुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति, परंपराओं और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है। यह मेला न केवल लोक आस्था का केंद्र है, बल्कि छत्तीसगढ़ की प्राचीन धार्मिक परंपराओं को जीवित रखने का माध्यम भी है।

राजिम कुंभ 2025 में भी श्रद्धा, भक्ति और संस्कृति का दिव्य संगम देखने को मिलेगा।