सीता नवमी आज.. श्री सीता चालीसा का पाठ कर जीवन की परेशानियां दूर करें

हिंदू धर्म में सीता नवमी का राम नवमी जितना ही महत्व है। मान्यता है कि भगवान श्री राम स्वयं विष्णु और माता सीता साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप हैं।

सीता नवमी आज.. श्री सीता चालीसा का पाठ कर जीवन की परेशानियां दूर करें

जीवन मंत्र.. मानें चाहे न मानें..

जनजागरुकता, धर्म डेस्क। सनातन धर्म में पंचांग की गणना अनुसार माता सीता के जन्मोत्सव को सीता नवमी या जानकी जयंती के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में सीता नवमी का राम नवमी जितना ही महत्व है। मान्यता है कि भगवान श्री राम स्वयं विष्णु और माता सीता साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप हैं।

शनिवार, 29 अप्रैल 2023 को माता सीता नवमी है। मान्यता है कि इसी दिन माता सीता का अवतरण हुआ था। माता सीता के जन्मोत्सव को सीता नवमी या जानकी जयंती के नाम से जाना जाता है। सीता नवमी का राम नवमी जितना ही महत्व है। मान्यता है कि भगवान श्री राम स्वयं विष्णु और माता सीता साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप हैं। 

इसी दिन अवतरित हुई थीं

सीता नवमी के दिन माता लक्ष्मी धरा पर अवतरित हुई थीं। इस कारण इस सौभाग्यशाली दिन जो भी जातक माता सीता और भगवान राम की पूजा-अर्चना करता है, उस पर भगवान श्री हरि विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। इसके अलावा सीता नवमी के दिन जनक दुलारी की चालीसा पढ़ने का भी बहुत महत्व है। सीता चालीसा पढ़ने से हर तरह के संकटों से बचाव होता है। संपूर्ण श्री सीता चालीसा इस प्रकार है-

             श्री सीता चालीसा

                ॥ दोहा ॥

बन्दौ चरण सरोज निज जनक लली सुख धाम, राम प्रिय किरपा करें सुमिरौं आठों धाम ॥

कीरति गाथा जो पढ़ें सुधरैं सगरे काम, मन मन्दिर बासा करें दुःख भंजन सिया राम ॥

                ॥ चौपाई ॥

 राम प्रिया रघुपति रघुराई बैदेही की कीरत गाई ॥

 चरण कमल बन्दों सिर नाई, सिय सुरसरि सब पाप नसाई ॥

 जनक दुलारी राघव प्यारी, भरत लखन शत्रुहन वारी ॥

 दिव्या धरा सों उपजी सीता, मिथिलेश्वर भयो नेह अतीता ॥

 सिया रूप भायो मनवा अति, रच्यो स्वयंवर जनक महीपति ॥

भारी शिव धनु खींचै जोई, सिय जयमाल साजिहैं सोई ॥

भूपति नरपति रावण संगा, नाहिं करि सके शिव धनु भंगा ॥

जनक निराश भए लखि कारन , जनम्यो नाहिं अवनिमोहि तारन ॥

यह सुन विश्वामित्र मुस्काए, राम लखन मुनि सीस नवाए ॥

आज्ञा पाई उठे रघुराई, इष्ट देव गुरु हियहिं मनाई ॥

जनक सुता गौरी सिर नावा, राम रूप उनके हिय भावा ॥

मारत पलक राम कर धनु लै, खंड खंड करि पटकिन भू पै ॥

जय जयकार हुई अति भारी, आनन्दित भए सबैं नर नारी ॥

सिय चली जयमाल सम्हाले, मुदित होय ग्रीवा में डाले ॥

मंगल बाज बजे चहुँ ओरा, परे राम संग सिया के फेरा ॥

लौटी बारात अवधपुर आई, तीनों मातु करैं नोराई ॥

कैकेई कनक भवन सिय दीन्हा, मातु सुमित्रा गोदहि लीन्हा ॥

कौशल्या सूत भेंट दियो सिय, हरख अपार हुए सीता हिय ॥

सब विधि बांटी बधाई, राजतिलक कई युक्ति सुनाई ॥

मंद मती मंथरा अडाइन, राम न भरत राजपद पाइन ॥

कैकेई कोप भवन मा गइली, वचन पति सों अपनेई गहिली ॥

चौदह बरस कोप बनवासा, भरत राजपद देहि दिलासा ॥

आज्ञा मानि चले रघुराई, संग जानकी लक्षमन भाई ॥

सिय श्री राम पथ पथ भटकैं , मृग मारीचि देखि मन अटकै ॥

राम गए माया मृग मारन, रावण साधु बन्यो सिय कारन ॥

भिक्षा कै मिस लै सिय भाग्यो, लंका जाई डरावन लाग्यो ॥

राम वियोग सों सिय अकुलानी, रावण सों कही कर्कश बानी ॥

हनुमान प्रभु लाए अंगूठी, सिय चूड़ामणि दिहिन अनूठी ॥

अष्ठसिद्धि नवनिधि वर पावा, महावीर सिय शीश नवावा ॥

सेतु बाँधी प्रभु लंका जीती, भक्त विभीषण सों करि प्रीती ॥

चढ़ि विमान सिय रघुपति आए, भरत भ्रात प्रभु चरण सुहाए ॥

अवध नरेश पाई राघव से, सिय महारानी देखि हिय हुलसे ॥

रजक बोल सुनी सिय बन भेजी, लखनलाल प्रभु बात सहेजी ॥

बाल्मीक मुनि आश्रय दीन्यो, लवकुश जन्म वहाँ पै लीन्हो ॥

विविध भाँती गुण शिक्षा दीन्हीं, दोनुह रामचरित रट लीन्ही ॥

लरिकल कै सुनि सुमधुर बानी,रामसिया सुत दुई पहिचानी ॥

भूलमानि सिय वापस लाए, राम जानकी सबहि सुहाए ॥

सती प्रमाणिकता केहि कारन, बसुंधरा सिय के हिय धारन ॥

अवनि सुता अवनी मां सोई, राम जानकी यही विधि खोई ॥

पतिव्रता मर्यादित माता, सीता सती नवावों माथा ॥

             ॥ दोहा ॥

जनकसुत अवनिधिया राम प्रिया लवमात, 

चरणकमल जेहि उन बसै सीता सुमिरै प्रात ॥

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